-दीपक रंजन दास
लगातार बढ़ती महंगाई और रसोई की चीजों पर भारी भरकम टैक्स का विरोध करने निकले कांग्रेसियों की जेब कट गई। इससे पहले मुख्यमंत्री को जन्मदिन की बधाई देने के लिए भीड़ लगाने वालों की भी जेब कट चुकी है। दोनों हाथों में भारी भरकम गुलदस्ता लेकर गए लोगों को पता ही नहीं लगा कि कब उनकी जेब में किसी और की उंगलियों ने प्रवेश किया और बटुआ सरक गया। इसलिए जब राजधानी के अंबेडकर चौक पर जुटी भीड़ में शामिल नेताओं की जेब कटी तो लोगों ने मजा ही ज्यादा लिया। वैसे मंदी और कोरोना बंदी की मार तो सभी पर पड़ी है, सरकार इसे माने या न माने। देश के अर्थशास्त्री केवल आंकड़े बाजी करने में ही मस्त हैं। ईडीपी-जीडीपी सामान्य लोगों की हालत का सही चित्रण नहीं करते। जिन गरीबों के जीवन से दो साल की कमाई कोरोना काल में लापता हो गई है, उनकी हालत किसी भी योजना से रातों रात ठीक नहीं हो सकती। बावजूद इसके कोई भूख से नहीं मरा। कोई अपनी खाली हंडिय़ा-कड़ाही लेकर सड़कों पर नहीं उतरा। ऐसा संभव हुआ है तो केवल एक ही कारण से। हम भारतीय आदतन जुगाड़ू हैं। हम कुछ न कुछ जुगाड़ कर ही लेते हैं। हमें पता है कि कुछ लोगों के पास इतना माल है कि 10 साल का भी भारत बंद हो तो उनकी सेहत पर कोई फर्क नहीं पडऩे वाला। करना बस इतना है कि उनके खीसे के चार पैसे अपने खीसे में लाने का जुगाड़ लगाना है। विधानसभा चुनाव अभी दूर है इसलिए यदि नेताओं की अंटी काटनी हो तो फिलहाल धरना प्रदर्शन से ही काम चलाना पड़ेगा। कोई रोजी पर धरना प्रदर्शन में भागीदारी देगा तो कोई मुफ्त में आकर यहां से बटोर कर ले जाएगा। वैसे भी जहां कहीं भीड़ लगती है वहां जेब कतरे और उठाईगीर पहुंच ही जाते हैं। गंगा स्नान और कुंभ मेलों को ही देख लें तो तस्वीर साफ हो जाएगी। पैसा-झोला यहां तक की चप्पलें तक गायब हो जाती हैं। पंडा कहता है कि यह शुभ संकेत है। पाप कट गया। कांग्रेसी भी ऐसा ही मान लें तो मन को सुकून मिलेगा। उन्माद चाहे किसी भी चीज का हो, व्यक्ति अपने हवास खो बैठता है। पता ही नहीं चलता कि कब कपड़े उतर जाते हैं। यहां तो केवल पर्स और मोबाइल ही गया है। वैसे इसका ठीकरा भी पुलिस पर ही फोड़ा जाना है। वही पुलिस जो ऐसी छोटी मोटी बातों का एफआईआर तक नहीं करती। आवेदन लेकर रख लेती है। पुलिस को ऐसा भी नेताओं ने ही बनाया है। जरूरी नहीं कि जेबों की सफाई किसी पेशेवर जेबकतरे ने की हो। 50 हजार की गड्डी दिखे तो 500 का नोट देखने के लिए तरस गया कोई भी ऐसा कर सकता है। यह भी हो सकता है कि कूदा-कादी में पर्स मोबाइल अपने आप गिर गए हों और साथ खड़ा आदमी “मिले ना दूं” खेल रहा हो।