-दीपक रंजन दास
एक दिवसीय विश्वकप में भारत ने अपने सभी लीग और नॉकआउट मैच जीतकर फाइनल में प्रवेश किया। सेमीफायनल में टीम ने बेतरीन प्रदर्शन किया। न केवल बल्लेबाजों ने रिकार्ड बनाए और तोड़े बल्कि गेंदबाजी में भी रिकार्ड कायम किये गये। ऑस्ट्रेलिया समेत दुनिया की जो नौ टीमें विश्व कप खेलने भारत आई थीं उन सभी को भारत ने हराया दिया था। न्यूजीलैंड को सेमी फाइनल में हरा कर परफेक्ट टेन स्कोर के साथ भारत ने फाइनल में प्रवेश किया था। जिस ऑस्ट्रेलिया की टीम को भारत ने छह विकेट से हराया था उसी ने छह विकेट से भारत को फायनल में हरा कर छठी बार विश्व कप जीत लिया। खेल में कोई जीतता है तो कोई हारता है। यदि दोनों ने अच्छा प्रदर्शन किया हो तो ताली दोनों के लिए बजती है। पर खेल भी जीवन के कई सबक दे जाता है। पहला सबक यह कि 50 ओवर की इस पारी में भारत जल्दबाजी में दिखाई दिया। आस्ट्रेलिया के पास भी खेलने के लिए वही 50 ओवर थे पर उसने खेल को इसी हिसाब से खेला और आराम से खेलते हुए लक्ष्य भेद गये। दूसरे भारत स्टार बल्लेबाजों और गेंदबाजों वाली भाषा समझता है। आज भी हमने पूरी टीम की कीमत को हाशिए पर ही रखा है। इसी साल जून में एडिलेड में खेले गए विश्व टेस्ट चैम्पयनशिप के फायनल में टीम इंडिया ऑस्ट्रेलिया से भिड़ चुकी थी। उसे तभी यह सबक मिल गया था कि बाएं हाथ के बल्लेबाजों के आगे बाएं हाथ के स्पिनर बेअसर साबित होते हैं। इससे सबक लिया होता तो महज छह माह बाद खेले गए इस एक दिवसीय विश्व कप में अश्विन भारतीय टीम का हिस्सा होते। ऑस्ट्रेलिया के लिए विश्व टेस्ट चैम्पियनशिप में भी ट्रेविस हेड ने शानदार योगदान किया था। 163 रन की पारी खेलकर वे मैन ऑफ द मैच बने थे। तब टीम इंडिया को अश्विन की कमी खली थी। इस मैच में भी हेड ने 120 गेंदों से 137 रन निकाल लिया। इसमें 15 चौके और चार छक्के शामिल थे। उन्हें रोकने के लिए कोई अश्विन टीम में नहीं था। वास्तविक जीवन में भी इस तरह की गलतियां होती हैं। जब जीत पक्की करनी हो तो एक-एक रन, एक-एक बाउंड्री और एक-एक बॉल को पूरी शिद्दत से खेलना होता है। बल्लेबाज पर्याप्त ओवर खेलने पर फोकस करें तो पर्याप्त रन निकल ही आते हैं। जीवन के सभी क्षेत्रों में इस सबक को याद रखना चाहिए। कोई भी कमतर या बेहतर नहीं होता। वक्त आने पर सभी अपना-अपना काम अच्छे से करें तो चुनौतियों को मात दी जा सकती है। बचपन में जब भी हम पिकनिक पर जाते, बाबूजी ‘कोंदाÓ को साथ में रखते। हम उसका असली नाम तक भूल चुके थे। वह समझता-बूझता कम था पर उसमें बैल की तरह खटने की शक्ति थी। आज जब कोंदा हमारे बीच नहीं है तो चक्के वाले बैग भी हमें भारी पड़ते हैं।
Gustakhi Maaf: विश्वकप-2023 से मिले जीवन के सबक
