भिलाई। यदि किसी को पैर होते हुए भी दूसरों का सहारा लेकर चलना पड़े तो कैसा लगेगा। जाहिर है किसी को भी दूसरों का सहारा लेकर चलने की इच्छा नहीं होगी लेकिन कुछ रोग ऐसे हैं जिसके कारण व्यक्ति की मजबूरी हो जाती है कि वह दूसरों का सहरा ले। समय पर सही इलाज व परामर्श नहीं मिलने से ऐसे कई लोग हैं जो बिस्तर की शोभा बन जाते हैं। ऐसा ही एक मामला बी.एम. शाह अस्पताल में आया। दोनों घुटनों में गठिया वात से पीडि़त 70 साल की महिला जब बी.एम. शाह अस्पताल पहुंची तो किसी को उम्मीद नहीं थी वह पूरी तरह से ठीक हो जाएगी। बी.एम. शाह हॉस्पिटल के अस्थि रोग विशेषज्ञ डॉ अभय प्रताप सिंह के परामर्श व ऑपरेशन के बाद अब वह महिला पूरी तरह से ठीक है और आज अपने पैरो पर चल फिर रही है। यह पूरी कहानी शांतिनगर भिलाई निवासी रश्मि कपसे की है।
रश्मि कपसे (70) पिछले कई वर्षों से गठिया वात रोग से परेशान थी। कई डॉक्टरों से परामर्श लेने व इलाज कराने के बाद भी इनको किसी प्रकार का आराम नहीं मिला। इसके बाद महिला बी.एम. शाह हॉस्पिटल के अस्थि रोग विशेषज्ञ डॉ अभय प्रताप सिंह के संपर्क में आई। इनका केस जानने के बाद डॉ अभय प्रताप सिंह ने इनका सफलता पूर्वक ऑपरेशन किया। करीब 11 दिन अस्पताल में रहने के बाद इन्हें डिस्चार्ज कर दिया गया। ऑपरेशन के बाद महिला अपने पैरों पर चलने फिरने लगी अब इन्हें किसी के सहारे की जरूरत नहीं पड़ती है। शनिवार को इनका फाइनल रिव्यू हुआ जिसमें सबकुछ ठीक रहा। पूरे ऑपरेशन के दौरान एनेस्थीसिया में डॉक्टर नीरज एवं स्टाफ अब्दुल, हरी, दीपक, सीमा, गंगा आदि का विशेष सहयोग रहा।रश्मि कपसे अपने घुटनों के इलाज के बाद दर्द से पूरी तरह मुक्त हो गई हैं और इसके लिए बी.एम .शाह के अस्थि रोग विशेषज्ञ व पूरी मेडिकल टीम आभार माना।
इस सफलता के लिए अस्पताल के मेडिकल डायरेक्टर डॉ रूपेश अग्रवाल ने अस्थि रोग विशेषज्ञ डॉ अभय प्रताप सिंह सहित पूरे स्टाफ को बधाई दी। वहीं अस्पताल के असिस्टेंट डायरेक्टर डॉ अरुण मिश्रा ने कहा कि इस तरह के केस में हमारे डॉक्टर विशेष ध्यान देते हैं। अस्थि रोग विभाग लगातार ऐसे केसेस में सफलता पा रहा है। विशेषज्ञ डॉक्टरों की मेहनत के कारण कई चेहरों पर मुस्कान लौट रही है।

किया गया बाई लिटरल टोटल नी रिप्लेशमेंट
डॉ अभय प्रताप सिंह, अस्थि रोग विशेषज्ञ
मेडिकल भाषा में इस रोग को सिवियर ऑस्ट्रियो अर्थराईटीस बाई लिटरल नी कहा जाता है। जिसका हमने बाई लिटरल टोटल नी रिप्लेसमेंट किया। इसके बाद मरीज चलने फिरने लायक हुई। यह सर्जरी काफी जटिल होती है अगर मरीज सही समय पर जांच व सही इलाज कराता है तो वह अपना जीवन भर सुचारू रूप से चलने योग्य बन जाता है। अन्यथा आजीवन इस समस्या से जूझना पड़ता है।
फेलोशिप इन ज्वाइंट रिप्लेशमेंट एवं स्पोट्र्स मेडीसीन जर्मनी




