डॉ. प्रितम भि. गेडाम
मनुष्य का जीवन बहुत सुंदर और सादा है, बस मनुष्य ने समाधानी और परोपकारी होना चाहिए। आज के आधुनिक युग में सभी प्रतिस्पर्धा में भाग रहे है, सबको जल्द आगे निकलना है उसी प्रयास में सभी लगे रहते है। यांत्रिक संसाधनों का अति प्रयोग, प्रकृति का अत्यधिक दोहन पृथ्वी का संतुलन बिगाड़ रहा है, जिसका सीधा असर मानव जीवन पर होता है। प्रकृति मनुष्य की जरूरत पूरी कर सकती है, लालच नहीं। ऐसे माहौल में प्रदूषण, शोर, मिलावटखोरी, अनिद्रा, निकृष्ट खाद्य, संस्कारहीन व्यवहार, अनुशासनहीनता, नशा, झूठा दिखावा, लापरवाही मनुष्य के शरीर के साथ उसके मानसिक स्वास्थ्य पर भी गहरा आघात करती है। आज समाज में महंगाई, बेरोजगारी, आर्थिक असमानता, भेदभाव, भ्रष्टाचार, गरीबी जैसी समस्या जीवन में संघर्ष तेज कर रही है। लंबे समय तक संघर्ष, हिंसा और सार्वजनिक स्वास्थ्य आपात स्थिति पूरी आबादी को प्रभावित करती है, जिससे बेहतर कल्याण की दिशा में प्रगति को खतरा उत्पन्न होता है। दुनियाभर में तेजी से मानसिक विकार बढ़ रहे है, जिसमें ज्यादातर हम खुद ही जिम्मेदार है, आधुनिक जीवनशैली और हमारा व्यवहार मानसिक विकारों को बढ़ा रहा है। हर साल 10 अक्टूबर विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस दुनियाभर में बढ़ते मानसिक विकारों के बारे में जागरूकता फैलाने हेतु मनाया जाता है। विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस 2022 की थीम सभी के लिए मानसिक स्वास्थ्य को वैश्विक प्राथमिकता बनाएं यह है।
मानसिक विकारों के लक्षण
आजकल अक्सर देखा जाता है कि जिन गतिविधियों को व्यक्ति पहले खुशी-खुशी करता था, जिन दोस्तों-रिश्तेदारों के साथ वह समय बिताता था, आज उन्हीं लोगों से वह व्यस्तता का बहाना करके दूर भागता है। अपने पुराने शौक, खेलकूद, अच्छी हेल्दी आदतें मनुष्य भूल रहा है। लक्ष्यहीन जीवन, यांत्रिक उपकरण, इंटरनेट, चटोरी जुबान मनुष्य को बीमार कर रही है। अनियंत्रित भावनाएं, रुचि कम होना, नींद में बदलाव, कमजोरी, सुस्ती, उत्साह व आत्मविश्वास की कमी, भूख या वजन में परिवर्तन, उदासी या चिड़चिड़ापन, मूड में अत्यधिक परिवर्तन, अपनों से दूरी बनाना, धैर्य व सहनशीलता की कमी, अकेलापन महसूस, नशाखोरी, लगातार नकारात्मक सोच-विचार, हमेशा दोष ढूंढना, लगातार बेचैनी, किसी तरह का खुद पर दबाव महसूस करना, क्रियाकलापों से दूरी बनाना, हमेशा खोये-खोये रहना यह सब बातें मानसिक विकार की ओर इशारा करती है।
देश में मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति
ग्लोबल हेल्थ सिक्योरिटी इंडेक्स 2021 के अनुसार, भारत 195 देशों में से 66 वें स्थान पर है। वैश्विक मानसिक स्वास्थ्य बोझ का लगभग 15 प्रतिशत भारत में है। राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2016 अनुसार, भारत की लगभग 14 प्रतिशत आबादी को सक्रिय मानसिक स्वास्थ्य हस्तक्षेप की आवश्यकता है। लैंसेट, 2019 सर्वेक्षण के अनुसार लगभग सात भारतीयों में से एक अलग-अलग गंभीरता के मानसिक विकार से पीडि़त है। 56 मिलियन भारतीय अवसाद से पीडि़त हैं और 38 मिलियन किसी न किसी चिंता विकार से पीडि़त हैं। हर साल लगभग 1,64,000 भारतीय अपनी जान लेते हैं। आज भारत में हर तीन में से एक व्यक्ति डिप्रेशन की राह पर है। यूनिसेफ और गैलप 2021 सर्वेक्षण के अनुसार, भारत में बच्चे मानसिक तनाव की स्थिति में सहयोग लेने में हिचकिचाते हैं। भारत में, राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य और तंत्रिका विज्ञान संस्थान के आंकड़ों के अनुसार, 80 प्रतिशत से अधिक लोग कई कारणों से मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं तक नहीं पहुंच पाते हैं, जिनमें ज्ञान की कमी, समाज का डर और देखभाल की उच्च लागत शामिल है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, भारत का मानसिक स्वास्थ्य कार्यबल गंभीर रूप से कम है। इंडियन जर्नल ऑफ साइकेट्री में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में प्रति 100,000 लोगों पर केवल 0.75 मनोचिकित्सक हैं। एनसीबीआई की रिपोर्ट है कि 1.3 बिलियन से अधिक की आबादी के लिए, भारत में 9000 मनोचिकित्सक, 2000 मनोरोग नर्स, 1000 नैदानिक मनोवैज्ञानिक और 1000 मनोरोग सामाजिक कार्यकर्ता हैं। किशोरों और युवा वयस्कों में मनोदशा संबंधी विकारों और आत्महत्या से संबंधित परिणामों की दर में काफी वृद्धि हुई है, और इसके लिए सोशल मीडिया काफी हद तक जिम्मेदार हो सकता है।
