रायपुर (पीआईबी)। राष्ट्रीय एईएफआई (टीकाकरण के बाद प्रतिकूल घटना) समिति की ओर से स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय को सौंपी रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में कोविड टीकाकरण के बाद रक्तस्राव और थक्के जमने के मामले बहुत कम हैं और यह देश में ऐसी स्थितियों के सामने आने की अपेक्षित संख्या के अनुरूप हैं। कुछ देशों में 11 मार्च, 2021 को, विशेष रूप से एस्ट्रा जेनेका-ऑक्सफोर्ड वैक्सीन [भारत में कोविशील्ड] के साथ, टीकाकरण के बाद रक्तस्राव और थक्के जमने की घटनाओं, को लेकर अलर्ट जारी किए गए हैं। वैश्विक चिंताओं को देखते हुए भारत में प्रतिकूल घटनाओं (एई) का तत्काल गहन विश्लेषण कराने का फैसला लिया गया था।
राष्ट्रीय एईएफआई समिति ने उल्लेख किया है कि 3 अप्रैल, 2021 तक, टीके की 7,54,35,381 खुराक (कोविशील्ड- 6,86,50,819; कोवैक्सीन-67,84,562) लगाई गईं हैं। इनमें 6,59,44,106 पहली खुराक और 94,91,275 दूसरी खुराक शामिल थीं। कोविड-19 टीकाकरण अभियान शुरू होने के बाद से देश के 753 जिलों में से 684 जिलों में को-विन प्लेटफॉर्म के माध्यम से 23,000 से ज्यादा प्रतिकूल घटनाएं (एई) दर्ज की गई थीं। इनमें से सिर्फ 700 मामले ही गंभीर और जटिल प्रकृति के रूप में दर्ज किए गए थे।
एईएफआई समिति ने गंभीर और जटिल घटनाओं वाले 498 मामलों की गहन समीक्षा पूरी की है, जिनमें से कोविशील्ड टीका लगने के बाद 0.61 मामलों/10 लाख खुराक की रिपोर्टिंग रेट के साथ 26 मामलों को संभावित थ्रोम्बोम्बोलिक घटना (रक्त वाहिका में थक्के का जमना, जो ढीला हो सकता है, रक्त प्रवाह के माध्यम से दूरी रक्त वाहिका तक जा सकता है) के रूप में दर्ज किया गया है। कोवैक्सीन टीका लगाने के बाद संभावित थ्रोम्बोम्बोलिक का एक भी मामला नहीं दर्ज किया गया है।
भारत में एईएफआई के आंकड़ों ने दिखाया है कि यहां बेहद कम, लेकिन निश्चित तौर पर थ्रोम्बोम्बोलिक घटनाओं का जोखिम है। भारत में ऐसी शिकायतें दर्ज करने की दर (रिपोर्टिंग रेट) लगभग 0.61/10 लाख खुराक है, जो ब्रिटेन के चिकित्सा और स्वास्थ्य नियामक प्राधिकरण (एमएचआरए) की ओर से दर्ज किए गए 4 मामलों/10 लाख खुराक से बहुत कम है। जर्मनी ने प्रति 10 लाख खुराक पर ऐसी 10 घटनाएं दर्ज की हैं।
यह जानना बेहद महत्वपूर्ण है कि थ्रोम्बोम्बोलिक की घटनाएं सामान्य आबादी में भी होती रहती हैं, जैसा कि परिस्थितियां और वैज्ञानिक अध्ययन बताते हैं कि यह जोखिम यूरोपीय मूल के व्यक्तियों की तुलना में दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशियाई मूल के व्यक्तियों में लगभग 70 प्रतिशत कम होता है।
