कोरबा। वन विभाग की लापरवाही की वजह से एक हथनी की मौत हो गई। यह हथनी दलदल में फंसी थी। मामला कटघोरा वन मंडल के अंतर्गत केंदई वन परिक्षेत्र का है।
यहां केन्दई वनपरिक्षेत्र अंतर्गत ग्राम पंचायत कुल्हरीया के आश्रित मोहल्ला बनखेता पारा में एक दलदलनुमा खेत में हथनी फंसी थी। यह हथनी मंगलवार 24 दिसंबर से ही दलदल में फंसी थी, लेकिन इसे बचाने की कवायद तब शुरू हुई, जब ग्रामीणों की नजर उस पर पड़ी।
गुरुवार 26 दिसंबर देर शाम तक वन विभाग की ओर से जेसीबी की मदद से हथनी को निकालने के प्रयास होते रहे, लेकिन सफलता नहीं मिली। और आखिरकार शुक्रवार 27 दिसंबर की दोपहर हथनी ने दम तोड़ दिया। स्थानीय लोगों का कहना है कि यदि हथनी को निकालने का काम पहले ही शुरू कर दिया जाता तो उसकी जान बच सकती थी। हथनी झुंड में विचरण करने के दौरान इस दलदल में जा फंसी थी।
बताया जा रहा है कि वन मंडलाधिकारी अवकाश पर हैं। वहीं दूसरी ओर वन विभाग की टीम ने डॉक्टरों को जल्द बुलाने में रुचि नहीं दिखाई। जिसके कारण 48 घंटे तक हथनी दलदल में ही फंसी रही। क्षेत्र में अत्यधिक ठंड पडऩे से शुक्रवार को हथनी को सांस लेने में परेशानी होने लगी और अंतत: उसने दम तोड़ दिया। वनविभाग की टीम पर आश्चर्य इसलिए भी हो रहा है क्योंकि हथनी के मरने के बाद भी टीम इसके जिंदे होने का दावा करती रही। जबकि गांव वालों की मानें तो हथनी की मौत रात को ही हो गई थी। बहरहाल हथिनी को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया है।
वर्ष 2002 से हाथियों के मौत का सिलसिला शुरू हुआ है। अब तक 10 हाथियों की जान जा चुकी है। एक सप्ताह पहले ही इसी केंदई रेंज के पाली सलाई पहाड़ से गिरने से एक हाथी की मौत हो गई थी।
सर्वविदित है कि छत्तीसगढ़ सरकार के द्वारा अपने मातहत विभागों की कार्यशैली को लेकर कई बड़े बयानबाजी करते रहते है परन्तु वास्तविकता कोसो दूर रहती है। कई बड़े मामलों में अब तक यह देखा गया है कि सरकार के बयान उनके विभागों के कार्यशैली से कहीं भी मेल नहीं खाते। मसलन विभागीय मनमानी और उनकी लापरवाही स्पष्ट रूप से सार्वजनिक तौर पर देखने को मिलती है।
पिछले दिनों कोरबा वनक्षेत्र में एक हथिनी की मौत पर विभागीय अधिकारियों की लापरवाही स्पष्ट रूप से सामने आई। जहां विभाग चाहता तो हथिनी को समय रहते बचा सकता था। परन्तु आवश्यकता पडऩे पर कई संसाधन समय में उपलब्ध न करा पाने के कारण छत्तीसगढ़ की एक बहुमूल्य वन जीव को अपनी जान गंवानी पड़ी। यह पहला मामला नहीं था जब वन विभाग के द्वारा लापरवाही बरती गई हो। हालांकि इस पूरे मामले को लेकर राज्य सरकार के द्वारा वन प्रमुख अधिकारियों को सस्पेंड कर दिया है परन्तु क्या इतनी छोटी कार्यवाही से एक मूक जीव के प्राणों की आहूती को सही इंसाफ दिया जा सकता हैै? शायद नहीं, क्योंकि वन क्षेत्र में आज भी जीवों के अंगों की तस्करी और वन सम्पदाओं की तस्करी बिना किसी खौफ के खुलेआम अधिकारियों के संरक्षण में संचालित हो रहा है। भाजपा सरकार में गृहमंत्री के पद पर रहे ननकीराम कंवर ने एक बार अपने प्रेसवार्ता के बयान में बताया था कि बिना अधिकारियों के संरक्षण के वन क्षेत्र से एक दातुन तक नहीं चुराया जा सकता। ननकीराम कंवर के इन बयानों में काफी दम था और उन्होंने विभागीय अधिकारियों की लापरवाही को उजागर करते हुए अपने बयानों के तहत कसकर गालों में तमाचा मारा था। समय रहते यदि राज्य सरकार एैसे मामलों में स्वयं लापरवाही की तो आने वाले समय में हम अपने कई बहुमूल्य वन सम्पदा को गवां बैठेंगे?
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