श्रीकंचनपथ न्यूज
भिलाई। 2008 में हुए परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई वैशाली नगर विधानसभा सीट भाजपा का अभेद्य किला बन गई है। परिसीमन के बाद हुए कुल 4 विधानसभा चुनाव में से 3 चुनाव में भाजपा को एकतरफा जीत मिली। जबकि उसकी इकलौती पराजय की वजह स्वयं की त्रुटियां और गलत प्रत्याशी चयन रही। इन आधार पर देखें तो ‘दुखती रग’ बन गई वैशाली नगर सीट फतह करना कांग्रेस के लिए दिवास्वप्न की तरह है। सभी चुनाव के नतीजों पर गौर करें तो भाजपा की जीत हर बार बड़े अंतर से हुई, जब भाजपा हारी तो जीत का अंदर भी कम था। कांग्रेस ने यहां हर बार प्रत्याशी बदलने के प्रयोग किए, किन्तु ये प्रयोग भी सफल नहीं हो पाए। वैशाली नगर की सीट दुर्ग संभाग की उन दो सीटों में शामिल है, जहां भाजपा को जीत मिली। गौरतलब है कि कुल 20 सीटों वाले दुर्ग संभाग में विगत विधानसभा चुनाव में भाजपा को 2 ही सीटें हासिल हुई थी। इनमें से एक सीट राजनांदगांव की थी, जहां से तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह मैदान में थे।
कांग्रेस के लिए दुर्ग जिले की वैशाली नगर सीट सबसे अहम् हो गई है। संगठन स्तर पर इस सीट को नाक से जोड़कर देखा जा रहा है। क्योंकि यह सीट मुख्यमंत्री और गृहमंत्री के गृह जिले की है, इसलिए भी पार्टी हर हाल में इस सीट को कब्जाने की जुगत लगा रही है। इसके लिए संगठन में कसावट से लेकर कार्यकर्ताओं को चार्ज करने, वार्ड स्तर पर नई टीम तैयार करने, चुनाव प्रबंधन के गुर सिखाने जैसे महत्वपूर्ण कदम उठाए जा रहे हैं। दरअसल, कांग्रेस अब वैशाली नगर की दुखती रग का दर्द और ज्यादा बर्दाश्त करने के मूड़ में नहीं है। इसकी बानगी भी देखने को मिल रही है। आने वाले दिनों में भिलाई नगर निगम के चुनाव होने हैं। वर्तमान में इस क्षेत्र में भाजपा के पार्षदों की संख्या बहुतायत में है। कांग्रेस की मंशा है कि यदि वैशाली नगर के वार्डों में कांग्रेस को बहुमत मिलता है तो उसके लिए अगले विधानसभा चुनाव में इस सीट को फिर से हासिल करना आसान हो जाएगा। वर्तमान में इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व विद्यारतन भसीन कर रहे हैं। वे यहां से लगातार दो बार चुनाव जीतकर पार्टी संगठन में अपना दबदबा बना चुके हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में जब कांग्रेस के प्रत्याशी पूरे प्रदेश में बड़े अंतर से जीत रहे थे, तब भसीन ने वैशाली नगर में 18 हजार से ज्यादा मतों से जीत हासिल कर भाजपा का परचम लहराया था।
आरएसएस का गढ़
वैशाली नगर क्षेत्र को आरएसएस का गढ़ माना जाता है। यही वजह है कि यहां भाजपा के प्रत्याशियों को बड़ी लीड के साथ जीत मिलती रही है। इस क्षेत्र में नगर निगम के करीब 27 वार्ड आते हैं। इन वार्डों में से ज्यादातर में भाजपा का बहुमत है। घोषित तौर पर भले ही यहां भाजपा के 12 पार्षद हों, किन्तु भाजपा समर्थक पार्षदों की संख्या भी कम नहीं है। रिकेश सेन, रामानंद मौर्य, पीयूष मिश्रा समेत कई पार्षद भाजपाई हैं, जिन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीते। वहीं कांग्रेस के कुल 7 पार्षद निर्वाचित हुए थे। उसे भी कई निर्दलीय पार्षदों का समर्थन हासिल है। दो निर्दलियों को तो एमआईसी में भी शामिल किया गया था। भिलाई नगर निगम की अगुवाई करने वाले देवेन्द्र यादव वर्तमान में भिलाई नगर क्षेत्र के विधायक हैं। ऐसे में कांग्रेस को उनसे वैशाली नगर क्षेत्र में भी काफी उम्मीदें है। महापौर रहते अपने पिछले कार्यकाल में उन्होंने वैशाली नगर में भी विकास का पिटारा खोला था। इसलिए पार्षदों के टिकट चयन में उनकी भूमिका भी अहम् होने वाली है। कांग्रेस संगठन का फोकस फिलहाल नगर निगम के चुनाव ही है। इसी के जरिए अगला विधानसभा चुनाव पार लगाने की कोशिश है।

