देवेन्द्र बघेल की कलम से
आखिरकार पुलिस अधीक्षक राहुल शर्मा अपने किस बड़े अधिकारी से प्रताडि़त थे?
रायपुर । छत्तीसगढ़ सरकार के सत्ता में आते ही खासकर भूपेश बघेल के प्रति लोगों की उम्मीद अब इतनी बढ़ चुकी है कि वे अब अपने प्रत्येक समस्याओं का समाधान और इंसाफ की आस भूपेश बघेल के निष्पक्ष और निर्भिक अब तक के इरादों को देख-समझकर करने लगे है। लोगों का विश्वास भूपेश बघेल के प्रति इतनी बढ़ चुकी है कि वे अपने हर बातों को उन्हें बताना चाहते है और अब तक के उनके कार्यप्रणाली को देखते हुए इंसाफ की उम्मीद भूपेश बघेल के समक्ष दिखाई देती है। अपने अब तक प्रत्येक वादों और इरादों में छत्तीसगढ़ की जनता के प्रति खरी उतरती हुई दिखाई दे रही है और कई उदाहरण भी उन्होंने जनता के सामने प्रस्तुत किए है। हर वादों को वे क्रमश: निभा भी रहें है। योजनाओं को वचनबद्ध होकर निभा भी रहें है। उनके अपने अटल इरादों और नई सोच के चलते आज छत्तीसगढ़ एक बार फिर अपनी परम्परा और संस्कृति के साथ देश के उच्च शिखर पर दिखाई दे रहा है। पिछले कुछ वर्षो के भीतर छत्तीसगढ़ की संस्कृति लगभग विलुप्त हो चुकी थी, उन संस्कृतियों को भी भूपेश बघेल सरकारी योजनाओं और नियमों के तहत उन्हें ग्रामीणों के बीच परोसा और कर दिखाया। जो नेता सोटा खाने और गेड़ी चढऩे वाली बातों को लेकर अपनी औकात को दिखाने की चेष्टा करते है, भूपेश बघेल एैसे नेताओं के मुंह पर तमाचा मारकर उन्हें छत्तीसगढ़ की संस्कृति को सीखाने और दिखाने में जरा भी नहीं हिचकते। एक तरफ जहां उन्होंने छत्तीसगढ़ की संस्कृति को जीवित करके रख दिया। वहीं उन्होंने प्रशासनिक अमले को भी कसकर अपनी जिम्मेदारी बताते हुए जवाबदेही के लिए मजबूर कर दिया है। आज भले ही पुलिस प्रशासन कुत्ते की दूम की तरह टेढ़ी हो परन्तु काफी हद तक भूपेश बघेल के द्वारा उन्हें सीधा करने का प्रयास कर दिया है। पुलिस प्रशासन के ऊंचे ओहदे पर डी.एम. अवस्थी जैसे निर्भिक, निष्पक्ष अधिकारी को पदस्थ कर छत्तीसगढ़ के पुलिस प्रशासन को कत्र्तव्यपरायणता सिखाने का जहां भरपूरे प्रयास किया जा रहा है, वहीं राज्य के नागरिकों को अब यह विश्वास हो चुका है कि छत्तीसगढ़ की पुलिस उनकी अपनी है। कुछ अपवाद पुलिस अधिकारियों और थानों को छोड़ दिया जाए तो आज छत्तीसगढ़ के प्रत्येक थानों में पुलिस की छवि एक अलग ही दिखाई दे रही है जहां उन्हें अपने कत्र्तव्य और जिम्मेदारियों के तहत कत्र्तव्यपरायणता का निर्वहन करते हुए देखा जा सकता है। या यूं कहें अब राज्य की जनता का विश्वास पुलिस पर बढ़ता जा रहा है। घटित कुछ मामलों में राज्य की पुलिस भले ही मुंह छुपाते हुए नजर आई हो परन्तु डी.जी.पी. डीएम अवस्थी जैसे बड़े अधिकारी अपनी निष्पक्षता को और जनता के प्रति समर्पण को स्पष्ट रूप से प्रदर्शित कर रहें है। वहीं अपने अधिकारों के तहत मातहत अधिकारियों को यह सिखाने का भरपूर प्रयास कर रहें है कि वे जनता के प्रति समर्पित रहें अन्यथा उसका भुगतान उन्हें देर सवेर नहीं, तत्काल भुगतना होगा। इसी उम्मीद को लेकर अब राज्य की जनता के साथ-साथ कई प्रबुद्ध लोगों की भी आशा इंसाफ के लिए भूपेश बघेल और पुलिस प्रशासन के प्रति दिखाई दे रही है।
एक बार फिर पूर्व पुलिस अधीक्षक बिलासपुर राहुल शर्मा की मौत का मामला उभरता हुआ सामने आ रहा है। राहुल शर्मा की तब हत्या हुई थी या आत्महत्या? इस मुद्दे पर कई सवाल तब भी खड़े हुए थे और आज भी सवाल ज्यों की त्यों पुलिस प्रशासन के सामने खड़े हुए दिखाई दे रहें है? क्योंकि राहुल शर्मा से जुड़े कुछ उन्ही के विभाग के अधिकारी और व्यक्तिगत व्यक्तियों के आधार पर उनकी मौत स्वाभाविक नहीं लगती? क्योंकि उनकी मौत एैसी संदिग्ध परिस्थिति में हुई थी जहां आत्महत्या कहीं भी, किसी भी रूप में नजर नहीं आती? हालांकि उस वक्त भाजपा की सरकार थी आनन-फानन में तत्कालीन आईजी जीपी सिंह के ऊपर ऊंगली उठते ही उन्हें तत्काल वहां से हटा कर मुख्यालय रायपुर में पदस्थ कर दिया गया। वहीं छत्तीसगढ़ के एक जज के खिलाफ सवाल उठने पर उन्हें भी वहां से चलता कर मामले को दबा दिया गया था। विभागीय स्तर पर भी राहुल शर्मा की मौत को लेकर कानाफूसी हुई थी, लेकिन शासन और वरिष्ठ अधिकारियों के दबाव में मामला जहां के तहां दबा दिया गया या फिर दबा दी गई?
