दुर्ग। भूमिगत जलस्तर में वृद्धि के लिए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल द्वारा आरंभ की गई नवाचारी नरवा योजना का यश सात समंदर पार के देशों में भी फैल गया है। युगांडा के जलशक्ति मंत्रालय ने इस माडल को अपनाने तकनीकी मार्गदर्शन मांगा है। इसके बाद राज्य शासन के नरवा के प्रिंसिपल टेक्निकल एडवाइजर हरीश हिंगोरानी ने वेबिनार के माध्यम से युगांडा के अधिकारियों को तकनीकी जानकारी दी। अन्य अफ्रीकन देश भी ले रहे रुचि, नाइजीरिया की सरकार ने भी जताई इच्छा, इनका भी वेबिनार के माध्यम से प्रेजेंटेशन होगा
बता दें कि नरवा योजना पाटन ब्लाक के गजरा वाटरशेड प्रोजेक्ट के शानदार नतीजों के आधार पर और इसी माडल पर मुख्यमंत्री ने आरंभ की थी। इसका वीडियो इंटरनेट में भी अपलोड था। युगांडा में जलशक्ति, कृषि एवं पीएचई का विभाग एक ही है। वहां भूमिगत जलस्तर बढ़ाकर खेती की संभावनाओं की वृद्धि के लिए दुनिया भर में अपनाये गए तरीके वहां का मंत्रालय खंगाल रहा था। इस बीच गजरा वाटरशेड का वीडियो उन्हें मिला। उनकी मिनिस्ट्री ने तत्काल नरवा योजना के सलाहकार हरीश हिंगोरानी को मेल किया और पूरे तकनीकी डिटेल उपलब्ध कराने का अनुरोध किया ताकि इस देश में भी यह माडल अपनाया जा सके। यह वेबिनार शानदार रहा और इसके बाद अन्य अफ्रीकन देशों ने भी इसमें रुचि दिखाई।
नाईजीरिया ने भी दिखाई रुचि
नाइजीरिया के जलशक्ति मंत्रालय ने भी इसमें रुचि दिखाई और इनके लिए भी ऐसा ही वेबिनार किया जा रहा है। गजरा नाला वाटरशेड का निर्माण तत्कालीन पीएचई मंत्री भूपेश बघेल ने कराया था और मुख्यमंत्री के रूप में इस कार्यकाल में उन्होंने इसी तर्ज पर अन्य नालों को विकसित करने की योजना बनाई। मुख्यमंत्री के नरवा योजना के सलाहकार हिंगोरानी ने बताया कि गजरा नाला वाटरशेड में छोटे-छोटे स्ट्रक्चर तैयार किये गए। इसका बड़ा असर हुआ और यह आज तक प्रभावी है। खुशी की बात है कि इसे अब पूरी दुनिया अमल करने रुचि ले रही है।
इस तरह हुआ गजरा नाला वाटरशेड से बदलाव
वर्ष 2003 में जब इसका निर्माण हुआ। उस समय हैंडपंप में जलस्तर 17 से 31 मीटर तक गिर गया था। निर्माण पूरा होने के बाद से अब तक जलस्तर 4 से 12 मीटर तक बना हुआ है। उस दौरान हैंडपंपों की संख्या 436 थी जो बाद में बढ़कर 2079 हो गई। वर्ष 2003 में सिंचाई नलकूप 6 90 थे जो वर्ष 2019 तक बढ़ कर 5500 हो गए। इतने के बावजूद जलस्तर में किसी तरह की कमी नहीं आई अपितु 4 से 12 मीटर के लेवल में बना रहा। वर्ष 2003 में सिंचाई ट्यूबवेल के साथ कवरेज क्षेत्र 7 वर्ग किमी था जो बाद में 15-20 वर्ग किमी तक हो गया। वर्ष 2003 में औसत पंपिंग घंटे 3 से 5 घंटे थे जो बाद में बढ़कर 6 से 10 घंटे हो गये। पहले नाले की सतह में पानी केवल दिसंबर तक ठहरता था। अब पानी फरवरी-मार्च तक ठहरता है। इससे धान के उत्पादन में भी जबर्दस्त इजाफा हुआ।