भिलाई। पिछले विधानसभा चुनाव में महज 15 सीटों तक सिमटकर रह गई भारतीय जनता पार्टी में अब सत्ता हासिल करने की बेचैनी साफ दिख रही है। लगातार तीन बार सरकार में रहने वाली भाजपा और उसके नेता विपक्ष की भूमिका को स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं। यही वजह है कि एक बार फिर राज्य की 90 सीटों के लिए नए सिरे से तैयारियां शुरू की गई है। हालांकि जिस तरह के कदम भावी चुनावों को लेकर उठाए जा रहे हैं, उसे सर्वथा नाकाफी ही कहा जाएगा। जाहिर है कि नाकाफी कदमों से मिशन 2023 के सपनों को पंख नहीं लगेंगे। भाजपा चुनाव से 2 साल पहले ही मिशन मोड में आ गई थी। अब इसी मिशन को चरणबद्ध तरीके से आगे बढ़ाया जा रहा है।
भारतीय जनता पार्टी ने मिशन 2023 के मद्देनजर सभी 90 सीटों पर सम्मेलन करने की ठानी है। बताते हैं कि केन्द्रीय संगठन ने प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र के लिए अलग से योजना बनाई है। बाकायदा इसके लिए प्रदेश संगठन महामंत्री पवन साय को प्रशिक्षित किया गया है। पूरे राज्य में घूमने के लिए उन्हें एक नई गाड़ी भी मुहैय्या कराई गई है। इससे पहले भाजपा ने बस्तर में चिंतन शिविर किया था और आने वाले दिनों में सरगुजा में भी ऐसा ही शिविर होने जा रहा है। दोनों आदिवासी इलाके हैं। इससे जाहिर होता है कि पार्टी आदिवासी वोटों को लेकर ज्यादा गम्भीर है। बस्तर में कुल 12 सीटें हैं, वहीं सरगुजा में 14 सीटें हैं। विगत चुनाव में इन दोनों आदिवासी इलाकों से भाजपा का सूपड़ा साफ हो गया था। हालांकि दंतेवाड़ा से भाजपा के भीमा मंडावी इकलौती सीट जीतने में कामयाब रहे थे, किन्तु नक्सल हमले में उनके निधन के बाद हुए उपचुनाव में यह सीट भी कांग्रेस के खाते में चली गई थी। भाजपा ने अब इन 26 सीटों के लिए विशेष योजना बनाई है।
पार्टी अपने वरिष्ठ नेताओं को संभाग स्तर पर जिम्मेदारी सौंपने जा रही है। ये नेता चैनलाइज तरीके से काम और निगरानी करेंगे। कार्यकर्ताओं को विधानसभावार न केवल प्रशिक्षण दिया जाएगा अपितु घर बैठे कार्यकर्ताओं को सक्रिय करने का काम भी इन्हीं नेताओं के जिम्मे होगा। वहीं प्रत्येक क्षेत्र में सम्मेलन भी होंगे। इन सबके जरिए कार्यकर्ताओं से यह अपेक्षा की जाएगी कि वे केन्द्र सरकार की योजनाओं का प्रचार-प्रसार करें और राज्य सरकार की योजनाओं में जो कमियां हैं, उन्हें उजागर करें। प्रदेश की कांग्रेस सरकार को घेरने के लिए भी रणनीति बनाई जाएगी। इन सबसे पहले जिला स्तर पर कार्यसमिति और मोर्चा-प्रकोष्ठों की बैठकें होंगी।

सम्मेलन और बैठकों से कैसे निकले जीत
