रायपुर। छत्तीसगढ़ के दूरदराज के इलाकों में जल संदूषण (वाटर कंटेमिनेशन) हमेशा से चिंता का गंभीर मुद्दा रहा है। यहां का पानी फ्लोराइड, आयरन, टर्बिडिटी, आर्सेनिक, नाइट्रेट और पैथोजन से संदूषण होता है। इस समस्या के समाधान के लिए हर घर में नल कनेक्शन उपलब्ध कराने के लिए सरकार ने जल जीवन मिशन की शुरुआत की थी।
हालांकि, इस योजना में चुनौती यह सुनिश्चित करना है कि पानी की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए समय-समय पर जांच हो और इसकी निगरानी होती रहे। किसी समुदाय के स्वास्थ्य का निर्धारण करने में पेयजल की गुणवत्ता एक शक्तिशाली पर्यावरणीय कारक है। संदूषित पानी का सेवन करने से कई स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।

इससे बच्चों, बुजुर्गों और बीमार व्यक्तियों के बीमार पडऩे की आशंका अधिक होती है। पेयजल में कोलिफॉर्म बैक्टीरिया की मौजूदगी डायरिया, उल्टी, एंठन, जी मिचलाना, सिरदर्द और बुखार जैसी समस्याएं उत्पन्न कर सकती है। आयरन की अधिक मात्रा से पेट की बीमारियां और फ्लोराइड से दांतों और हड्डियों को नुकसान पहुंच सकता है।

इंडियन नेचुरल रिसोर्स इकनॉमिक्स एंड मैनेजमेंट (आईएमआरईएम) फाउंडेशन के डॉ. सुंदरराजन कृष्णन कहते हैं कि जल संदूषण चाहे बैक्टीरियल हो या केमिकल, इसका स्वास्थ्य पर गंभीर असर पड़ता है। बच्चों की हड्डियों के विकास पर विपरीत असर पड़ता है और कैल्शियम की कमी से उन्हें समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।
इस समस्या के समाधान के लिए ‘जल गुणवत्ता चैंपियनों’ की पहचान की जा रही है। इन्हें जल सुरक्षा के प्रति जागरूकता फैलाने और जमीनी स्तर पर फील्ड टेस्ट किट का इस्तेमाल करते हुए पानी की जांच करने के लिए विशेष प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है। बता दें कि जल जीवन मिशन की शुरुआत साल 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की थी।