बॉलीवुड के सुपरस्टार और दिग्गज अभिनेता देव आनंद की आज पुण्यतिथि है। तीन दिसंबर 2011 को उन्होंने लंदन में आखिरी सांस ली थी लेकिन उनका अभिनय और उनकी प्रतिभा आज भी लोगों के दिलों में जिंदा है। बॉलीवुड में देव आनंद को अपने सपनों को जीने वाला अभिनेता माना जाता था। अपनी अद्भुत अदायगी, काम के प्रति अपनी निष्ठा और प्रतिभा के चलते देव आनंद आज भी नए कलाकारों के लिए प्रेरणादायक हैं। बहुमुखी प्रतिभा के धनी देव आनंद का नाम एक ऐसी शख्सियत के तौर पर याद किया जाता है, जिन्होंने ना सिर्फ अभिनय के क्षेत्र में बल्कि फिल्म निर्माण और निर्देशन के क्षेत्र में भी अपनी पहचान बनाई।
जन्म और फिल्मी करियर की शुरुआत
देव आनंद का जन्म 26 दिसंबर 1923 को पंजाब के गुरदासपुर जिले में हुआ था। देव आनंद बचपन से ही एक्टिंग के बहुत शौकीन रहे थे। पेशे से उनके पिता वकील थे, लाहौर के सरकारी स्कूल से उन्होंने अपनी पढ़ाई की। देव साहब आगे भी पढ़ना चाहते थे लेकिन पैसों की किल्लत की वजह से पढ़ नहीं पाए, इसलिए बॉलीवुड में आने का सपना देखा। देव आनंद ने अपने करियर की शुरुआत 1946 में प्यारेलाल संतोषी की हम एक हैं फिल्म से की। दो साल बाद देव आनंद को शहीद लतीफ की जिद्दी में पहला लीड रोल मिला और उसके फिल्म के गाने ब्लॉक बस्टर हिट हुए।
मात्र 30 रुपये लेकर मुंबई आए
फिल्मी करियर की शुरुआत में देव आनंद को कई तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ा था। जब वो पहली बार मुंबई आए थे तब उनकी जेब में बस तीस रुपये ही थे। उनके पास रहने की कोई जगह नहीं थी, कई रातें उन्होंने रेलवे स्टेशन पर काटी। देव आनंद को दिन में दो टाइम का खाना खाने के लिए सोचना पड़ता था। इतने मुश्किल भरे दिनों से गुजरने के बाद देव आनंद ने सोचा कि अगर मुंबई में रहना है तो कुछ काम करना पड़ेगा। कई कोशिशों के बाद उन्हें मिलिट्री सेंसर ऑफिस में लिपिक की नौकरी मिल गई। यहां उन्हें सैनिकों की चिट्ठियों को उनके परिवार के लोगों को पढ़कर सुनाना होता था।

फिल्म इंडस्ट्री को दी कई हिट फिल्में
देव आनंद ने अपने फिल्मी करियर में 100 से ज्यादा फिल्मों में काम किया है। उनकी हिट फिल्मों की बात करें तो उसकी लिस्ट काफी लंबी होगी लेकिन गाइड, हरे कृष्णा हरे राम, देस परदेस, ज्वेल थीफ और जॉनी मेरा नाम उनकी सबसे हिट फिल्में हैं। साल 2001 में राष्ट्रपति ने उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया था। 1950 में उन्होंने अपनी पहली फिल्म अफसर का निर्माण किया। इसके बाद निर्देशन की जिम्मेदारी उन्होंने बड़े भाई चेतन आनंद को सौंप दी। 1951 में देव आनंद ने अपने बैनर तले बाजी फिल्म बनाई। गुरुदत्त के निर्देशन में बनी फिल्म बाजी की सफलता के बाद देव आनंद फिल्म इंडस्ट्री मे एक अच्छे अभिनेता के रूप में शुमार हो गए।
मिले कई अवॉर्ड्स
देव आनंद को अपनी फिल्म की सफलताओं और निर्देशन के लिए कई अवॉर्ड्स मिले। 2001 में देव आनंद को पद्म भूषण से सम्मानित किया गया, इसके बाद अगले साल 2002 में दादासाहेब फाल्के पुरस्कार मिला। देव आनंद को 1991 में फिल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड से नवाजा गया था।
अभिनेत्री सुरैया से हुई मोहब्बत
फिल्म अफसर के निर्माण के दौरान देव आनंद का झुकाव फिल्म अभिनेत्री सुरैया की ओर हो गया था। एक गाने की शूटिंग के दौरान देव आनंद और सुरैया की नाव पानी में डूब गई थी, जिसके बाद देव आनंद ने सुरैया की जान बचाई और सुरैया देव आनंद से प्यार करने लगीं। हालांकि सुरैया की नानी के इनकार करने की वजह से यह जोड़ी अपने मुकाम तक ना पहुंच सकी।
कोर्ट पहनने पर लगाया गया था बैन
वह एक कलाकार नहीं बल्कि एक स्टार थे। वो स्टार जिनकी दुनिया दीवानी थी। लड़कियां जिसकी एक झलक पाने के लिए बेताब रहती थीं। बेशक देव आनंद का सुपरस्टारडम ज्यादा लंबा नहीं चला लेकिन जिस कदर उस छोटे से दौर में लोगों ने उन्हें चाहा, उन्हें लेकर जो दीवानगी थी, वैसी आज कल के किसी अभिनेता को नसीब नहीं हो पाएगी। उन्होंने वो दौर भी देखा जब गर्दन झुकाने का वो गजब अंदाज, काली पैंट शर्ट का उनका लिबास लड़कियों को बेहोश करता था। कहा जाता है उन्हें देखकर उन दिनों सफेद शर्ट पर काला कोट पहनने का स्टाइल बहुत ट्रेंड हुआ था, लेकिन इसके बाद कुछ ऐसा हुआ कि सार्वजनिक जगहों पर काला कोट पहनने पर ही बैन लगा दिया गया था। कितनी ही लड़कियों ने उनके लिए अपनी जान गवां दीं।
कल्पना कार्तिक से रचाई शादी
साल 1954 में देव आनंद ने उस समय की मशहूर अभिनेत्री कल्पना कार्तिक से शादी कर ली। बतौर निर्माता देव आनंद ने कई फिल्में बनाईं। इन फिल्मों में वर्ष 1950 में प्रदर्शित फिल्म अफसर के अलावा हमसफर, टैक्सी ड्राइवर, हाउस न. 44, फंटूश, कालापानी, काला बाजार, हम दोनो, तेरे मेरे सपने, गाइड और ज्वेल थीफ आदि कई फिल्में शामिल हैं।




