बिहार (एजेंसी)। मेहनत और दृढ़संकल्प दो ऐसी चीजे हैं जिसका कोई विकल्प नहीं होता है। इसका पालन कर के किसी भी मंजिल को पाया जा सकता है। ऐसे कई उदाहरण हमारे देश और दुनिया में समय-समय पर देखने को मिलते रहते हैं। तमाम तरह की समस्या के होते हुए भी ऐसे लोग अपने सपनों को पूरा कर ही लेते हैं। ऐसी ही एक कहानी सामने आई है बिहार के जमुई जिले से। दस साल की दिव्यांग छात्रा सीमा अपनी मेहनत से चर्चा में है।
चौथी कक्षा में पढ़ती है सीमा
अपने हौसले के कारण लोगों में चर्चा का विषय बन चुकी सीमा जमुई जिले के फतेहपुर गांव में सरकारी स्कूल में पढ़ती है। 10 साल की सीमा कक्षा चौथी की छात्रा है। परिवार की बात करें तो सीमा के माता-पिता दोनों ही अशिक्षित हैं। महादलित वर्ग से आने वाले सीमा के पिता खीरन मांझी बाहर मजदूरी करते हैं तो वहीं, मां बेबी देवी ईंट भट्टे पर काम करती हैं। यह जानकर आपको हैरानी होगी कि सीमा एक पैर न होते हुए भी रोज घर से स्कूल तक 500 मीटर का सफर पैदल ही तय करती है। सड़क न होने के बावजूद वह, पगडंडियों के सहारे अपने स्कूल पहुंचती है। किसी के ऊपर भार न बनते हुए वह अपने सारे काम खुद ही पूरा करती है।

जिला प्रशासन ने भेंट की ट्राइसाइकिल
सीमा को जिलाधिकारी अवनीश कुमार ने बुधवार को एक ट्राइसाइकिल प्रदान की है। जिलाधिकारी, जमुई के पुलिस अधीक्षक और अन्य अधिकारी बुधवार को सीमा के घर पहुंचे और उसे ट्राइसाइकिल भेंट की। जिलाधिकारी ने यह वादा भी किया कि जिस स्कूल में सीमा पढ़ती है उसे एक महीने के अंदर स्मार्ट बना दिया जाएगा।

कृत्रिम पैर के लिए नाप भी लिया गया
आईपीएस अधिकारी सुकृति माधव मिश्रा ने यह जानकारी ट्विटर पर साझा की। उन्होंने लिखा कि सीमा को ट्राइसाइकिल मिल गई है। कृत्रिम पैर के लिए नाप भी ले लिया गया है। सीमा के सपनों की उड़ान की कोई सीमा नहीं होनी चाहिए। मिश्रा ने आगे लिखा कि सीमा के साइकिल और आर्टिफिशियल लिंब के लिए बात हो गई है। जल्द ही कृत्रिम पैर का प्रत्यारोपण भी किया जायेगा। मिश्रा उत्तर प्रदेश कैडर के 2015 बैच के आईपीएस (भारतीय पुलिस सेवा) अधिकारी हैं।
सड़क हादसे में खोया पैर
सीमा ने करीब दो वर्ष पहले सड़क हादसे में अपना एक पैर खो दिया था। ट्रैक्टर की चपेट में आने के कारण उसके एक पैर में काफी गंभीर चोटें आई थी। अस्पताल में डॉक्टर को उनका पैर काट कर अलग करना पड़ा। हालांकि, सीमा ने इस हादसे को अपनी कमजोरी नहीं बनने दिया। दूसरे बच्चों को स्कूल जाते देख कर सीमा ने भी इसकी जिद की। इसके बाद सीमा के माता-पिता ने उसका नाम स्कूल में लिखाया। सीमा अपने पैर के न होने की परवाह किए बिना स्कूल पहुंचती है और पूरी लगन से पढ़ाई करती है।
क्या कहते हैं स्कूल वाले?
सीमा के स्कूल के शिक्षक आदि भी उसके जज्बे की तारीफ करते हैं। वे बताते हैं कि दिव्यांग होने के बावजूद भी सीमा एक पैर के सहारे ही पगडंडियों से स्कूल आती है। अपने सभी कार्य और स्कूल का होमवर्क आदि भी सीमा समय से करती है। सीमा की मां के अनुसार उनके पास इतने पैसे नहीं है कि सीमा के लिए कॉपी-किताब आदि खरीद सके। सीमा के हौसले को देखते हुए स्कूल के शिक्षकों की ओर से यह सब मुहैया कराया जाता है। सभी को सीमा पर गर्व है और विश्वास है कि वह घरवालों का नाम रौशन करेंगी।
टीचर बनना चाहती है सीमा
सीमा का सपना बड़ी होकर टीचर बनने का है। वह पढ़-लिख कर इस काबिल बनना चाहती है ताकि परिवार की मदद कर सके। इसलिए ही सीमा ने जिद कर के स्कूल में अपना नाम लिखाया है।