नई दिल्ली (एजेंसी)। अफगानिस्तान में आए तालिबान के राज और भारत के लिए कठिन हुए हालातों के बीच सरकार ने मॉस्को और वॉशिंगटन दोनों से संपर्क साधा है। सूत्रों के मुताबिक इस सप्ताह अमेरिका खुफिया एजेंसी सीआईए के चीफ और रूस की सिक्योरिटी काउंसिल के मुखिया से दिल्ली में वार्ता हुई है। इस दौरान अफगानिस्तान में बदल हुए हालातों के लिए रणनीति पर बात होगी। सीआईए चीफ विलियम बन्र्स मंगलवार को दिल्ली पहुंचे थे। इस दौरान उन्होंने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल से मुलाकात की थी। कहा जा रहा है कि इस चर्चा में तालिबान की सरकार के गठन और अफगानिस्तान से लोगों को निकालने के प्रयासों पर बात हुई।
अब बुधवार को रूस की सुरक्षा परिषद के सचिव जनरल निकोले पत्रुशेव दिल्ली आए हैं और अजित डोभाल से मुलाकात की है।वह पीएम नरेंद्र मोदी, एनएसए डोभाल और विदेश मंत्री एस जयशंकर से मुलाकात करेंगे। अमेरिका और रूस के अधिकारियों के साथ दिल्ली में मीटिंग ऐसे वक्त में हो रही हैं, जब तालिबान ने अंतरिम सरकार का ऐलान कर दिया है। इसके तहत मुल्ला हसन अखुंद को नेतृत्व सौंपा गया है, जबकि मुल्ला अब्दुल गनी बरादर को डिप्टी प्राइम मिनिस्टर की जिम्मेदारी सौंपी जाएगी। इसके अलावा आने वाले दिनों में पीएम नरेंद्र मोदी क्वाड समिट और शंघाई सहयोग संगठन की बैठकों में हिस्सा लेने वाले हैं। रूस और अमेरिका दोनों ही अफगानिस्तान में सक्रिय हैं और माना जा रहा है कि भविष्य की रणनीति तैयार करने में उनकी अहम भूमिका होगी।
ब्रिक्स की मीटिंग में सुरक्षा हालातों पर डोभाल देंगे प्रजेंटेशन
पीएम नरेंद्र मोदी 16 सितंबर को एससीओ की मीटिंग में हिस्सा लेंगे। इसके अलावा 24 सितंबर को वह अमेरिका के दौरे पर जाएंगे, जहां वह क्वाड देशों की मीटिंग में हिस्सा लेंगे। यही नहीं गुरुवार को पीएम मोदी ब्रिक्स देशों की वर्चुअल मीटिंग में भी हिस्सा लेंगे। इसमें रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीन के शी जिनपिंग भी शामिल होंगे। इस बैठक के दौरान अजित डोभाल सुरक्षा के मामलों पर एक प्रजेंटेशन भी देंगे। पीएम नरेंद्र मोदी और पुतिन के बीच 24 अगस्त को अफगानिस्तान के संकट को लेकर फोन पर बात हुई थी। अब रूसी अधिकारी के आने से एक बार फिर उस मसले पर आगे की बात हो सकती है।

रूस और अमेरिका के बीच भारत कैसे बनाएगा संतुलन
अमेरिका और रूस के अधिकारियों के ये भारत दौरे ऐसे वक्त में हो रहे हैं, जब दोनों बड़े देश अलग-अलग ध्रुव पर हैं। एक तरफ अमेरिका इस बात को लेकर चिंतित है कि अब अफगानिस्तान में क्या होगा तो वहीं रूस का कहना है कि देश में हालात पहले से बेहतर हैं। इसके अलावा रूस ने अफगानिस्तान में अपने दूतावास को भी बनाए रखा है। ऐसे में यह माना जा रहा है कि भारत दोनों देशों के बीच अफगानिस्तान को लेकर समन्वय की धुरी बन सकता है। रूस दुनिया के उन 6 देशों में से एक है, जिन्होंने काबुल में अपने दूतावासों को बंद नहीं किया है। हालांकि अमेरिका और सहयोगी देशों ने अपने दूतावास को दोहा मूव कर दिया है।
देखो और इंतजार करो की रणनीति पर भारत
अमेरिका ने अब तक अफगानिस्तान से सवा लाख लोगों को बाहर निकाला है। यही नहीं अमेरिका ने जरूरत पडऩे पर अभी और लोगों के लिए अभियान चलाने की बात कही है। सूत्रों के मुताबिक विलियम बन्र्स ने भारत दौरे में कुछ लोगों को निकालकर भारत लाने की भी बात कही है। हालांकि अब तक भारत ने इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया है। भारत ने अफगानिस्तान से अपने नागरिकों को निकालने के अलावा बहुत अधिक संख्या में लोगों को नहीं निकाला है। भारत की ओर से कुल 565 लोगों को निकाला गया है। इनमें सिख और हिंदू समुदाय के लोग बड़ी संख्या में शामिल हैं। फिलहाल भारत की ओर से अफगानिस्तान को लेकर देखो और इंतजार करो की रणनीति अपनाई गई है।




