लखनऊ (एजेंसी)। भाजपा छोड़कर सपा में शामिल होने वाले पिछड़ा वर्ग के नेताओं ने चुनावी लड़ाई दिलचस्प बना दी है। हालांकि, अखिलेश यादव ने अब भाजपा से किसी नेता को न लेने के बात कही है। लेकिन अब तक जो 14 नेता सपा में पहुंचे हैं उन्हें समायोजित कर पाना उनके लिए भी मुश्किल होगा। सपा में जाने वाले ज्यादातर विधायक बसपा पृष्ठभूमि के हैं। इनमें भी अधिकतर पिछले चुनाव में ही बसपा या अन्य दलों से भाजपा में आए थे। सपा को लगता है कि बड़ी संख्या में पिछड़ा वर्ग के नेताओं के भाजपा से उसके पाले में आने से माहौल बनेगा। भाजपा को लग रहा है कि पांच वर्ष तक सत्ता की मलाई काटकर दलबदल करने वालों की अवसरवादिता जनता समझ रही है, जिसका खामियाजा इन्हें भुगतना पड़ेगा। पर, इस सबके बीच चुनावी तस्वीर दिलचस्प होती जा रही है।
भाजपा ने अपने मौजूदा विधायकों की जीत की संभावना आंकने के लिए कई स्तर पर सर्वे कराए। एजेंसियों के अलावा संगठन, संघ परिवार व कुछ व्यक्तियों के जरिये स्वतंत्र फीडबैक लिया गया। सामान्य फीडबैक यह रहा कि जनता में सरकार विरोधी लहर नहीं है, लेकिन तमाम मौजूदा विधायकों के खिलाफ जबर्दस्त आक्रोश है। क्षेत्र में निष्क्रियता, दूसरे दल से आकर विधायक व मंत्री बनने वालों का भाजपा से तालमेल का अभाव, भ्रष्टाचार, बदजुबानी व दबंगई जैसे कई कारण सामने आए। तीन महीने पहले से ही बड़ी संख्या में विधायकों के टिकट काटे जाने की अटकलें शुरू हो गई थीं। भाजपा ने पार्टी के प्रदर्शन को सुधारने के लिए कई कदम उठाए।

मसलन, केंद्र की तरह राज्य सरकार ने राशन देने की कार्यवाही जारी रखने का एलान किया। पेट्रोल व डीजल के रेट घटाए, राशन पैकेज में नमक व तेल जैसी चीजें बढ़ाईं। लाखों कर्मियों व पंचायत प्रतिनिधियों के मानदेय बढ़ाए, कोविड प्रोत्साहन भत्ता दिया। करोड़ों श्रमिकों के लिए एक-एक हजार रुपये की दो किस्तें देने का एलान किया। इसके बाद विधायकों की जीत की संभावना पर फिर सर्वे कराया गया। स्थिति में सुधार की रिपोर्ट आई, लेकिन कई विधायकों के टिकट काटने पर ही चुनाव जीतने के समीकरण बनते दिखे। इसके बाद भाजपा में भगदड़ मच गई। पार्टी छोडऩे वाले विधायक व मंत्री दलितों, पिछड़ों, गरीबों व नौजवानों की उपेक्षा का आरोप लगा रहे हैं। वहीं, भाजपा टिकट कटने का अंदाजा होने पर दलबदल का आरोप लगा रही है। कुल मिलाकर पिछड़ों की 54 फीसदी आबादी को रिझाने की जंग छिड़ी हुई है।
