पटना (एजेंसी)। बिहार विधानसभा चुनाव सिर पर है, लेकिन महागठबंधन की मुश्किलें खत्म नहीं हो रही हैं। पहले तो कई मौजूदा विधायक जेडीयू में शामिल हो गए। इसके बाद पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने भी महागठबंधन का दामन छोड़ दिया और एनडीए के पाले में चले गए। अब पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा ने संकेत दिया है कि राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (आरएलएसपी) महागठबंधन का साथ छोड़ सकती है।
आरएलएसपी के महासचिव आनंद माधव ने कहा कि राजनीति संभावनाओं से भरी है। अगर महागठबंधन अनिर्णय की वर्तमान स्थिति से बाहर नहीं आता है तो हम बिहार के विकास के लिए अपने भविष्य के बारे में निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र हैं। उन्होंने आगे कहा, ‘गठबंधन में एक स्पष्टता की जरूरत होती है ताकि दलों के मन में कई भ्रम न रहे। हम चाहते हैं कि आरजेडी आगे आकर गठबंधन के दलों के साथ सभी मुद्दों पर चर्चा करे। अगर कोई कॉमन मिनिमम प्रोग्राम बनाना है तो यह एक-दो दिन का काम नहीं है। चुनाव की अधिसूचना किसी भी दिन जारी हो सकती है, लेकिन अभी तक कॉमन मिनिमम प्रोग्राम के मुद्दे पर कोई बात नहीं हुई है।Ó
आनंद ने कहा कि आरएलएसपी ने कभी भी तेजस्वी यादव के नेतृत्व क्षमता पर संदेह नहीं जताया है, लेकिन महागठबंधन में चार-पांच दल हैं। सबके बीच सहमति होना आवश्यक है। उन्होंने कहा, ‘दुर्भाग्य से हमारे प्रयासों के बाद भी महागठबंधन में सबकुछ ठीक नहीं है और यह दुखद है। कल हमारी पार्टी की राष्ट्रीय और राज्य कार्यकारिणी की बैठक है। हम वर्तमान स्थिति पर नेताओं के साथ बातचीत के बाद निर्णय लेंगे। हम अपने फैसले लेने के लिए स्वतंत्र हैं।Ó
पिछले साल हुए लोकसभा चुनाव से पहले आरएलएसपी अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने छोटे दलों के प्रति बीजेपी के अहंकार का हवाला देते हुए केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया था और महागठबंधन में शामिल हो गए थे। 2014 लोकसभा चुनाव में एनडीए में रहते हुए आरएलएसपी को तीन सीटें मिली थीं और पार्टी ने तीनों पर जीत दर्ज की थी। हालांकि पिछले लोकसभा चुनाव में महागठबंधन का हिस्सा रहते हुए पार्टी को एक भी सीट पर जीत नहीं मिली।
बीजेपी एमएलसी और पूर्व केंद्रीय मंत्री संजय पासवान ने इस पूरे प्रकरण पर कहा कि उपेंद्र कुशवाहा का एनडीए ने हमेशा स्वागत किया है। उनके आने से एनडीए का वोट बैंक और मजबूत होगा। उन्होंने कहा कि कुशवाहा को एनडीए में वापस आ जाना चाहिए। अगर एनडीए का परिवार बढ़ता है तो हमें विधानसभा चुनाव में 204 से कम सीटें नहीं मिलेंगी। उनके आने के बाद सीट बंटवारा कोई बड़ा मुद्दा नहीं होगा।