भिलाई। शरीर पर लाल चट्टे या चमड़ी निकलने की बीमारी सोरायसिस के इलाज में अब भिलाई के युवा शोधार्थी भी बड़ा रोल अदा करेंगे। संतोष रूंगटा कॉलेज ऑफ फार्मास्यूटिकल साइंस एंड रिसर्च की सहायक प्राध्यापक डॉ. मधुलिका प्रधान ने सोरायसिस के इलाज को प्रभावी बनाने के लिए टॉपिकल फार्मूलेशन इजाद किया है, जिससे सोरायसिस के मरीज की तकलीफ कम हो जाएगी। सोमवार को उनके इस शोध कार्य को दुनिया के नामी रिसर्च जर्नल ऑफ ड्रग डिलीवरी साइंस एंड टेक्नोलॉजी ने अपने प्रकाशन में शामिल कर लिया है। यही नहीं डिपार्टमेंट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी (डीएसटी) ने शोध को आगे बढ़ाने के लिए 20 लाख रुपए की राशि बतौर ग्रांट जारी की है।सोरायसिस एक ऑटोइम्यून स्थिति है, जिसमें मरीज की प्रतिरक्षक प्रणाली अपने ही शरीर की कोशिकाओं (सेल्स) को बीमारी से पीडि़त मानकर उन पर हमला कर देती है। सोरायसिस के मरीजों में त्वचा कोशिकाएं काफी तेजी से बढ़ती हैं। आमतौर पर हमारे शरीर में त्वचा की नई कोशिकाएं हर 10 से 30 दिनों में बनती हैं, जो पुरानी कोशिकाओं को बदल देती हैं। सोरायसिस में स्किन के नए सेल्स हर 3-4 दिन में काफी तेजी से बनते हैं। इससे शरीर को पुरानी कोशिकाएं छोडऩे के लिए पर्याप्त समय नहीं मिल पाता। स्किन की ऊपरी परत पर पपड़ी बन जाती है। वह छिल जाती है। त्वचा रूखी हो जाती है। सफेद धब्बे पड़ जाते हैं। खुजली के कारण त्वचा लाल हो जाती है और उसमें घाव बन जाते हैं। फिलहाल इस बीमारी का अभी कोई भी स्थाई इलाज नहीं है।
कितनी मददगार नई तकनीक
आमतौर पर सोरायसिस के इलाज के लिए मरीज को ओरल या टॉपिकल ट्रीटमेंट दिया जाता है। दवाइयों के डोज लगातार देने पड़ते है। इस नई तकनीक में शोधार्थियों ने पूरा जोर इसी बात पर रखा है कि मरीज को दवाइयों का डोज बार-बार न देना पड़े। रिसर्च के तहत इस बीमारी के लिए नोवेल फार्मूलेशन बनाया गया है, जो त्वचा से सीधे संपर्क में नहीं आएगा। दवाई को एक थैली जैसे फार्म में भरकर त्वचा पर हुए घाव पर लाया जाएगा। यह दवा मरीज की त्वचा में उसी तरह से ऑब्जर्व हो जाएगी जैसे तेल होता है।
दुनिया में 12 करोड़ मरीज
यह एक लाइलाज बीमारी है, जिसके दुनिया में 12.34 करोड़ से ज्यादा मरीज है। खासकर महिलाएं इस बीमारी से पीडि़त हैं। स्कैल्प, हथेलियों, तलवों, कोहनी, घुटनों और पीठ पर भी होता है। सर्दियों के मौसम में स्किन ड्राई होने से यह बीमारी अधिक परेशान करती है। नोवेल टॉपिकल फार्मूलेशन तैयार कर रही डॉ. मधुलिका अपनी रिसर्च रूंगटा फार्मास्यूटिकल कॉलेज के वाइस प्रिंसिपल डॉ. एजाजुद्दीन के मार्गदर्शन में पूरी कर रही हैं। भारत सरकार के साइंस एंड इंजीनियरिंग रिसर्च बोर्ड (एसईआरबी) ने रिसर्च के लिए जरूरी संसाधनों के उपयोग की इजाजद भी दे दी है।