-दीपक रंजन दास
शराब बंदी के मुद्दे पर कांग्रेस को घेरने की कोशिश कर रही भाजपा को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने आईना दिखाया है. उन्होंने कहा कि जिस मुख्यमंत्री ने 15 साल के अपने राज में वादा नहीं निभाया वह चाहता है कि कांग्रेस की चार साल की सरकार हड़बड़ी में गड़बड़ी करे. आंध्रप्रदेश और हरियाणा ने हड़बड़ी की और बाद में उन्हें अपना फैसला वापस लेना पड़ा. छत्तीसगढ़ यह गलती नहीं करेगा. शराब एक सामाजिक बुराई है जिसे सिर्फ सरकारी घोषणा से बंद नहीं किया जा सकता. गुजरात ने शराब बंदी कर रखी है. वहां शराब की दुकानें नहीं हैं पर जो भी ब्रांड चाहिए मिल जाता है. छत्तीसगढ़ में शराब बंदी होगी पर इसमें समाज की बड़ी भूमिका होगी. यह कोई राजनीतिक स्टंट नहीं होगा. गांवों से इसकी शुरुआत हो चुकी है. उन्होंने दो टूक कहा कि जिस पार्टी ने अपने पंद्रह वर्षों के शासन में वादा नहीं निभाया वह कांग्रेस से सवाल कर रही है. रमन सरकार ने 15 साल में शराब बंदी क्यों नहीं की? 2100 रुपए क्विंटल धान खऱीदी के वायदे का क्या हुआ? मुख्यमंत्री चिटफंड कंपनियों के ब्रांड अम्बेसेडर बने रहे और किसानों का करोड़ों रुपए डूब गया. सरकार ने उनका पैसा लौटाने की कोशिश क्यों नहीं की? छत्तीसगढ़ एक आदिवासी और जनजाति बहुल राज्य है. एक बड़े तबके को स्वयं शराब बनाने और उपयोग करने की संवैधानिक छूट है. सल्फी, महुआ और ताड़ी यहां के जनजीवन का हिस्सा हैं. इसका सदियों पुराना इतिहास है. शराब बंदी जैसे किसी कदम का कोई बहुत ज्यादा फर्क यहां नहीं पडऩे वाला. ज्यादा से ज्यादा यही होगा कि अंग्रेजी और देसी दारू की दुकानें बंद हो जाएंगी. सल्फी, ताड़ी, महुआ की तस्करी बढ़ेगी. लोग वैकल्पिक नशा तलाशेंगे. जहरीली शराब के मामले बढ़ेंगे. प्रतिबंधित ड्रग्स का कारोबार बढ़ेगा. सरकार को राजस्व की हानि होगी, सो अलग. वैसे भी बुराई शराब में नहीं, इसको पीने-पिलाने के तरीके में है. दिक्कत डिस्पोजेबल गिलास में कम पानी-ज्यादा दारू और पांच रुपए के चखने में है. जो हिसाब से पीते हैं, वो लंबा जीते हैं. वैसे भी शराब आज चाय-पानी जैसा व्यवहार हो गया है. वो बोतल खत्म होने तक नहीं पीते. हिसाब से एक या दो पेग लेते हैं. उन्हें पता है कि शराब में खूब पानी मिलाकर उसकी चुस्की लेनी चाहिए. वो जानते हैं कि गटागट नीट शराब पीने और सूखे चखने से डिहाइड्रेशन हो जाता है. ऐसे लोग इतना भी नहीं पीते कि हर किसी को ‘तू भाई है अपनाÓ कहने लगें. सलीके से पीने वालों को इतना नशा भी नहीं होता कि दिल की बात जुबान पर आ जाए. इसलिए बड़े लोगों की पार्टी में लफड़े-झगड़े भी कम ही होते हैं. बल्कि वहां पेग-दो-पेग में बड़े-बड़े सौदे हो जाते हैं. इसलिए बात शराब बंदी की नहीं बल्कि शराब पीने की सही तालीम की होनी चाहिए.
गुस्ताखी माफ: भूपेश ने रमन को दिखाया आईना
