फार्मूला लागू हुआ तो 90 में से 36 सीटें देनी होगी महिलाओं को
दुर्ग। उत्तर प्रदेश में हाशिए पर चल रही कांग्रेस पार्टी ने वहां बड़ा दांव खेला है। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने वहां 40 फीसद महिलाओं को टिकट देने का ऐलान किया है। इससे यूपी की राजनीति में अचानक उफान आ गया है। प्रियंका की इस घोषणा से पार्टी को कितना नफा-नुकसान होगा, इसे छोड़ दें तो भी इससे महिलाओं के बीच अच्छा संदेश जाना तय है। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने प्रियंका-फार्मूले की तारीफ की है, इसके बाद से यह सवाल उठ रहा है कि क्या 2023 में होने वाले चुनाव में कांग्रेस छत्तीसगढ़ में भी इस फार्मूले को अमलीजामा पहनाएगी? यदि ऐसा होता है तो 90 सीटों वाले छत्तीसगढ़ राज्य में कांग्रेस को महिलाओं को कुल 36 सीटें देनी होगी। रिकार्ड बताता है कि कांग्रेस के लिए महिलाओं को टिकट देना फायदे का सौदा रहा है। इसके विपरीत भाजपा के लिए महिलाओं को टिकट देना नुकसानदायक साबित हुआ है।
प्रियंका फार्मूला सामने आने के बाद छत्तीसगढ़ की पुरूष-प्रधान राजनीति में हलचल देखी जा रही है। जानकारों का मानना है कि पार्टी ऐसी सीटों पर महिलाओं को आजमा सकती है, जहां उसके पुरूष प्रत्याशियों का प्रदर्शन संतोषजनक नहीं रहा है। इसके चलते पार्टी के कई दिग्गज नेताओं की नींद उडऩे की पूरी संभावना है। कहा तो यह भी जा रहा है कि कई नेता नई सीटों के लिए गुणा-भाग लगाने में भी जुट गए हैं। 90 सीटों वाली छत्तीसगढ़ विधानसभा में वर्तमान में कांग्रेस की कुल 11 महिला विधायक हैं। वहीं भाजपा, जोगी कांग्रेस व बसपा के पास 1-1 सीटें हैं। यदि कांग्रेस में फार्मूला लागू होता है पार्टी को महिलाओं के लिए 25 नई सीटें तलाशनी होगी। जाहिर है कि यहां पार्टी महिलाओं के रूप में नए चेहरों पर ही दांव लगाएगी। 2018 के चुनाव में कांग्रेस ने 13 महिला प्रत्याशियों को टिकट दिया था, जिनमें से 10 ने जीत दर्ज की। दंतेवाड़ा में हुए उपचुनाव के बाद वहां से एक अन्य महिला ने जीत दर्ज कर इस संख्या में इजाफा किया। इसके विपरीत भाजपा ने 14 सीटों पर महिला उम्मीदवारों को उतारा था, जिसमें से उसे 13 सीटों पर हार का सामना करना पड़ा। यहां तक कि भाजपा शासनकाल में मंत्री रही महिला भी चुनाव में जीत का परचम नहीं लहरा पाई।

अमल हो तो नतीजे निकलें
2018 के चुनाव से पहले छत्तीसगढ़ में महिलाओं को 33 फीसदी टिकट देने की वकालत की गई थी, किन्तु बनते-बिगड़े राजनीतिक समीकरणों ने ऐसा नहीं होने दिया। यदि 33 फीसदी महिला आरक्षण के आधार पर टिकट दी जाती तो पार्टी को राज्य में कुल 27 महिलाओं को टिकट देनी पड़ती। इसके विपरीत महज 13 सीटें ही दी गई। 13 सीटों में से 10 सीटों (1 सीट उपचुनाव को छोड़कर) पर एकतरफा जीत दर्ज करना भी एक बड़ी वजह है कि इस बार कांग्रेस की महिलाओं को अपने लिए संभावनाएं दिख रही है। हालांकि महिलाओं की इस जीत को उस लहर का नतीजा भी बताया जा रहा है, जिसके चलते भाजपा की तत्कालीन सरकार को बहुत बुरी पराजय मिली, जबकि कांग्रेस अभूतपूर्व बहुमत के साथ सत्ता में आई। पिछले चुनाव के नतीजे बताते हैं कि कांग्रेस के ज्यादातर प्रत्याशी बड़े अंतर से चुनाव जीते थे। इसी लहर में महिला प्रत्याशियों की भी नैय्या पार लग गई।

