बिलासपुर। सिम्स ऑडिटोरियम में लोकहितकारी स्वर्गीय काशीनाथ गोरे की स्मारिका का विमोचन संघ प्रमुख मोहन भागवत और विधानसभा अध्यक्ष डॉक्टर रमन सिंह ने किया। कार्यक्रम की शुरुआत भारत माता की तस्वीर पर पुष्प अर्पण और नमन से हुई। इस मौके पर RSS प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि ‘वसुधैव कुटुंबकम’ संघ का मूलमंत्र है।
इससे पहले डॉक्टर रमन सिंह ने श्रद्धांजलि देते हुए काशीनाथ गोरे से जुड़ा एक पुराना किस्सा साझा किया। उन्होंने बताया कि डॉक्टर रहने के दौरान काशीनाथ जी उन्हें एक देवार मोहल्ले ले गए, जहां चारों ओर सूअर थे, लेकिन वहां उनकी बच्चियों ने पैर पखारकर सम्मान किया। उस दिन के बाद मजाकिया अंदाज में लोग उन्हें शनिचर डॉक्टर कहने लगे और उन्होंने इसे अपने जीवन का टर्निंग पॉइंट बताया।
काशीनाथ गोरे थे सच्चे लोकहितकारी स्वयंसेवक
संघ प्रमुख मोहन भागवत ने श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि काशीनाथ गोरे सच्चे लोकहितकारी स्वयंसेवक थे। उन्होंने संघ के 100 साल की यात्रा का उल्लेख करते हुए बताया कि स्वयंसेवक अपने घर से, फिर पड़ोस और फिर देश तक सेवा भाव से कुटुंब को बढ़ाता है। इसी वजह से हम “वसुधैव कुटुंबकम” कहते हैं। भागवत ने कहा कि हर कोई काशीनाथ नहीं बन सकता लेकिन हर किसी में स्वयंसेवक बनने का भाव होना चाहिए।

सभी विविधताओं को साथ लेकर चलना ही धर्म
डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि जिस प्रकार दीये स्वयं जलकर रोशनी देता है, ऐसी ही तपस्या 100 साल से स्वयंसेवकों ने की है। सभी विविधताओं को साथ लेकर चलना ही धर्म है। इसे सभी को समझना होगा और यह विचार करना होगा कि हम अपने जीवन में क्या कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि आपमें ऐसा सद्गुण होना चाहिए कि लोग आपकी ओर खींचे चले आएं। सत्य स्वयंसेवक बनने के लिए जो निरंतर प्रयत्नशील रहते हैं, उनका सामान्य जीवन भी अनुकरणीय व प्रेरक बन जाता है। स्व. काशीनाथ गोरे का व्यक्तित्व ऐसे ही सत्य स्वयंसेवक का था। कार्यक्रम में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि लोग सोचते हैं कि वे शिवाजी महाराज जैसे महान व्यक्तित्व नहीं बन सकते। वे एक महान व्यक्ति थे।