80 से 90 रुपए किलो बिका करेला, बाजार भी रहे गुलजार
भिलाई। छत्तीसगढ़ी संस्कृति और रीति रिवाजों की सौधी खुशबू लिए तीजा का तिहार आ गया। पोला के दिन से तीजहारिन मायके पहुंचने लगी तो कई कई ससुराल में रहकर ही तीजा का व्रत रखेंगी। तीजा के एक दिन पहले सोमवार को बाजार भी बहन-बेटियों से गुलजार रहा। किसी ने हाथों में मेहंदी लगवाई तो किसी ने श्रृंगार का सामान खरीदा।। शाम को वे सभी करेले की सब्जी और चावल यानी करुभात की रस्म निभाकर मंगलवार को तीजा का व्रत रखेंगी और अखंड सुहाग की कामना के साथ वे माता पार्वती और भगवान शंकर की पूजा कर परिवार की सुख समृद्धि की कामना करेंगी। लेकिन इससे पहले सोमवार को करेला बाजार में खूब बिका। एक दिन पहले ही करेला का दाम 80 से 90 रुपए तक पहुंच गया था।
आज भी पहुंचेंगी मायके
तीजा व्रत के शुरू होने से पहले करु भात की रस्म निभाने बेटियां मायके पहुंची। यूं तो बेटियों के आने का सिसलिसा पोला के दिन से शुरू हो गया, पर कई घरों में बहन-बेटियां सोमवार रात तक भी पहुंचेगी। बोरसी निवासी सरिता साहू ने बताया कि तीजा में जब तक बहन-बेटी को लेने ससुराल नहीं जाते तब तक वे मायके नहीं आती। इस रस्म के पीछे बेटी का सम्मान जुड़ा हुआ है, लेकिन अब दौड़भाग भरी लाइफ में फोन पर ही बुलावा आता है। उन्होंने बताया कि उनका मायका नेहरूनगर में है और वे मंगलवार शाम मायके जाएंगी और बुधवार को गणेश जी की स्थापना के बाद वापस लौटेंगी। उन्होंने बताया कि शादी के शुरुआती कुछ सालों में वे पोला के दिन से ही मायके चली जाती थी, लेकिन अब बच्चों और घर की जिम्मेदारी की वजह से तीजा की शाम को ही मायके जा पाती हैं।
मायके से बुलावा यानी सम्मान
तीजा में मायके से भाई या पिता के ससुराल आने के बारे में मरोदा निवासी दिव्या साहू कहती हैं कि जब राजा दक्ष ने यज्ञ कराया तो उन्होंने अपनी बेटी सती को न्यौता नहीं दिया था। तब मां सती जिद कर अपने मायके गई। पर महादेव ने उन्हें समझाया कि जब तक बुलावा ना आए वे वहां ना जाएं, पर वे चली गई। वहां जाकर जब अपने पति और अपना स्थान नहीं देखा तो उन्हें महादेव की बात याद आई । वे इस अपमान को सहन नहीं कर पाई और यज्ञकुंड में ही कूद गई। तब से यह परंपरा है कि तीज त्योहार हो या कोई खास दिन जब तक ससुराल में रहने वाली बेटियों को मायके से कोई बुलाने नहीं आता वे नहीं जाती।
