-दीपक रंजन दास
छत्तीसगढ़ के गौ सेवक अब पदयात्रा करेंगे. इसे गौ माता राष्ट्र माता प्रतिष्ठा आंदोलन का नाम दिया गया है. 1026 किलोमीटर की यह यात्रा बिलासपुर से शुरू होगी और मथुरा वृंदावन से होते हुए नवम्बर में दिल्ली पहुंचेगी. इसमें प्रदीप मिश्रा और धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री सहित कई नामचीन पंडित शामिल होंगे. ये गौमाता की सुरक्षा के लिए प्रधानमंत्री को मांगपत्र सौंपेंगे. अच्छी बात है, गौ माता की सुरक्षा तो होनी ही चाहिए. गौमाता सुरक्षित रहेगी तो सड़कों पर लोग भी सुरक्षित रहेंगे. गौमाता सुरक्षित रहेंगी तो देश में ऑर्गेनिक अनाज, फल और सब्जी की बाढ़ आ जाएगी. पर यह कार्य तो छत्तीसगढ़ की भूपेश बघेल सरकार कर रही है. खुद प्रधानमंत्री ने छत्तीसगढ़ सरकार की इस बात के लिए तारीफ की है. कई राज्यों ने छत्तीसगढ़ के इस मॉडल में रुचि दिखाई है. वहां के विशेषज्ञों के दल ने छत्तीसगढ़ की इस योजना का अवलोकन-अध्ययन किया है और अपने यहां लागू करने की कोशिश भी कर रहे हैं. तो फिर ये गौसेवक करते क्या हैं? इनका काम केवल गाय के नाम पर रायता फैलाना है. इन्हें प्रवचन पंडालों से भोले-भाले लोगों में आक्रोश भरने से फुर्सत ही कहां है कि ये गौमाता की सेवा कर सकें. गौमाता की सेवा करना एक फुलटाइम जॉब है. इसे पार्टटाइम नहीं किया जा सकता. गाय ही क्यों भैंस, बकरी, कुत्ता.. किसी भी जीव को पालो तो वह वक्त मांगता है. ऐसा केवल किसान ही कर पाता है. वह गाय की बोली-भाषा समझता है. उसे गाय की जरूरतों की जानकारी होती है. आजकल युवा भी इस दिशा में जागरूक हो रहे हैं. वे सड़कों पर घायल होने वाले गौवंश की देखभाल करते हैं, उनके इलाज की व्यवस्था करते हैं. कभी सुनने में नहीं आया कि गाय की सुरक्षा या सेवा के लिए किसी क्रांति मंच ने कोई काम किया हो. एकाएक उदित हुआ यह मंच राजनीति से प्रेरित है. मंच की मांग है कि गौमाता को राष्ट्रमाता घोषित किया जाए. साथ ही भारतीय नस्ल की गौमाता को राष्ट्रीय धरोहर घोषित किया जाए. दरअसल, ख्वाब देखना बुरी बात नहीं है. ख्वाब ऊंचे से ऊंचा देखना चाहिए. पर इस ख्वाब को पूरा करने के लिए एक ठोस रणनीति और कार्यक्रम की भी जरूरत होती है. पहले कार्यक्रम की रूपरेखा तय कर लें, लोगों की उसमें भूमिका सुनिश्चित करें, जिम्मेदारियां बांटें तब तो इस अभियान या आंदोलन, जो भी है, उसके सफल होने की कोई सूरत बनती है. जो लोग गाय और गांव को पुख्ता करने के लिए दिन-रात काम कर रहे हैं, उनसे पूछो की तकलीफ कहां-कहां है. कांजीहाउस, गौशाला, गोठान – एक के बाद एक कितने ही प्रयोग किये पर गाय आज भी शहरों में सड़कों पर बैठी मिलती है. सड़क हादसे में न केवल गौमाता घायल होती है बल्कि इंसान भी घायल होते हैं. कई बार इन हादसों में उभय पक्ष की जान चली जाती है. देश को भाषणवीरों की नहीं, कर्मयोद्धाओं की जरूरत है.
Gustakhi Maaf: छत्तीसगढ़ के गौ सेवक करेंगे पदयात्रा
