अक्षय ऊर्जा के वैश्विक बाजार का आकार 2022 में 700 अरब डॉलर था, जो 2035 तक बढ़कर 2,000 अरब डॉलर से अधिक होने की उम्मीद है। भारत की स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकी क्षमता में 2030 तक उल्लेखनीय इजाफा होने की उम्मीद है। भारत सरकार का लक्ष्य है कि 2030 तक नॉन-फॉसिल फ्यूल वाले ऊर्जा संसाधनों से 50 प्रतिशत बिजली का उत्पादन किया जा सके। एसएंडपी ग्लोबल कमोडिटी इनसाइट्स के अनुसार, सरकार की रणनीतियों की मदद से भारत की स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकी क्षमता में 2030 तक उल्लेखनीय वृद्धि होने का अनुमान है। भारत की स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकी का लक्ष्य 2030 तक सोलर पीवी और विंड में पूर्ण आत्मनिर्भरता हासिल करना है। आईईए की रिपोर्ट के अनुसार, अगले दशक में स्वच्छ ऊर्जा तकनीकों का व्यापार तीन गुना बढ़कर 575 अरब डॉलर तक पहुंच सकता है।
क्लीन एनर्जी के लिए अदाणी ग्रुप और गूगल की पहल
बड़े पैमाने पर पवन, सौर, हाइब्रिड और एनर्जी स्टोरेज प्रोजेक्ट्स को वितरित करने की क्षमताओं के साथ अदाणी समूह ग्राहकों की कमर्शियल एंड इंडस्ट्रियल जरूरतों को पूरा करने और कार्बन फुटप्रिंट को कम करने के लिए कस्टमाइज्ड रिन्यूएबल एनर्जी सॉल्यूशन प्रदान करने के लिए अच्छी स्थिति में है। इसी दिशा में आगे बढ़ते हुए अदाणी इंडस्ट्रीज को डीकार्बोनाइज करने में मदद करने के लिए मर्चेंट और सी एंड आई सेगमेंट पर फोकस करने की योजना बना रहा है।
इंडस्ट्रीज को कार्बन मुक्त करने का लक्ष्य
अदाणी ग्रुप ने इंडस्ट्रीज को कार्बन मुक्त करने के लिए मर्चेंट और सीएंडआई सेगमेंट पर फोकस करने की योजना बनाई है। इस सहयोग से गूगल के 24/7 कार्बन-फ्री एनर्जी लक्ष्य को आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी। भारत में बिजली उत्पादन का लगभग 70 फीसदी हिस्सा कोयले से चलने वाले ऊर्जा संयंत्रों से ही उत्पन्न होता है। कोयले से ग्रीन एनर्जी की ओर ज्यादा से ज्यादा ध्यान केंद्रित करना होगा क्योंकि भविष्य में कोयले का प्राकृतिक स्रोत निश्चित रूप से खत्म हो जाएगा और हमें ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन कम करने के लिए भी कोयला और पेट्रोलियम जैसे जीवाश्म ईंधनों का विकल्प ढूंढना होगा।
ग्रीन एनर्जी के जरिए भारत धीरे-धीरे कोयले और पेट्रोलियम के उपयोग को चरणबद्ध तरीके से कम करने और कार्बन उत्सर्जन को घटाने पर काम कर रहा है। कार्बन उत्सर्जन की स्थिति पर निगरानी रखने वाली स्वतंत्र संस्था ‘क्लाइमेट एक्शन ट्रैकर’ के मुताबिक भारत में 2030 तक कार्बन उत्सर्जन 2005 के स्तर का आधा हो जाएगा।
ग्रीन हाइड्रोजन, भारत को ग्रीन एनर्जी की ओर ले जा सकता है, साथ ही यह देश में कार्बन उत्सर्जन को घटाने में भी काफी मददगार साबित हो सकता है । वैसे भी अगर ग्रीन एनर्जी के मौजूदा दो प्रमुख स्रोतों (सौर और पवन ऊर्जा) की बात करें तो ये उद्योग में इस्तेमाल होने वाले भारी मशीनों और ट्रेन जैसे बड़े यातायात साधनों को पर्याप्त ऊर्जा मुहैया कराने में असमर्थ हैं, जबकि ब्रिटेन और जर्मनी में ग्रीन हाइड्रोजन का प्रयोग भारी यंत्रों और बड़े यातायात साधनों में बड़े स्तर पर इस्तेमाल शुरू हो चुका है।
भारत के लिए ग्रीन हाइड्रोजन द्वारा ऊर्जा उत्पादन काफी फायदेमंद हो सकता है और यह निकट भविष्य में देश को ऊर्जा के मामले में आत्मनिर्भर बनाने का भी काम करेगा।
ऊर्जा की अनियंत्रित मांग की पूर्ति ग्रीन एनर्जी के विभिन्न विकल्पों के जरिए पूरा की जा सकती है। लोगों के बेहतर स्वास्थ्य, कोयले और पेट्रोलियम जैसे जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता खत्म करने के लिए, जलवायु परिवर्तन तथा विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं को रोकने और कार्बन उत्सर्जन को कम करके धरती की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अब ग्रीन एनर्जी ही भविष्य का इकलौता विकल्प रह गया है।