कांग्रेस आलाकमान ने यह क्या कर दिया? पूरे देश में ले देकर छत्तीसगढ़ ही वह अकेला राज्य था जहां कांग्रेस ठीक-ठाक काम कर रही थी। कांग्रेसियों में एक उत्साह था। सरकार नित नए प्रयोग कर रही थी और लोग पूरे दिल से उसे स्वीकार कर रहे थे। राज्य हो या केन्द्र अपने सभी समर्पित कार्यकर्ताओं को खुश नहीं रख सकती। छत्तीसगढ़ में भी ऐसे अनगिनत कार्यकर्ता हैं जिन्हें सरकार कुछ नहीं दे पा रही है। पर एक आस लिए ऐसे कार्यकर्ता ऐड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं। कांग्रेस आलाकमान ने ऐसे सभी कार्यकर्ताओं की उम्मीदों पर तो पानी फेरा ही है, उन लाखों लोगों को भी निराश किया है जिन्हें लगा था कि राज्यसभा की सीटों पर दो और वरिष्ठों को मौका मिलेगा। केन्द्र में छत्तीसगढ़ का प्रतिनिधित्व कुछ और मजबूत होगा। फिलहाल राज्य से लोकसभा में कांग्रेस के केवल दो सांसद हैं। बहुत सारे नेता ऐसे थे जो राज्यसभा जाने के लिए उत्सुक थे और इनमें से कई ने तो अपनी इच्छा सार्वजनिक रूप से जाहिर भी कर दी थी। पर जब से कांग्रेस आलाकमान ने छत्तीसगढ़ कोटे की राज्यसभा सीटों पर दो मनोनयन किया है, इन सभी में निराशा छा गई है। कांग्रेस आलाकमान ने छत्तीसगढ़ कोटे की दो सीटों पर दिल्ली के राजीव शुक्ला और बिहार की रंजीता रंजन को राज्यसभा का प्रत्याशी बनाया है। छत्तीसगढ़ वालों ने पहले कभी इनका नाम भी नहीं सुना।
दरअसल कांग्रेस आलाकमान की इन्हीं हरकतों के कारण देश भर के लोगों का उससे मोहभंग हुआ है। उसे अपने अधिकारों का इस्तेमाल करना खूब आता है। टिकटों की बंदरबांट से लेकर चाटुकारों को भाव देने की कांग्रेस आलाकमान की आदत से पार्टी जमीनी स्तर पर बार-बार आहत हुई है। उसे लगता कि प्रदेशों की सरकारें उसकी बदौलत चलती हैं। हकीकत इसके सर्वथा विपरीत है। देश भर में कांग्रेस के पास काबिल नेताओं की कोई कमी नहीं है। कोई उन्हें मौका तो दे। जब-जब इन्हें मौका मिला है, इन्होंने अपनी अद्भुत रचनात्मक क्षमता का परिचय देकर पूरे देश को चमत्कृत किया है। ऐसे नेताओं की स्वयं केन्द्र सरकार कायल है। छत्तीसगढ़ की अनेक योजनाओं को न केवल केन्द्र की भाजपा सरकार की प्रशंसा मिली है बल्कि उनका अन्य राज्यों में अनुकरण भी किया गया है। ऐसी सरकारों का मनोबल बढ़ाने की बजाय, उनका काम आसान करने की बजाय, केन्द्रीय आलाकमान बार-बार अपनी ऊलजलूल हरकतों से इन सरकारों को नित नई परेशानियों में डाल देती है। कितना अच्छा होता कि छत्तीसगढ़ सरकार की पीठथपाते हुए आलाकमान कह देती कि इस बार राज्यसभा के सभी पदों पर प्रदेश सरकार की इच्छा से ही प्रत्याशी खड़े किए जाएंगे। कम से कम उन लोगों का तो मान बढ़ता जो अपना खून-पसीना बहाकर विपरीत परिस्थितियों में काम कर रहे हैं। अपने बल बूते पर न केवल राज्य में सरकार चला रहे हैं बल्कि जनाकांक्षाओं पर भी खरा उतर रहे हैं। नेता थोपने की नीति को अब पार्टी को तिलांजलि देनी ही होगी वरना जो दो चार नामलेवा बचे हैं वो भी अगर पार्टी से कट गए तो कुछ और क्षेत्रीय दल पैदा हो जाएंगे और देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी के पास अपना कहने को कुछ भी नहीं रह जाएगा।

- राजेश अग्रवाल