-दीपक रंजन दास
नेता बन जाना ही अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि है. नेता बनते ही व्यक्ति अतिथि, मुख्य अतिथि की कुर्सी को सुशोभित करने लगता है. शिक्षाविदों से लेकर खिलाड़ियों को अपने हाथों से पुरस्कार देता है, सम्मानित करता है और उपदेश भी देता है. काश! इन खिलाड़ियों को कोरा उपदेश देने के बजाय उन्होंने इनसे कुछ सीखा होता. यह बात छत्तीसगढ़ के एक कद्दावर नेता पर अक्षरशः लागू होती है. क्रिकेट देश का राष्ट्रीय खेल तो नहीं पर सर्वाधिक लोकप्रिय खेल अवश्य है. खेल न केवल हमारा मनोरंजन करते हैं बल्कि ये हमें कई संदेश भी देते हैं. क्रिकेट को ही लें तो इसमें मैच जिताने में पूरी टीम का योगदान होता है. एक व्यक्ति मैन ऑफ द मैच भी बनता है. पर वह कभी भी यह दावा नहीं करता कि मैच उसकी वजह से जीता गया इसलिए उसे कप्तान बना दिया जाना चाहिए. क्रिकेट ही क्यों, प्रत्येक टीम गेम का एक-एक सदस्य जानता है कि जीत हमेशा टीम की होती है. कोई एक व्यक्ति इसका पूरा श्रेय नहीं ले सकता. कप्तान का चयन क्रिकेट बोर्ड करता है और सभी उसे मान लेते हैं, उसके नेतृत्व में अपना श्रेष्ठ प्रदर्शन करते हैं. पूर्व कप्तान सामान्य खिलाड़ी बना दिये जाने के बाद भी टीम में अपनी पूरी जिम्मेदारी के साथ खेलते हैं. उसका ईगो कभी भी परफारमेंस के आड़े नहीं आता. यही खेल भावना है. यह भावना आहत हुई तो टीम हार जाती है. क्रिकेट की चर्चा यहां इसलिए भी कि अंबिकापुर जल्द ही टी-20 मैचों की मेजबानी करने जा रहा है. सरगुजा नरेश को क्रिकेट का शौक भी है. होना भी चाहिए. उन्होंने कई प्रतियोगिताओं की शुरुआत स्वयं चौका-छक्का मारकर की है. उनकी पिछले चुनाव में बड़ी भूमिका रही है, इसे सभी स्वीकार करते हैं. यह भी माना जाता है कि सरगुजा से कांग्रेस इसलिए 14 सीटों पर जीती क्योंकि वहां के लोगों को लगा था कि इस बार मुख्यमंत्री सरगुजा का बनेगा. इस तरह की भूमिका औरों की भी रही होगी. अच्छा है कि ऐसे सभी लोग मुख्यमंत्री की कुर्सी के दावेदार नहीं हैं. वरना साल-साल भर के मुख्यमंत्री बनाने का रिकार्ड भी छत्तीसगढ़ के नाम हो जाता. टीम में रहते हुए टीम के नेतृत्व पर असंतोष व्यक्त करना एक तरह की नासमझी है. इसे अनुशासनहीनता भी माना जा सकता है. यदि वे राष्ट्रीय नेतृत्व की कमजोर स्थिति का नाजायज फायदा उठाकर उसे ब्लैकमेल करने का इरादा रखते हैं, तो यह और भी बुरी बात है. इससे उस सरकार की ही छवि खराब होती है जिसके कि वे मंत्री हैं. उन्हें मुख्यमंत्री से भी कुछ तो सीखना ही चाहिए. मुख्यमंत्री ने पार्टी के राष्ट्रीय नेतृत्व पर भरोसा जताते हुए कह दिया था कि यदि हाईकमान का आदेश होगा तो वे तत्काल सभी पद छोड़ देंगे. आखिर इन बातों का क्या मतलब कि अगले चुनाव से पहले सरगुजा नरेश अपना भविष्य निर्धारित करेंगे? तो क्या वे गाय-गोबर-किसान की राजनीति से नाखुश हैं?
गुस्ताखी माफ़: सरगुजा नरेश ने फिर जताया असंतोष




