डॉ. दीप चटर्जी, जेपी यादव के बाद संगीता शाह और निर्मला यादव ने भी फूंका बिगूल
भिलाई। भारतीय जनता पार्टी में टिकट को लेकर मचा बवाल थमने का नाम नहीं ले रहा है। वैसे तो छत्तीसगढ़ में कई सीटों पर प्रत्याशियों का विरोध चल रहा है, लेकिन दुर्ग जिले की वैशाली नगर सीट पार्टी का सिरदर्द लगातार बढ़ा रही है। भाजपा ने यहां से 5 बार के पार्षद रिकेश सेन को प्रत्याशी बनाया है। पिछले दिनों भाजपाइयों ने आरोप लगाया था कि रिकेश सेन पार्टी कैडर से नहीं है। इतना ही नहीं उन पर कांग्रेस से सांठगांठ के भी आरोप लगाए गए थे। संघ से लम्बे समय से जुड़े डॉ दीप चैटर्जी ने रिकेश के खिलाफ सबसे पहले मोर्चा खोला था। उनके बाद पार्टी में विभिन्न पदों पर रहे जेपी यादव सामने आए और खुलकर विरोध किया। अब डॉ. संगीता शाह और भिलाई की पूर्व महापौर निर्मला यादव ने भी विरोध के स्वर बुलंद किए हैं। जेपी यादव और संगीता शाह ने तो निर्दलीय चुनावी ताल ठोंकने की भी बात कही है।
भाजपा से टिकट की प्रबल दावेदार रही डॉ. संगीता शाह के सूर्य विहार कालोनी स्थित निवास में गुरूवार की शाम सैकड़ों की संख्या में भीड़ उमड़ी। यह, दरअसल एक तरह का शक्ति प्रदर्शन था और पार्टी के सीनियर नेताओं को यह बताने के लिए भी था कि संगीता को कमतर आंकना पार्टी की बड़ी भूल होगी। बंगले पर आई भीड़ संगीता शाह को टिकट देने की वकालत करती दिखी तो स्वयं संगीता शाह ने प्रादेशिक और शीर्षस्थ नेतृत्व का ध्यान बेहद संतुलित और नपे-तुले अंदाज में अपनी ओर खींचा। उन्होंने साफ तौर पर कहा कि वैशाली नगर क्षेत्र में टिकट वितरण सही नहीं हुआ है और पार्टी को इस पर पुनर्विचार करना चाहिए। हालांकि फिलहाल संगीता शाह ने खुलेतौर पर बगावत नहीं की है, लेकिन उनके समर्थकों का कहना है कि संगीता शाह बतौर निर्दलीय प्रत्याशी इस चुनाव में ताल ठोंक सकती है। इसकी वजह यह बताई जा रही है कि संगीता शाह लम्बे समय से क्षेत्र में सक्रिय हैं और उन्हें लोगों का भरपूर समर्थन भी मिला है। समर्थकों का कहना है कि जनता का यह समर्थन ही जीत का आधार भी बनेगा।
इधर, 2018 के चुनाव से ऐन पहले कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आई भिलाई निगम की पूर्व महापौर निर्मला यादव ने भी बगावती तेवर अख्तियार कर लिए हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि पार्टी ने उन्हें टिकट के लिए आश्वस्त किया था, लेकिन प्रत्याशी किसी और बना दिया गया। बताया गया है कि निर्मला यादव फिलहाल प्रदेश के बड़े नेताओं के सम्पर्क में हैं और उनके पक्ष में स्थितियां नहीं बनती है तो वे भी निर्दलीय चुनाव का शंखनाद कर सकती हैं। गौरलतब है कि कांग्रेस में कथित उपेक्षा के बाद निर्मला यादव ने तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के समक्ष भाजपा में प्रवेश किया था। उस वक्त श्रीमती यादव को आश्वस्त किया गया था कि पार्टी के भीतर उनका मान-सम्मान व कद बरकरार रहेगा। हालांकि भाजपा में उनकी लगातार उपेक्षा होती रही है। पूर्व महापौर निर्मला यादव ने जल्द ही मीडिया के जरिए अपनी बातें रखने की बात भी कही है।

क्यों हो रहा है रिकेश का विरोध
वैशाली नगर सीट को भाजपा के लिए सुरक्षित माना जाता है। यही वजह है कि हर भाजपा नेता व कार्यकर्ता यहां से चुनाव लडऩे को लालायित रहता है। इस बार के टिकट वितरण में पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की खूब चली। रिकेश सेन को टिकट मिलने में डॉ. रमन की सबसे अहम् भूमिका रही। लेकिन व्यवहारिक रूप से रिकेश सेन को पार्टी के नेता व कार्यकर्ता पसंद नहीं करते। रिकेश सेन ने भी पार्टी के नेताओं व कार्यकर्ताओं को बहुत ज्यादा महत्व नहीं दी। रिकेश यह बताने में जुटे रहे हैं कि वे जमीन से उठे कार्यकर्ता हैं, लेकिन पार्टी का कोई भी स्थानीय नेता इस पक्ष में नहीं रहा कि रिकेश सेन को प्रत्याशी बनाया जाए। राज्यसभा सांसद सरोज पाण्डेय से लेकर कद्दावर भाजपा नेता प्रेमप्रकाश पाण्डेय तक रिकेश की खिलाफत में रहे हैं। कार्यकर्ता चाहते हैं कि पार्टी कैडर से ही किसी को प्रत्याशी बनाया जाए। वहीं कई अन्य दावेदार टिकट वितरण का आधार मतदाताओं के बीच छवि और कद को भी बनाने की वकालत करते हैं। आरोप है कि क्षेत्र में रिकेश की छवि खराब है। जिसका लिया, उसका कभी नहीं लौटाया – जैसे आरोप भी उन पर लगते रहे हैं। भाजपाइयों का आरोप है कि रिकेश सिर्फ इसलिए हर बार अपना वार्ड बदल देते थे, क्योंकि वहां उनकी छवि खराब हो चुकी होती थी।
क्या हो सकता है भाजपा का स्टैंड
भाजपा ने रिकेश सेन को वैशाली नगर क्षेत्र से प्रत्याशी घोषित कर दिया है, इसलिए इस बात की संभावना कम ही है कि वहां किसी और मौका मिले। संभव है कि जल्द ही पार्टी के बड़े नेता यहां मोर्चा संभालें और नाराज नेताओं व कार्यकर्ताओं को साधने की चेष्टा करें। लेकिन क्षेत्र से जो खबरें आ रही है, उसके मुताबिक, पार्टी के कैडर से लेकर जमीनी कार्यकर्ता व नेता कोई भी रिकेश सेन के लिए काम करने को तैयार नहीं है। ऐसे में रिकेश की उम्मीदवारी पार्टी के लिए सिरदर्द बन सकती है। वैशाली नगर क्षेत्र के नागरिकों को बेहद जागरूक माना जाता है। भाजपा ने जब यहां से सरोज पाण्डेय को प्रत्याशी बनाया तो मतदाताओं ने उन्हें एकतरफा जीत दिलाई, लेकिन चंद महीनों बाद ही सरोज पाण्डेय को विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देना पड़ा। इससे स्थानीय मतदाताओं में नाराजगी गहराई और इसका नतीजा यह निकला कि उपचुनाव में कांग्रेस को जीत मिली। भाजपाइयों का कहना है कि ऐसे जागरूक नागरिकों पर प्रत्याशी थोपने से नतीजे पार्टी के विरोध में जा सकते है।