दीपक रंजन दास
धमतरी से एक अनोखी खबर सामने आई है. रावण का पुतला पूरा नहीं जला तो नगर पालिक निगम के एक कर्मचारी को सस्पेंड कर दिया गया. चार अन्य अधिकारियों को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है. दरअसल 30 फीट ऊंचे रावण के सभी सिर साबुत रह गए थे. ऐसा कोई अकेला धमतरी में नहीं हुआ. जहां-जहां भी रावण दहन होता है, ऐसा अकसर हो जाता है. भिलाई के सेक्टर-7 के रावण का पुतला भी पूरा नहीं जल पाया था. इसके हाथ तीन साल तक यूं ही हवा में उठे रहे. देह और सिर गायब. इस साल रावण जलाने से पहले इन हाथों को उतारा गया. नेहरू नगर में इसी साल हुए दशहरे में भी कुंभकरण और मेघनाद के हाथ बच गए थे. इसे सीरियसली लेने की जरूरत नहीं है. वह कोई रावण तो है नहीं. पुतला मात्र है. खपच्चियों के ढांचे पर कागज लपेटकर रावण की विशाल काया बनाई जाती है. पटाखे एक दूसरे से सुतली से जुड़े होते हैं और रावण के पूरे शरीर में फैले होते हैं. कागज की आग बहुत देर तक नहीं टिकती. पटाखे सभी जल गए तो सिर भी उड़ जाता है. पर यदि दैव दुर्योग से सिर का कनेक्शन कट गया तो सिर रह जाता है. पर इसके लिए कर्मचारियों को सस्पेंड करना,अधिकारियों को कारण बताओ नोटिस देना, रावण बनाने वाले का पेमेंट रोकना, समझ में नहीं आता. ऐसा कृत्य करने वाला नहीं जानता की वह स्वयं रावण जैसा काम कर रहा है. धर्म और आस्था के ऐसे ठेकेदारों को हमने कभी स्वत: संज्ञान लेकर खराब सड़कों के लिए, धसक रही पुलिया के लिए, गिर रहे लैंटरों के लिए किसी को सस्पेंड करते या कारण बताओ नोटिस जारी करते नहीं देखा. अखबारों में खबरें छप जाती हैं, सोशन मीडिया पर हंगामा होता है, विधायक की नाक में लोग दम कर देते हैं तब जाकर ऊंघते हुए कोई कार्रवाई शुरू हो पाती है. अपना-अपना काम छोड़कर आस्था के ठेकेदार बन बैठे इन लोगों से पूछना चाहिए कि जिस काम की उन्हें तनख्वाह मिलती है, उसे वे कब सीरियसली लेंगे. आप लेखक हैं तो लिखिए, पत्रकार हैं तो खबरें छापिए, कर्मचारी-अफसर हैं तो अपना-अपना निर्धारित कार्य पूरी निष्ठा और ईमानदारी से कीजिए. राष्ट्र मजबूत होगा, पैसा अकारण नहीं खर्च होगा तो विकास का लक्ष्य हासिल करने में भी सहूलियत होगी. जीवन में खुशहाली आएगी तो धर्म और आस्था की रक्षा भी अपने आप ही हो जाएगी.
गुस्ताखी माफ: रावण पूरा नहीं जला तो क्लर्क सस्पेंड
