-दीपक रंजन दास
यदि आपका बच्चा कुछ अलग करना चाहता है तो उसे रोकिये नहीं. उसे और उसके प्रयासों को समझने की कोशिश करें. जानकारों की मदद लें. सहयोग करें, मार्गदर्शन करें. क्या पता वह कोई एंटरटेनर, कोई गेमर या कोई कंटेन्ट क्रिएटर ही बन जाए. यह नया दौर है जहां सबकुछ धीरे-धीरे डिजिटल हो रहा है. एंटरटेनमेंट की तो एक अलग दुनिया ही यहां बसी हुई है. यह ग्लोबल प्लैटफार्म है जहां आपको अपनी फिल्म रिलीज करने के लिए किसी थिएटर की जरूरत नहीं. लिटरेचर को रीडर तक पहुंचाने के लिए किसी पब्लिशर की जरूरत नहीं. गेमिंग में तो कोई लिमिटेशन ही नहीं है. बहुत कम या शून्य निवेश से शुरू होने वाले ये काम, आपके हुनर को पंख लगा सकते हैं और आप 10 से 5 वाली उबाऊ नौकरी से मुक्त हो सकते हैं. रही बात कमाई की तो यहां आप 2-4 साल में उतना कमा सकते हैं जो एक आईएएस या आईपीएस अपनी पूरी जिन्दगी में कमाता है. नोएडा के एंटरटेनर पीयूष गुर्जर ने इसे साबित कर दिया है. वे जल्द ही वेब सीरीज में दिखेंगे. उन्होंने देखा कि भूत प्रेत का होना या न होना एक अलग मसला है पर यह सबको अपनी तरफ आकर्षित जरूर करता है. लोग काला-जादू के बारे में भी बहुत बातें करते हैं. अघोरियों के बारे में सच्ची झूठी कहानियां पढ़ते हैं. उन्होंने लोगों की इसी भूख को मसाला देने की ठानी. उसमें कॉमेडी का तड़का लगा दिया और हो गए सुपर-हिट. जल्द ही उनकी हॉरर-कॉमेडी वेब सीरीज आ रही है. जब उनका यह सफर शुरू हुआ तो घर वाले आशंकित थे. उन्हें तो केवल इतना ही पता था कि अच्छे-अच्छे कलाकार नोएडा से लेकर दिल्ली तक की गलियों में धक्के खा रहे हैं. कुछ ही लोगों को सफलता मिलती है. ऐसा तो सीए, सीएमए, यूपीएससी की तैयारी करने वालों के साथ भी है. तो क्या लोग प्रयत्न करना छोड़ दें. यहां कम से कम इतना तो है कि नौकरी न मिलने पर अपना काम शुरू किया जा सकता है. तो फिर देर किस बात की? वैसे छत्तीसगढ़ की ही बात करें तो यहां स्थानीय भाषा छत्तीसगढ़ी में फिल्म बनाने वालों की अच्छी खासी संख्या है. उन्होंने कई बार सरकार से संरक्षण और पैकेज की मांग की है. वे मल्टीप्लेक्स में अपनी फिल्मों को रिलीज करना चाहते हैं पर कोई तैयार ही नहीं होता. उनका कहना है कि छत्तीसगढिय़ा फिल्में केवल छत्तीसगढिय़ों को ही समझ में आती है. इनकी संख्या इतनी नहीं कि बड़ा रिस्क लिया जाए. पर उसी छत्तीसगढ़ी में बनने वाले वीडियोज, मीम्स, रील्स और शार्ट फिल्म लोगों को हजारों रुपए कमा कर दे रहे हैं. स्व-रोजगार बढ़ाने के लिए सरकार कई उपाय कर रही है. थोड़ा समर्थन शहरी स्वरोजगार को बढ़ाने के लिए देना गलत नहीं होगा. दो चार स्टूडियो, साउंड प्रूफ रिकार्डिंग रूम और कुछ गैजेट्स की हो तो बात है. बाकी का काम हुनर पर छोड़ दें.