नई दिल्ली (ए)। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति एलएन राव ने कहा कि शीर्ष अदालत राज्य द्वारा आपराधिक प्रक्रिया के दुरुपयोग का सामना करने और आलोचनात्मक आवाजों को दबाने के लिए असहमति जताने वालों पर चुनिंदा तरीके से मुकदमा दायर करने के मामलों से सतत तरीके से निपटती रही है।
न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) राव ने दिल्ली में एक समारोह में अपने भाषण में कहा, ‘‘आपराधिक अभियोजन शुरू करने के प्रति मुखर रवैया प्रक्रिया में सजा शामिल होने के समान हो सकता है। सरकार जिन्हें अपने अधिकार या वैधता को चुनौती देने वाला समझती है, उनके लिए यह एक तरीका या धमकी या रोकथाम हो सकती है।’’

वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल की हालिया टिप्पणी कि उनका सुप्रीम कोर्ट पर भरोसा नहीं रहा है, न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) राव ने कहा कि वह उनसे सहमत नहीं हैं। राव ने कहा कि “सिब्बल के विचारों और उनके द्वारा संदर्भित निर्णयों को उन्होंने पढ़ा है। उन्होंने जिन मामलों का जिक्र किया है उनमें से ज्यादातर में सिब्बल खुद ही पेश हुए हैं। न्यायपालिका एक ऐसी संस्था है जिस पर जनता को कुछ उम्मीदें होती हैं और उन्हें भी उम्मीद रखनी चाहिए। कार्यपालिका के मनमाने कार्यों पर लगाम लगाने के लिए न्यायपालिका बहुत महत्वपूर्ण है। अगर जनता उम्मीद खो देती है, तो कार्यपालिका द्वारा की गई ज्यादतियों पर कोई रोक नहीं लगेगी।”

इस साल सात जून को ही शीर्ष अदालत से सेवानिवृत्त हुए न्यायमूर्ति राव ने कहा कि केवल इसलिए कि कुछ फैसले किन्हीं लोगों की पसंद के नहीं है, इसलिए ‘‘हम एक संस्था को लेकर उम्मीद नहीं खो सकते जो पिछले 75 वर्ष से लोगों के अधिकारों की रक्षा कर रही है।’’
“लाइफ एंड लिबर्टी: इंडिया एट 75 ईयर्स ऑफ इंडिपेंडेंस” विषय पर बोलते हुए जस्टिस राव ने कहा कि यह स्वीकार्य सिद्धांत है कि “जमानत एक व्यवस्था है, जेल एक अपवाद है”। उन्होंने कहा कि इसके बावजूद भारत में कारागार विचाराधीन कैदियों से भरे पड़े हैं।
राव ने कहा कि राज्य की प्रवृत्ति पहले कार्रवाई करने और बाद में मामला बनाने की रही है। इसके परिणामस्वरूप तेजी से प्राथमिकी दर्ज की जा रही है। कई बार देखा जाता है कि जांच एजेंसियों द्वारा कभी-कभी अपना दिमाग लगाए बिना किसी व्यक्ति के खिलाफ आपराधिक प्रक्रिया शुरू करने के लिए, यहां तक कि यह आकलन किए बिना कि क्या कथित अधिनियम आईपीसी या अन्य वास्तविक दंडात्मक कृत्यों के तहत अपराध के न्यूनतम अवयवों को पूरा करता है या नहीं, प्राथमिकी दर्ज कर ली जाती है।
न्यायमूर्ति राव ने कहा, “एक अन्य प्रमुख रणनीति विरोधियों और असंतुष्टों पर उनकी आलोचनात्मक या विरोधी आवाजों को दबाने या बदनाम करने के लिए कुछ लोगों पर मुकदमा चलाया जाता है।” उन्होंने कहा कि ऐसी स्थिति में जब मामला पूरी तरह स्पष्ट नहीं हो, किसी के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने से पहले यह याद रखना चाहिए कि भारत के सर्वोच्च न्यायालय को दशकों से मूल संवैधानिक विचारों को संरक्षित करने और “अतिक्रमण के प्रयास के खिलाफ स्वतंत्रता की रक्षा” के रूप में कार्य करने के लिए जाना जाता है।
एक वेबसाइट द्वारा प्रकाशित आंकड़ों का हवाला देते हुए राव ने कहा कि एक शोध और रिपोर्ताज की पहल ने 2010-2021 के बीच देशद्रोह के 13,000 मामलों का जिक्र किया है और यह संकेत दिया है कि इस अवधि में जिन 126 लोगों के खिलाफ ट्रायल समाप्त हो गया था, उनमें से 13 को देशद्रोह के आरोपों के तहत दोषी ठहराया गया था, जो इस तरह के आरोपों का सामना करने वालों का केवल 0.1 प्रतिशत है।
न्यायमूर्ति राव ने पत्रकार अर्नब गोस्वामी और मोहम्मद जुबैर के मामलों का भी जिक्र किया और कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने इन मामलों में अदालतों से स्पष्ट रूप से कहा था कि आपराधिक कानून की प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकने के लिए अदालतों का जिंदा रहना जरूरी है। उन्होंने कहा कि ट्वीट्स की श्रृंखला के लिए दर्ज प्राथमिकी में जुबैर को अंतरिम जमानत देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उनकी स्वतंत्रता से वंचित रहने का कोई कारण या औचित्य नहीं पाया था।