-दीपक रंजन दास
सोशल मीडिया को टिप्पणी करने का सुरक्षित मंच माना जाता रहा है। पहले ऐसी बहस केवल बुद्धिजीवियों में होती थी। उसे चाय की प्याली में तूफान लाने की संज्ञा दी जाती थी। अंतर इतना है कि वहां बहस होती थी, तर्क दिए जाते थे, उनकी पुष्टि की जाती थी। विरोध करने का एक दायरा होता था और सभी उसकी मर्यादा का पालन करते थे। चाय की प्याली में उठने वाला यह तूफान कॉफी हाउसों की रौनक बढ़ाता था। पर वक्त बदला, बहस टीवी पर होने लगी। चुन-चुन कर उन वाहियात लोगों को इसमें शामिल किया जाने लगा जो यहां केवल बोलने आते आते थे, सुनने नहीं। इनका चीखना-चिल्लाना, आपे से बाहर हो जाना लोगों को गुदगुदाता था। इनमें एक कोट-टाई वाला ढीठ दोनों, या चारों-पांचों को उकसाता रहता। बहसिए पूरी तरह से इनकी काबू में होते। पहुंच वाले चैनल इस बहस को राष्ट्रीय स्वरूप देने लगे। दूर-दराज में बैठे उनके पसंदीदा बकवासियों को बहस में ऑनलाइन जोड़ा जाने लगा। बेहूदा और भड़काऊ बातें कहने वालों की बढ़ती टीआरपी ने उन लोगों को भी आकर्षित किया जिन्होंने कभी मक्खी नहीं मारी। उनके पास सोशल मीडिया था। किसी ने ट्विटर हैंडल बना लिया तो कोई इंस्टाग्राम पर फैल गया। फेसबुक का आर्टिफिशल इंटेलीजेन्स हेट स्पीच और भड़काऊ तस्वीरों को स्वयं ही हटा देता है। ट्विटर और इंस्टा को अब तक सेफ ग्राउंड माना जाता है। डेढ़ पसली का इंसान भी इसमें महाबली खली को चुनौती दे सकता है। यहां देश की सरकार को बिन मांगे मुफ्त की सलाह दी जा सकती है। एक पार्टी ने तो इस मंच का भरपूर इस्तेमाल किया। इसमें एक चिंगारी भड़काता, दूसरा पेट्रोल छिड़कता और तीसरा हाथ सेंकता। पर आग हवन कुण्ड और चूल्हे के नियंत्रण में हो, तभी अच्छी लगती है। जब ये फैलकर जंगलों तक पहुंच जाती है तो सबकुछ जलाकर खाक कर देती है। सोशल मीडिया पर भी यह कंट्रोल से बाहर हो गई है। अब इसे समेटने का वक्त आ गया है। इसलिए सोशल मीडिया पर फूंक-फूंक कर कदम रखने की जरूरत है। देश की कोई भी सरकार एक-एक आदमी को प्राइवेट सुरक्षा की गारंटी नहीं कर सकती। याद रहे कि आप चाहे जितने भी फर्जी नाम रख लें, आपके हैंडल की पहचान हो सकती है। आप चाहें जितने भी पोस्ट डिलीट करें, उन्हें रिकवर किया जा सकता है। यही बात पोस्ट फारवर्ड करने और रीट्वीट करने पर भी लागू होती है। गुस्से का इजहार आप करेंगे और जान किसी कन्हैयालाल की जाएगी। सदियों से यही होता आया है। कल मरने वालों में दोनों ही तरफ के लोग सैकड़ों की संख्या में शामिल हो सकते हैं। तो क्या हर बार कैंडल मार्च निकाला जाएगा? क्या बार-बार भरत बंद करना संभव होगा?
गुस्ताखी माफ: सोशल मीडिया पर सावधान, लोग गुस्से में हैं…