तलाशनी पड़ेगी 25 नई सीटें
यदि यूपी की तर्ज पर कांग्रेस यहां भी 40 फीसदी सीटे महिलाओं को देने की मानसिकता बनाती है तो उसे 25 नई सीटें तलाशनी होगी। मौजूदा विधानसभा में कांग्रेस के पास 11 महिला विधायक हैं। इस लिहाज से यदि मौजूदा सभी महिलाओं को रिपीट भी किया जाता है तो 25 नए चेहरे सामने लाने होंगे। कांग्रेस के कई नेता प्रियंका-फार्मूले को छत्तीसगढ़ में सिरे से नकार रहे हैं। इन नेताओं का कहना है कि छत्तीसगढ़ के संदर्भ में यह फार्मूला कारगर नहीं माना जा सकता। सबसे पहले तो यहां कांग्रेस-भाजपा के अलावा अन्य दलों का जनाधार न के बराबर है। इस पर छोटा राज्य होने की वजह से सब कुछ पहले से ही तय रहता है। राजनीतिक, जातीय व सामाजिक समीकरणों के अलावा और भी बहुत कुछ देखना होता है। ऐसे में 40 फीसदी सीटें देना संभव नहीं दिखता। हालांकि पार्टी की महिला नेत्रियों को प्रियंका फार्मूले में अवसर और संभावनाएं दोनों नजर आ रही है।
पुरूषों के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन
पिछले विधानसभा चुनाव के नतीजों को देखें तो कांग्रेस में महिलाओं की जीत का औसत पुरूष प्रत्याशियों की तुलना में बेहतर रहा। कांग्रेस ने 13 महिलाओं को मौका दिया था, जिनमें 10 ने जीत दर्ज की। दंतेवाड़ा विधानसभा क्षेत्र में हुए उपचुनाव के बाद यह संख्या बढ़कर 11 हो गई। पार्टी ने शेष 77 विधानसभा सीटों पर पुरुषों का मौका दिया गया, जिनमें 59 सीटों पर जीत दर्ज की। इससे पहले वर्ष 2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 10 महिलाओं को टिकट दिया था। भाजपा ने विगत चुनाव में 14 सीटों पर महिला प्रत्याशी उतारे, लेकिन उसे सिर्फ 1 धमतरी सीट से ही जीत मिली। इस आधार पर कहा जा सकता है कि यदि कांग्रेस अगले चुनाव में ज्यादा से ज्यादा महिला चेहरों पर दांव लगाए तो उसे इसका फायदा हो सकता है। हालांकि राजनीतिक विश्लेषक लिंग आधारित नतीजों को नकारते हैं। अंतत: प्रत्याशी की छवि, चेहरा और काम ही आधार बनते हैं।
विधानसभा में महिला विधायक एवं क्षेत्र
- अंबिका सिंहदेव- बैकुंठपुर (कांग्रेस)
- उत्तरी जांगड़े- सारंगढ़ (कांग्रेस)
- रेणु जोगी – कोटा (सीजेसीजे)
- रश्मि सिंह – तखतपुर (कांग्रेस)
- इंदू बंजारे – पामगढ़ (बीएसपी)
- शकुंतला साहू – कसडोल (कांग्रेस)
- अनिता शर्मा – धरसींवा (कांग्रेस)
- डॉ. लक्ष्मी ध्रुव – सिंहावा (कांग्रेस)
- रंजना साहू – धमतरी (भाजपा)
- संगीता सिन्हा – संजारी बालोद (कांग्रेस)
- अनिला भेडिय़ा – डौंडीलोहारा (कांग्रेस)
- ममता चंद्राकर – पंडरिया (कांग्रेस)
- छन्नी साहू – खुज्जी (कांग्रेस)
- देवती कर्मा – दंतेवाड़ा (कांग्रेस)