भिलाई। भिलाई में जब कांग्रेस ने प्रत्याशी चयन की कवायद प्रारम्भ की तो लगातार तीन बार के पार्षद रहे नीरज पाल के नाम के साथ अचानक ही उनका उपनाम वर्मा भी लिखा देखने को मिला। तभी से यह कयास लगने शुरू हुए कि दाल में कहीं-कुछ काला है। दरअसल, नीरज पाल का नाम तभी तय कर लिया गया था। बस यह बताने की आवश्यकता थी कि नीरज पाल विशुद्ध छत्तीसगढिय़ा है। कांग्रेस ने उन्हें वार्ड क्रं. 60 सेक्टर-5 पश्चिम से प्रत्याशी बनाया और वे बड़ी लीड से जीतने में भी कामयाब रहे। महापौर पद के लिए जब आधा दर्जन नाम सामने आए तो उनमें से एक नाम नीरज पाल का भी था, लेकिन उन्होंने महापौर के लिए स्वयं होकर दावेदारी नहीं की। बड़ी सहजता और सरलता के साथ वे पार्टी के तमाम पार्षदों के साथ पुरी टूर का लुत्फ लेते रहे। शायद उनके भीतर यह भरोसा पहले से ही था कि देर-सबेर भिलाई निगम की कमान उन्हीं के हाथों में आनी है।

कई राजनीतिक पंडितों के लिए नीरज पाल का नाम महापौर के लिए अप्रत्याशित इसलिए था क्योंकि उनके गुणा-भाग में यह पद सामान्य वर्ग के लिए था। वहीं कई लोग कुछ पार्षदों को मुख्यमंत्री तो कुछ को विधायक का समर्थक बताकर उनके नाम पर अंतिम मुहर लगा रहे थे। महापौर और सभापति दोनों पद कांग्रेस ने पिछड़ा वर्ग को देकर बड़ा जोखिम मोल लिया है। इसके परिणाम दूरगामी तो होंगी ही, किन्तु तत्काल भी देखने को मिले, जब वरिष्ठ महिला पार्षद सुभद्रा सिंह ने खुलकर नाराजगी जाहिर करते हुए बगावत का ऐलान कर दिया। उन्होंने न केवल महापौर पद के लिए नामांकन दाखिल किया, अपितु स्थानीय नेताओं की शिकायत मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और छत्तीसगढ़ प्रभारी पीएल पुनिया से करने की भी बात कही। हालांकि बाद में उन्हें मना लिया गया और उनका नामांकन वापस हो गया। इस दौरान सुभद्रा सिंह ने अपनी पार्षदी छोडऩे का भी प्रस्ताव कांग्रेस के नेताओं को दे दिया। बात सिर्फ इतनी ही नहीं है।


सभापति पद के लिए एक नए नवेले पार्षद का नाम आगे बढ़ाने के पीछे भी नई कहानी सामने आई है। जिस तरह से कांग्रेस ने भिलाई-चरोदा व रिसाली निगम में साहू समाज को किनारे लगाया, उसके बाद इस समाज के भीतर गहन निराशा और नाराजगी देखी जा रही थी। साहू समाज को भाजपा का मुख्य वोट-बैंक माना जाता है, लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव में इस समाज ने कांग्रेस के पक्ष में वोटिंग की थी। साहू समाज के कई व्हाट्सएप ग्रुप्स में यह चर्चा कई दिनों से चल रही थी कि कांग्रेस ने पहले विधानसभा चुनाव और अब नगरीय निकाय के चुनाव में उनका सिर्फ उपयोग किया और पद देने की बारी आई तो दूसरे समाजों को आगे कर दिया। इस नाराजगी की भनक कांग्रेस के रणनीतिकारों को भी थी। इसीलिए सभापति पद के लिए अचानक ही एक नए नाम गिरवर बंटी साहू को आगे किया गया। आने वाले दिनों में यह देखना बेहद दिलचस्प होगा कि गिरवर साहू उस सभा का संचालन बतौर सभापति किस तरह से कर पाएंगे, जिसमें विपक्ष के रूप में वशिष्ठ नारायण मिश्रा, पीयूष मिश्रा, रिकेश सेन और दया सिंह जैसे धाकड़ पार्षद मौजूद रहेंगे।


