-दीपक रंजन दास
कालजयी साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद की एक कहानी है ‘नमक का दारोगाÓ. इसका पात्र वंशीधर एक शिक्षित, ईमानदार और कत्र्तवयनिष्ठ अधिकारी है. उसे उसके पिता भ्रष्टाचार का पाठ पढ़ाते हैं. वो कहते हैं कि नौकरी में ओहदे पर ज्यादा ध्यान नहीं देना चाहिए. निगाह चादर और चढ़ावे पर रखनी चाहिए. सदी बदली पर रीत नहीं बदली. देश आज भी उसी ढर्रे पर चल रहा है. सबको पता है कि किन सरकारी अधिकारियों के पास अकूत दौलत है. राजनीतिक रैलियों से लेकर बड़े धार्मिक आयोजनों का चंदा भी यहीं से आता है. इन पदों की शोहरत इतनी है कि इन तक पहुंचने के लिए भी लोग अच्छा खासा खर्च करने को तैयार रहते हैं. कुछ विभागों में तो इन पदों की बोली लगती है. बोलचाल की भाषा में इन पदों को मलाईदार कहा जाता है. जाहिर है जब कमाई अकूत होगी तो औकात भी बढ़ेगी. जलने वालों की संख्या भी बढ़ेगी. आखिर बड़े-बूढ़े कह गए हैं कि हम अपने दुखों से कम और दूसरों के सुख से ज्यादा दुखी होते हैं. लोग दूसरों की तरक्की से जलते हैं. लोकतंत्र में इसका बड़ा महत्व है. जब आप किसी बड़े आदमी, किसी रसूखदार आदमी या किसी मालदार आदमी के ठिकानों पर छापा मारते हो तो जनता को मजा आ जाता है. इन छापों का भी एक निश्चित पैटर्न है. इसमें सरकार के हाथ कुछ लगे या न लगे, पास-पड़ोस के लोगों से लेकर मीडिया तक को दिन भर का मसाला मिल जाता है. इसकी शुरूआत अलसुबह होती है. दनदनाती हुई कई गाडिय़ां आकर घर के सामने और आसपास खड़ी हो जाती हैं. इनमें से सधे हुए अंदाज में छापा मारने वाली टीम के अधिकारी उतरते हैं और घर को घेर लेते हैं. हाव-भाव ऐसा होता है जैसे आतंकी डेरे पर कमांडों दस्ते ने धावा बोला हो. पास पड़ोस के लोग खिड़कियों और बालकनियों में आ जाते हैं. सोशल मीडिया के दौर में इसका वीडियो भी वायरल होने लगता है. फिर छन-छन कर खबर आती है, चार गाडिय़ां, अलग-अलग शहरों चार-छह बंगले, आधा किलो सोना, पांच किलो चांदी और ढेर सारे निवेश के कागजात मिले हैं. इनकी कीमत करोड़ों में आंकी जाती है और जिसके घर छापा पड़ा होता है, उसे करोड़ों का आसामी ठहरा दिया जाता है. जनता का भरपूर मनोरंजन करने के बाद छापा कंपनी निकल लेती है. छापा कंपनी कभी-कभी प्रेस कांफ्रेंस कर मीडिया के साथ भी जानकारी साझा करती है. अफसरों पर दाग लग जाता है और सरकार भ्रष्ट साबित हो जाती है. अदालत में अकसर आसामी का कोई दोष सिद्ध नहीं होता. पर किसे फर्क पड़ता है. इन छापों का जो नतीजा निकाला जाना था, वह तो निकाला जा चुका होता है. जिस बोफोर्स ने एक सरकार गिरा दी, दूसरी सरकार ने उसी बोफोर्स को लाकर सेना को मजबूत घोषित कर दिया. बाद में कारगिल विजय में इसी बोफोर्स ने एक बड़ी भूमिका निभाई.