हर बार बड़े अंतर से जीत
भाजपा को वैशाली नगर सीट से हर बार बड़े अंतर से जीत मिलती रही है। 2008 में परिसीमन के बाद यहां पहली बार हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा ने दुर्ग की महापौर सरोज पाण्डेय को प्रत्याशी बनाया था। कांग्रेस ने युवा व प्रभावशाली नेता बृजमोहन सिंह को मैदान में उतारा, किन्तु सरोज पाण्डेय ने पहले ही चुनाव में 21,267 वोटों के भारी अंतर से जीत हासिल की। 2009 में जब लोकसभा के चुनाव आए तो भाजपा ने सरोज पाण्डेय को प्रत्याशी बना दिया। उन्होंने इस चुनाव में भी जीत हासिल की। इसके चलते उन्हें वैशाली नगर की सीट छोडऩी पड़ गई। नतीजा यह निकला कि क्षेत्र के लोग भाजपा से नाराज हो गए। परिणामस्वरूप 2009 में वैशालीनगर में हुए उपचुनाव में भाजपा को पराजय का मुंह देखना पड़ा। कांग्रेस ने तब वहां से पूर्व साडाध्यक्ष भजनसिंह निरंकारी को उतारा था। वहीं भाजपा ने एक बार फिर आयातीत प्रत्याशी के रूप में जागेश्वर साहू को प्रत्याशी बनाया। इससे मतदाताओं की नाराजगी और बढ़ गई। इस चुनाव में कांग्रेस ने भाजपा की वादाखिलाफी को बड़ा मुद्दा बनाया, जिसके चलते जागेश्वर साहू को 5414 मतों से हार मिली। 2013 के चुनाव में कांग्रेस ने एक बार फिर निरंकारी को प्रत्याशी बनाया। उनके सामने भाजपा ने विद्यारतन भसीन को उतार दिया। इस बार भसीन ने निरंकारी को 24,448 मतों के बड़े अंतर से हराकर सनसनी फैला दी। 2018 में बेहद कश्मकश भरे हालातों के बीच कांग्रेस ने अचानक ही भिलाई नगर के पूर्व विधायक बीडी कुरैशी को वैशाली नगर से प्रत्याशी बनाया, जबकि वैसे ही कश्मकश भरे माहौल में भसीन को रिपीट किया गया। इस चुनाव में भी भसीन 18,080 वोट से जीत हासिल करने में कामयाब हुए।
जिसकी टिकट काटने की थी तैयारी, उसी ने बचाई लाज
2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने विद्यारतन भसीन की टिकट काटने की पूरी तैयारी कर ली थी। पार्टी ने दुर्ग संभाग की 20 सीटों पर प्रत्याशी घोषित किए तो उनमें से सिर्फ वैशाली नगर सीट थी, जहां प्रत्याशी का नाम नहीं था। भाजपा के कई बड़े नेता नहीं चाहते थे कि भसीन को फिर से टिकट दी जाए। इसके पीछे उनके स्वास्थ्य, क्षेत्र में सक्रियता, कार्यकर्ताओं में नाराजगी जैसे और भी कई तर्क दिए गए। भाजपा में दावेदारों की संख्या भी ज्यादा थी और हर वरिष्ठ नेता चाहता था कि उसके समर्थक या रिश्तेदार को टिकट दी जाए। ऐसे में वैशाली नगर की सीट को विवादित मानकर उसे होल्ड कर दिया गया। अंतिम समय में आखिरकार पार्टी ने भसीन के ही नाम पर मुहर लगाई और जब नतीजे आए तो भाजपा के वरिष्ठ नेताओं के होश उड़ चुके थे। कई बड़े स्थानीय नेता नतीजों को पचा नहीं पा रहे थे। वैशाली नगर से भसीन भाजपा की लाज बचाने वाले दुर्ग जिले के इकलौते और संभाग के दूसरे प्रत्याशी थे।




