विधायक वोरा की स्वच्छ व निर्विवाद छवि बनी भाजपा की चिंता
दुर्ग (श्रीकंचनपथ न्यूज)। अपनी निर्विवाद छवि, जनता से प्रत्यक्ष जुड़ाव और जुझारूपन के लिए पहचाने जाने वाले दुर्ग विधायक अरूण वोरा, स्थानीय भाजपा के लिए परेशानी और चिंता का सबब बने हुए हैं। दरअसल, भाजपा को वोरा का विकल्प नहीं मिल पा रहा है। वरिष्ठ नेता हेमचंद यादव के निधन पश्चात भाजपा ने कई दाँव चले, लेकिन वह विकल्पहीनता की स्थिति से बाहर नहीं निकल पाई। वोरा की सहज और सरल प्रवृत्ति भी भाजपा को कहीं टिकने नहीं देती। विधानसभा चुनाव करीब आ रहे है। इन परिस्थितियों में भाजपा सिर्फ बैठकों और कार्यकर्ताओं को दिशा-निर्देश देने तक सीमित हो गई है। जबकि विधायक वोरा अपने चिर-परिचित अंदाज में जनता की सेवा में तत्पर हैं।
कहने को तो भाजपा में टिकट के दावेदारों की संख्या किसी भी अन्य क्षेत्र से कम नहीं है, लेकिन उसके पास वोरा के कद का एक भी चेहरा नहीं है। 1993 से लेकर अब तक वोरा कुल 6 विधानसभा के चुनाव लड़ चुके हैं। इनमें से 3 बार उन्हें जीत मिली तो इतनी ही बार पराजय का भी सामना करना पड़ा। जब जीत मिली तो वोरा ने इसे मतदाताओं की जीत बताया और जब पराजय मिली तो उसे भी सहृदयता से स्वीकार किया। चुनावी जीत-हार से अलग वोरा का मतदाताओं से जीवंत और प्रत्यक्ष सम्पर्क लगातार जारी रहा। जब वे जीत हासिल नहीं कर पाए, तब भी पूरे मनोयोग व जिम्मेदारी के साथ लोगों के दुख-सुख में सहभागी रहे। आज भी पूरे विधानसभा क्षेत्र में यदि उनका डंका बजता है तो उसकी सबसे बड़ी वजह यही है कि वे आम लोगों के साथ विधायक की तरह नहीं अपितु उनके पारिवारिक सदस्य की तरह मिलते और व्यवहार करते हैं।
1993 में युवा जोश के साथ चुनाव मैदान में उतरने वाले अरूण वोरा अब एक परिपक्व और सुलझे हुए राजनेता के रूप में स्थापित हो चुके हैं। लेकिन उनके व्यक्तित्व में सरलता और सहजता का भाव अब भी 1993 वाला ही है। दिनचर्या भी वैसी ही है। सुबह घर पर जनता की समस्याएं सुनना, उनका निवारण करना, आवश्यकतानुसार अफसरों से संवाद करना और उसके बाद शहर में जीवंत सम्पर्क…। इस दौरान यदि कोई दु:खी-पीडि़त मिल गया तो उसकी समस्या का निवारण कराना। यह क्रम रात तक चलता है। कई लोगों को आश्चर्य होता है कि विधायक वोरा छोटे-छोटे विकास के काम भी स्वयं खड़े होकर करवाते हैं। विपक्ष के लोग इसे राजनीति से जोड़कर देखते हैं, लेकिन हकीकत यह है कि यही विधायक वोरा का सबसे महत्वपूर्ण, सकारात्मक और मजबूत पक्ष है।

वक्त के साथ बदली शहर की सूरत
यूं तो विकास एक सतत् प्रक्रिया है, किन्तु दुर्ग शहर में यह प्रक्रिया वक्त के साथ बदलती रही है। वोरा जब विपक्ष के विधायक थे, तब वे अपने स्तर पर भरपूर प्रयास करते थे कि शहर को विकास की अधिकाधिक सौगातें प्रदान करें। इसमें यदा-कदा प्रशासनिक रूकावटें भी आतीं और विधायक के रूप में वोरा को इससे दो-चार भी होना पड़ता। लेकिन वे किसी न किसी तरीके से शहर-हित में काम करवा ही लेते थे। वक्त ने करवट ली और प्रदेश में कांग्रेस की सरकार आई तो जैसे दुर्ग शहर का भाग्य ही खुल गया। वोरा जैसे समर्पित और जुझारू विधायक के चलते पिछले करीब साढ़े चार वर्षों में शहर का नक्शा पूरी तरह बदल गया है। कोरोना काल में विधायक वोरा की अगुवाई में नगर निगम और कांग्रेस पार्टी ने जिस समर्पण के साथ काम किया, वह लोगों के जेहन में आज भी ता•ाा है। आवश्यकतानुसार मूलभूत कार्यों को पहली प्राथमिकता देने के बाद अब विधायक वोरा की पहल पर सौंदर्यीकरण के नए आयाम स्थापित किए जा रहे हैं। ठगड़ा बांध, चौंक-चौराहों का सौंदर्यीकरण, प्रकाश व्यवस्था की चकाचौंध जैसे दर्जनों काम मील का पत्थर साबित हो रहे हैं।
कहते नहीं, करके दिखाते हैं
विधायक वोरा की एक खासियत यह भी है कि वे अन्य नेताओं की तरह कहकर टाल देने की बजाए करके दिखाने पर ज्यादा भरोसा करते हैं। उम्मीदों की आस लिए उनके घर पहुंचने वाली समस्याग्रस्त लोगों की भीड़ इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। वोरा सबको सुनते हैं। यदि किसी का कोई काम अटक रहा है या दिक्कतें आ रही है तो वे तत्काल अफसरों से चर्चा कर उसका समाधान करवाते हैं। लोग गदगद हैं कि शहर में एक ऐसा जनप्रतिनिधि भी है, जो उनकी सुनता भी है और समाधान भी करवाता है। विधायक वोरा स्वयं भी कहते हैं,- उनका जीवन जनता को समर्पित है। जिन अपेक्षाओं के साथ मतदाताओं ने उन्हें जीत रूपी आशीर्वाद दिया, उस पर खरा उतरना पहली प्राथमिकता है। वोरा के मुताबिक, – शहर का विकास तो उनसे पहले भी होता रहा और उनके बाद भी होगा, अहम् यह है कि इस दौरान जनता का कितना भला होता है। लोगों के चेहरे पर खुशियां दिखना ज्यादा जरूरी है। बाकी चीजें बेमानी है।