विश्व स्तर पर मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति
आज, लगभग 1 अरब लोग मानसिक विकार के साथ जी रहे हैं और 19.86त्न वयस्क मानसिक बीमारी का अनुभव कर रहे हैं। कम आय वाले देशों में, 75त्न से अधिक विकार वाले लोगों को इलाज नहीं मिलता है। हर साल करीब 3 मिलियन लोग मादक द्रव्यों के सेवन से मर जाते हैं। अकेले संयुक्त राज्य अमेरिका में, अवसाद से अमेरिकी अर्थव्यवस्था को प्रति वर्ष 210 बिलियन डॉलर से अधिक का नुकसान होता है। दुनिया भर में मानसिक स्वास्थ्य के आँकड़े में चिंता 284 मिलियन लोगों को प्रभावित करती है, डिप्रेशन 264 मिलियन लोगों को, शराब का सेवन विकार 107 मिलियन, नशीली दवाओं के उपयोग की गड़बड़ी 71 मिलियन, बाइपोलर डिसऑर्डर 46 मिलियन, सिज़ोफ्रेनिया 20 मिलियन, खाने के विकार 16 मिलियन लोगों को प्रभावित करते हैं। अवसाद आत्महत्या का कारण बन सकता है। 100 में से लगभग एक बच्चे को ऑटिज्म है। 5 में से 1 छात्र को मानसिक स्वास्थ्य समस्या है। हर साल 800,000 से अधिक लोग आत्महत्या करते हैं, 77त्न वैश्विक आत्महत्याएं निम्न और मध्यम आय वाले देशों में होती हैं। विश्व स्तर पर, 10-19 वर्ष के सात बच्चों में से एक मानसिक विकार का अनुभव करता है, जो इस आयु वर्ग में बीमारी के वैश्विक बोझ का 13त्न है। विश्व स्तर पर, जनसंख्या तेजी से बूढ़ी हो रही है। 60 वर्ष और उससे अधिक आयु के लगभग 15त्न वयस्क मानसिक विकार से पीडि़त हैं। यह अनुमान लगाया गया है कि दुनिया भर में होने वाली मौतों में से 14.3त्न मानसिक विकार के कारण होती हैं। डब्ल्यूएचओ अनुसार, चीन, भारत, अमेरिका, ब्राजील, बांग्लादेश देशों में अवसाद की उच्चतम दर है। मानसिक विकार विकलांगता का प्रमुख कारण हैं, गंभीर मानसिक विकार की स्थिति वाले लोग सामान्य आबादी की तुलना में औसतन 10 से 20 साल पहले जान गंवाते हैं।
मानसिक स्वास्थ्य सुदृढ़ बनाने के लिए
मन को हमेशा प्रसन्न रखने के लिए काम के व्यस्तता के बाद भी रोज खुद को समय देना सीखें, हमेशा स्वास्थ्यकर खाना खाएं, जुबान को जो पसंद आये वो नहीं। बेकार विचारों को अपने मस्तिष्क में जगह न दें, सकारात्मक विचारशक्ती के लोगों के साथ रहें। परोपकार की भावना रखें, हेल्दी हॉबी रखें, पालतू जानवरों के साथ समय बिताएं, पसंदीदा संगीत सुनें, पशु-पक्षी, असहायों की मदद और निस्वार्थ भाव से समाजसेवा करें। सक्रिय बने रहें, भरपूर नींद लें, दयालु बनें, रोज व्यायाम करें, अकेलेपन में न रहें, सोशल मीडिया और टीवी का सीमित उपयोग करें, लोगों से मिले-जुले, अपनों से बातें करें, बड़ो का सम्मान करें, बुरी आदतों से दूर रहें, गुस्से में अनुचित निर्णय लेने से बचें। आधुनिक जीवनशैली से दुरी बनाकर प्रकृति से जुड़े। जीवन में अनुशासन बनाए, खाना और सोना समय पर होना चाहिए। झूठे दिखावे, स्वार्थ और बहकावे में आकर में जीवन खराब न करें, अगर अच्छे काम कर रहे है तो कभी भी लोक-लाज की न सोचें। मनुष्य को माया-मोह से निकलकर जीवन की सत्यता को समझना चाहिए, संस्कार जीवन का अमूल्य भाग है, इसे कभी न भूलें। सामाजिक, पारिवारिक जिम्मेदारियों का निर्वहन करें। देखा जाए तो मानसिक विकार हमारी ही लापरवाही का नतीजा है। जैसी हमारी जीवनशैली है वैसा हमारा तन-मन बनता है। सबसे महत्वपूर्ण है कि हम समाधानी बने। अच्छा खाएं, अच्छा सोचें, खुश रहें और तनावमुक्त जीवन जिए।
(यह लेखक के निजी विचार हैं।