दोनों पद पिछड़ा वर्ग को
कांग्रेस ने महापौर और सभापति के पद पिछड़ा वर्ग की झोली में डाल दिए हैं। यह एक बड़ा जोखिम है, लेकिन इसके पीछे पार्टी की भविष्य की रणनीति भी दिख रही है। पूर्व में माना जा रहा था कि भिलाई का महापौर वैशाली नगर विधानसभा क्षेत्र से होगा और आगे चलकर वही इस विधानसभा क्षेत्र से पार्टी का प्रत्याशी भी होगा। लेकिन टाउनशिप से महापौर बनाए जाने के बाद अनुमान लगाया जा सकता है कि क्यों विधायक देवेन्द्र यादव के कई करीबियों को किनारे लगा दिया गया। दरअसल, आने वाले दिनों में विधायक देवेन्द्र का ही करीबी पार्षद वैशाली नगर से दावेदारी करता दिख सकता है। जाहिर है कि वह सामान्य वर्ग से होगा। इसके जरिए कांग्रेस सामान्य वर्ग के मतदाताओं को साधने और उनकी नाराजगी दूर करने की भी कोशिश करेगी।
सुभद्रा की नाराजगी के मायने
सुभद्रा सिंह को आक्रामक राजनीति करने वाली नेत्री के रूप में जाना जाता है। पार्षद निर्वाचित होने के बाद से उन्होंने लगातार और बार-बार इस बात पर जोर दिया था कि क्योंकि अन्य वर्गों को महत्वपूर्ण पदों में आरक्षण का लाभ मिल जाता है, इसलिए सामान्य वर्ग के लिए आरक्षित भिलाई महापौर पद के लिए इसी वर्ग से प्रत्याशी होना चाहिए। उन्होंने इस बात को कल ही रायपुर में प्रभारी मंत्री मो. अकबर और चुनाव प्रभारी गिरीश देवांगन के समक्ष रिपीट किया था। आज जब महापौर के लिए नीरज पाल और सभापति के लिए गिरवर बंटी साहू के नाम सामने आए तो सुभद्रा सिंह की नाराजगी स्वाभाविक थी। अगली बार महापौर पद के लिए सामान्य वर्ग को जब मौका मिलेगा, तब तक बहुत देर हो चुकी होगी। यही वजह थी कि नाराज सुभद्रा ने रोते-बिलखते हुए महापौर चुनाव लडऩे का फैसला किया और नामांकन भी दाखिल कर दिया। जब उनकी मान मनौव्वल शुरू हुई तो उन्होंने पार्षद पद से इस्तीफा तक देने की पेशकश कर दी। हालांकि वे बाद में मान भी गईं और अपना नामांकन भी वापस ले लिया। किन्तु कांग्रेस पार्टी को उनकी नाराजगी के मायनों को भी समझना होगा।
22 के मुकाबले मिले 44 वोट, दो भाजपाईयों ने की क्रॉस वोटिंग
कांग्रेस प्रत्याशी नीरज पाल को कुल 44 वोट मिले, जबकि उनके प्रतिद्वंदी महेश वर्मा को 22 वोट ही मिल पाए। कांग्रेस के कुल 37 पार्षद निर्वाचित हुए थे, 44 मत मिलने से स्पष्ट है कि नीरज पाल को 5 निर्दलीयों और 2 भाजपा पार्षदों का साथ मिला। वहीं निर्दलीय योगेश साहू को कुल 4 वोट मिले। यही नतीजे सभापति चुनाव के भी रहे। नीरज पाल लगातार चौथी बार पार्षद का चुनाव जीते। उन्हें सुलझा हुआ और शांत मिजाज नेता माना जाता है। भिलाई नगर निगम के वे पांचवें महापौर होंगे। एक बार भाजपाई महापौर को छोड़ दें तो यह चौथा अवसर है, जब भिलाई में कांग्रेस का महापौर बना। भाजपा ने महापौर के लिए अपने सीनियर पार्षद महेश वर्मा का नामांकन दाखिल कराया था। वहीं श्याम सुंदर राव को सभापति प्रत्याशी बनाया गया। राव पहले भी सभापति रह चुके थे। वहीं अपील समिति में कांग्रेस के सेवन कुमार, अंजु सिन्हा, रविशंकर व सुभम झा ने नामांकन भरा।
रायपुर में पिलाई घुट्टी, फिर भी हो गया बवाल
भिलाई नगर निगम में महापौर के लिए आधा दर्जन से ज्यादा दावेदार थे। पार्टी को यह अंदेशा था कि इनमें से कुछ दावेदार गड़बड़ कर सकते हैं। कई ने तो पुरी टूर के दौरान लामबंदी के प्रयास भीकिए थे। इसीलिए उन्हें टूर पर भेजने के दौरान बार-बार अनुशासन और एकता की घुट्टी पिलाई जाती रही। कल जब सभी पार्षदों को रायपुर के एक होटल में ठहराया गया तो वहां भी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने पार्षदों से वन टू वन बातचीत कर उनके भीतर की बगावत को निकालने की चेष्टा की थी। पार्षदों को बार-बार इस बात का अहसास कराया गया कि प्रत्याशी मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और विधायक देवेन्द्र यादव की पसंद का होगा। अब जो वरिष्ठ पार्षद महापौर और सभापति के पद से वंचित रह गए हैं, उन्हें एमआईसी में शामिल करने की चर्चा है।
7-7 पार्षदों ने ली शपथ
इससे पहले कलेक्टर डॉ. सर्वेश्वर नरेन्द्र भुरे ने सभी पार्षदों को पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाई। पार्षदों को 7-7 की संख्या में शपथ ग्रहण करवाई गई। इसके लिए सुबह 10 बजे का वक्त तय किया गया था। इस दौरान कांग्रेस व भाजपा के सीनियर नेता भी मौजूद रहे। मतगणना पश्चात जब यह तय हो गया कि कांग्रेस को पूर्ण बहुमत मिल गया है, तभी से सभी पार्षदों को पुरी के लिए रवाना कर दिया गया। पुरी में पॉलिटिकल टूर से कल ही सभी कांग्रेस पार्षद रायपुर लौटे। वहां से सभी को आज सुबह भिलाई लाया गया। इसके बाद शपथ ग्रहण और फिर महापौर व सभापति के चुनाव की प्रक्रिया प्रारम्भ हुई।