एक बार फिर राज्य के मुखिया भूपेश बघेल और डीजीपी डी.एम. अवस्थी के निष्पक्ष फैसलों और वादों को देखते हुए रायपुर के वरिष्ठ पत्रकार नारायण लाल शर्मा ने पत्र लिखकर राहुल शर्मा की हत्या और आत्महत्या की जांच की मांग की है। उन्होंने प्रदेश के मुखिया सहित माननीय मुख्य न्यायाधीश सर्वोच्च न्यायालय नई दिल्ली, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भारत सरकार, गृह मंत्री अमित शाह, गृहसचिव भारत सरकार, माननीय मुख्य न्यायाधीश उच्च न्यायालय बिलासपुर, सीबाआई डायरेक्टर नई दिल्ली को पत्र लिखकर मामले की जांच की मांग की है। उन्होंने अपने लिखे पत्र में कई शंकाओं को उजागर किया है। उनका मानना है कि तब राहुल शर्मा की मौत की जांच हो जाए रहती तो आज हत्यारा जेल की सलाखों के पीछे होता? क्योंकि यदि हत्या है तो आरोपी जांच में सामने आ जाता है और यदि आत्महत्या की होता तो धारा 306 के तहत आरोपी चिन्हित हो जाता परन्तु तत्कालीन सरकार के द्वारा अपने वरिष्ठ अधिकारी जीपी सिंह पर लगे आरोपों से बचाते हुए उन्हें जांच के आंच से बाईज्जत बचा लिया गया।
पत्रकार नारायण शर्मा का पत्र
पत्रकार नारायण शर्मा ने बताया कि बिलासपुर के तत्कालीन एसपी राहुल शर्मा के आत्महत्या प्रकरण में सीबीआई ने क्लोजर रिपोर्ट कोर्ट में दाखिल की है। लेकिन सीबीआई की अपनी जांच रिपोर्ट यह कहती है कि आत्महत्या के लिए राहुल शर्मा और तत्कालीन बिलासपुर आईजी जीपी सिंह के बीच उस दिन सुबह फोन पर हुई वार्तालाप ही जिम्मेदार हो सकती है। सीबीआई ने अपनी जांच में यह साबित किया है कि राहुल शर्मा ने अपने सुसाइडल नोट में जिस बॉस का जिक्र किया है, वह बॉस कोई और नहीं, जीपी सिंह ही थे। कॉल डिटेल्स तथा बयानों के आधार पर सीबीआई ने यह भी साबित किया है कि आईजी जीपी सिंह एसपी के कार्यक्षेत्र में हस्तक्षेप करते थे, जिससे राहुल शर्मा बेहद तनाव में थे। वहीं नारायण शर्मा ने जीपी सिंह पर आरोप लगाते हुए सूत्रों का हवाला देते हुए कहा कि सीबीआई ने रिपोर्ट में बताया है कि 11 मार्च को आईजी जीपी सिंह ने एएसपी आरके साहू को फोन कर कहा कि 12 मार्च को वे एसपी अफिस के स्टॉफ की बैठक लेंगे। आईजी ने इस बात की जानकारी मीडिया को भी दे दी, लेकिन एसपी को नहीं। 12 मार्च को स्थानीय अखबारों में खबर छपी कि एसपी के बाबुओं की क्लास लेंगे आईजी। एसपी को अखबार से ही इस बैठक की जानकारी मिली। सीबीआई ने आईजी के कॉल डिटेल के आधार पर इसकी पुष्टि की है। इस खबर से एसपी राहुल शर्मा बेहद आहत हुए और उन्होंने इस मामले में आईजी से मोबाइल पर चर्चा की। रिपोर्ट के अनुसार दोनों के बीच काफी देर तक बात हुई। इसके बाद दोपहर में एसपी ने खुदकुशी कर ली।
इस मामले की दुबारा जांच की मांग करते हुए पत्रकार नारायण शर्मा ने सीबीआई द्वारा की गई जांच पर कई सवाल खड़े किए हैं।
सीबीआई की जांच रिपोर्ट में 12 मार्च का घटनाक्रम
12 मार्च 2012 की सुबह 8.44 बजे एएसपी ग्रामीण आरके साहू ने एसपी राहुल शर्मा को फोनकर बताया कि आज आईजी एसपी कार्यालय के बाबुओं की बैठक लेने वाले हैं।
8.44 बजे एसपी राहुल शर्मा ने आईजी जीपी सिंह को फोन किया। दोनों के बीच 1111 सेकेंड (लगभग 19 मिनट) बात हुई।
