नई दिल्ली। “प्रणब मुखर्जी” कहते थे की एक देश के लिए कोई भी गाली,भुखमरी से ज्यादा अपमानजनक नहीं है,प्रणब मुखर्जी एक ऐसा प्रधानमंत्री जो कभी भारत को नहीं मिला इसकी भी अपनी एक कहानी है पर इसी कहानी के पन्ने में एक और कहानी है जो मजेदार है दरअसल बात है साल 1942. भारत छोड़ो आंदोलन (क्विट इंडिया मूव्मेंट) शुरू हो चुका था.बंगाल का वीरभूम जिला भी इसमे शामिल था. इस जिले में आंदोलन की कमान संभाल रखी थी स्थानीय कांग्रेस नेता और स्वतंत्रता सेनानी (फ्रीडम फाइटर) कामदा किंकर मुखर्जी ने.
कामदा तेज तर्रार नेता थे और देश में भारत छोड़ो का असर चरम पर था ऐसे में उन्होने अपना घर छोड़ दिया कारण सिर्फ़ ये था की अँग्रेज़ी हुकूमत उस समय हर क्रांतिकारी के घर उन्हे दबोचने चली जाती है आंदोलन से निजात पाने के लिए अंग्रेज हर प्रयास करना चाहते थे. पर घर छोड़ने से पहले उन्होंने अपने घर में मौजूद सभी कागजात (जो क्रांतिकारी गतिविधियों से संबंधित थे) को रेत के नीचे दबवा दिए और अपने बच्चों से कहा,
“अगर पुलिस आए, तो तलाशी लेने देना. लेकिन ध्यान जरूर रखना कि कहीं वे कोई कागज अपने साथ लेकर घर में न आएं और फिर कहें कि यह आपके घर से बरामद हुआ है.”

बच्चों ने पिता की हिदायत सुन ली और फिर कामदा किंकर मुखर्जी अपने घर से किसी गोपनीय स्थान के लिए निकल गए. उनके जाने के कुछ दिनों बाद ब्रिटिश पुलिस के एक अधिकारी और दो कॉन्स्टेबल उनके घर पहुंचे, जहां उनका सामना कामदा के सात वर्षीय बेटे प्रणब मुखर्जी (जिन्हें प्यार से सब ‘पोल्टू’ कहते थे) से हुआ.
‘पोल्टू’ ने पुलिसकर्मियों की तलाशी ली
घर के अंदर घुस रहे पुलिसकर्मियों को देखकर पोल्टू ने उन्हें रोक दिया और तलाशी लेने लगे. छोटे बच्चे की इस प्रकार की हरकत देखकर पुलिस अधिकारी और उसके साथ के दोनों कॉन्स्टेबल सन्न रह गए. बालक पोल्टू की इस हरकत को देखकर ब्रिटिश पुलिस का वह अधिकारी ठहाका मारकर हंसने लगा
इसके बाद जब तलाशी पूरी हुई. तब पोल्टू ने उन सभी पुलिसकर्मियों से कहा-
“मेरे घर का उसूल है और साथ ही मेरे पिता का भी निर्देश है कि घर आया कोई भी व्यक्ति बिना खाना खाए वापस नहीं जाना चाहिए. इसलिए आपलोग खाना खाकर ही जाएंगे.”
इसके बाद पुलिसकर्मियों को बालक पोल्टू की जिद के आगे झुकना पड़ा और वे लोग खाना खाकर ही उनके घर से गए.
किसे पता था कि वही बालक पोल्टू आगे चलकर प्रणब मुखर्जी के नाम से मशहूर होगा. देश के बड़े-बड़े संवैधानिक पद तक पहुंचेगा. लोकसभा और राज्यसभा में सदन का नेता बनेगा. रक्षा, विदेश और वित्त मंत्री बनेगा और अंततः उसका नाम दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के 13वें राष्ट्रपति के तौर पर भी लिखा जाएगा.