भाजपा ने मिशन 2023 को लेकर जो नया खाका तैयार किया है, उसमें सम्मेलन और बैठकों पर ज्यादा फोकस है। इससे पार्टी को निष्क्रिय कार्यकर्ताओं को घर से निकालकर मैदान तक पहुंचाने में काफी मदद मिलेगी, किन्तु मैदान में आकर इन कार्यकर्ताओं को क्या करना है, यह सबसे महत्वपूर्ण है। वर्तमान में पार्टी के पास जो 14 सीटें हैं, यह बेहद विपरीत हालातों में जीती हुई सीटें हैं। 2023 में 2018 जितने बुरे हालात होने की संभावना नहीं है, ऐसे में उसे इन 14 सीटों को 46 या उससे ऊपर के आंकड़े कर ले जाना होगा। बस्तर और सरगुजा क्षेत्र में फोकस कर पार्टी ने आदिवासी इलाकों की 26 सीटों पर सीधे-सीधे ध्यान केन्द्रित कर दिया है, किन्तु वर्तमान सीटों और इन 26 सीटों को मिला भी लें तब भी पार्टी सत्ता के तिलिस्मी आंकड़े तक नहीं पहुंचती। जाहिर है कि ऐसे में उसे मैदानी इलाकों पर फोकस करना होगा। इसीलिए विधानसभावार सम्मेलन आयोजित किया जा रहा है।
संभागों में मिली निराशा
2018 के नतीजों ने भाजपा को राज्य के इतिहास में सबसे ज्यादा निराश किया। बस्तर और सरगुजा जैसे आदिवासी इलाकों से पार्टी पूरी तरह से निपट गई। वहीं दुर्ग संभाग की 20 सीटों में से उसे महज 2 सीटें ही मिली। रायपुर संभाग की भी 20 सीटों में भाजपा को 5 सीटों पर संतोष करना पड़ा। अलबत्ता, 24 सीटों वाले बिलासपुर संभाग से जरूर पार्टी को 7 सीटें मिली। जाहिर है कि इन हालातों में भाजपा को किसी एक क्षेत्र पर नहीं बल्कि पूरे राज्य पर फोकस करने की दरकार है। शायद यही वजह है कि पार्टी के रणनीतिकारों को यह समझ आ गया है कि धीरे-धीरे पूरे छत्तीसगढ़ पर पहुंच और पकड़ बनानी होगी। सत्ता में रहते 15 सालों तक जिन कार्यकर्ताओं की कभी पूछ-परख नहीं की गई, अब उन्हीं कार्यकर्ताओं पर एक बार फिर से अपेक्षाओं का बोझ लादा जा रहा है।
…तो क्या सिंह लॉबी ले डूबी
कभी प्रदेश में भाजपा की रीढ़ रहे आदिवासी नेता नंदकुमार साय का बयान पार्टी के लिए ही सिरदर्द बनने जा रहा है। साय ने जशपुर में जनजातियों को लेकर पार्टी की नीतियों पर न केवल सवाल उठाए, अपितु डॉ. रमन सिंह, सौदान सिंह और राजनाथ सिंह पर केन्द्रीय नेतृत्व को बरगलाने का भी आरोप लगा दिया। उनके बयान के बाद अब यह सवाल उठ रहे हैं कि क्या प्रदेश में भाजपा की हार के पीछे सिंह लॉबी थी? नंदकुमार साय के मुताबिक, आलाकमान आदिवासियों को ताकतवर बनाना चाहता है, लेकिन 15 साल की सत्ता के बाद भी भाजपा के प्रति आदिवासियों की नाराजगी पर विचार करने की जरूरत है। साय ने कहा कि उन्होंने 2016 में ही प्रधानमंत्री को छत्तीसगढ़ की जमीनी हकीकत बता दी थी और शीर्ष नेतृत्व से यह अपेक्षा की थी कि प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन नहीं करने की स्थिति में बुरी पराजय हो सकती है। किन्तु तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह, प्रदेश प्रभारी सौदान सिंह व केन्द्रीय मंत्री राजनाथ सिंह ने गलत रिपोर्ट प्रस्तुत की और 65 प्लस का नारा देकर शीर्ष नेताओं को भ्रमित किया।