9.04 बजे आईजी के मोबाइल से एसपी को फोन आया। दोनों के बीच 264 सेकेंड (लगभग साढ़े 4 मिनट बात हुई)
सुबह करीब- 10 बजे राहुल शर्मा जब स्थानीय अखबार पढ़ रहे थे, तो उसमें भी उन्हें आईजी द्वारा एसपी कार्यालय के स्टॉफ की बैठक लेने की खबर दिखी। राहुल शर्मा ने इसे बेहद अपमानजनक माना।
सुबह करीब- 10 बजे ही सिपाही राहुल शर्मा का नाश्ता लेकर आया। उस वक्त राहुल शर्मा बिस्तर पर लेटे हुए थे।
राहुल शर्मा ने कमजोरी महसूस होने की बात कहते हुए उससे नाश्ता टेबल पर रखकर ग्लूकोज लाने के लिए कहा।
कुछ देर पर उन्हें ग्लूकोज दिया गया, तो वे कई गिलास ग्लूकोज पानी पी गए। इसके बाद उन्होंने निजी स्टॉफ से कहा कि अब उन्हें ठीक महसूस हो रहा है।
एसपी राहुल शर्मा ने कहा कि दोपहर में हल्का भोजन करेंगे और सीधे दोपहर में 1.30 से 2 बजे के बीच ऑफिस जाएंगे।
दोपहर 2.30 बजे राहुल शर्मा का बॉडी गार्ड कमरे में पहुंचा। शर्मा बेडरूम में नहीं थे तो वह अंदर चला गया। अंदर राहुल शर्मा खून से लथपथ पड़े हुए थे।
रिपोर्ट में इसका जिक्र नहीं?
सीबीआई की रिपोर्ट में इस बात का जिक्र नहीं है कि 2.30 बजे राहुल शर्मा को घायल अवस्था में कमरे में देखे जाने के बाद क्या हुआ। उन्हें किसने और कितने बजे अस्पताल पहुंचाया? और इस बात का भी जिक्र नहीं है कि राहुल शर्मा को अस्पताल पहुंचाने के बाद घटनास्थल को कितनी देर बाद सील किया गया और क्या इस दौरान घटनास्थल पर सबूतों के साथ छेड़छाड़ भी हुई?
राहुल शर्मा की मौत की सूचना परिजनों को किसने और कितने बजे दी?
मेस के जिस कमरे में राहुल शर्मा घायल अवस्था में मिले उस कमरे को किसने सील किया?
रिपोर्ट में राहुल शर्मा के लैपटॉप और होलेस्टर का भी कहीं कोई उल्लेख नहीं है?
प्रदेश के मुखिया से इंसाफ की आस
जिस तरह से अब तक भूपेश बघेल और उनकी सरकार जनता की मांगों को पुरा करते आ रहें है इन्ही आशाओं को देखते हुए वरिष्ठ पत्रकार नारायण लाल शर्मा ने भी राहुल शर्मा के मौत का खुलासा कर निष्पक्ष कार्यवाही और इंसाफ की मांग की है। गौरतलब है कि जीपी सिंह, राहुल शर्मा की मौत के पश्चात तत्काल उन्हें रायपुर मुख्यालय अटेच कर दिया गया था। इस दौरान विधानसभा चुनाव में कांग्रेस बहुमत के साथ जीतकर आई और तभी जीपी सिंह को दुर्ग रेंज का आईजी बनाकर मुख्यालय दुर्ग भेजा गया था। एक पत्रकारवार्ता के दौरान जीपी सिंह बड़े जोरदार शब्दों में इस बात का पटाक्षेप किया था कि कवर्धा क्षेत्र में नक्सली सक्रिय नहीं है परन्तु अखबार की सुर्खियों के माध्यम से पत्रकार बार-बार नक्सलियों की सक्रियता और उनके प्रत्येक गतिविधियों को प्रकाशित कर रहे थे। इसके बावजूद जीपी सिंह पत्रकारों के प्रत्येक समाचारों और जानकारियों का खंडन करते आ रहे थे। तभी अचानक पहाड़ सिंह जैसे खतरनाक नक्सली की गिरफ्तारी हुई तब यही जीपी सिंह की आवाज प्रेस के सामने दबती हुई नजर आई। अब आने वाला समय बताएगा कि राहुल शर्मा की हत्या हुई थी या फिर उन्होंने आत्महत्या किया था।
क्या राहुल शर्मा की हत्या हुई थी?
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