-दीपक रंजन दास
सरकार ने दिल्ली में एंड-ऑफ-लाइफ (ईओएल) अर्थात बूढ़े या मृत हो चुके वाहनों पर फ्यूल प्रतिबंध लगाने का फैसला किया है. अर्थात ये गाड़ियां अगर दिल्ली की सड़कों पर चलती हुई दिखाई दीं तो पुलिस उन्हें जब्त कर लेगी. 31 अक्तूबर के बाद ये गाड़ियां दिल्ली औऱ उसके आसपास के इलाकों में नहीं चलाई जा सकेंगी. यह फैसला वायु गुणवत्ता आयोग का है. दरअसल, जो डीजल गाड़ियां 10 साल से पुरानी और पेट्रोल गाड़ियां 15 साल से पुरानी होती हैं उन्हें ईओएल वाहन कहा जाता है. अर्थात उनका जीवन समाप्त हो चुका है. पहले इन वाहनों को 30 जून के बाद सड़कों से हटाया जाना था. पर दिल्ली के पर्यावरण मंत्री के आग्रह पर अब ये वाहन 31 अक्टूबर तक चल सकेंगे. यह प्रतिबंध दिल्ली के अलावा गुरुग्राम, फरीदाबाद, नोएडा, गाजियाबाद और सोनीपत में भी लागू होगा. यह फैसला मानकर चलता है कि दिए गए निश्चित समय में सभी गाड़ियां बराबर इस्तेमाल की गई होंगी, उनका एक जैसा रखरखाव किया गया होगा, उनसे एक जैसा काम लिया गया होगा. हकीकत यह है कि कुछ गाड़ियां 15 तो क्या 20 साल बाद भी नई लगती हैं. कुछ गाड़ियां 3-4 साल में ही खटारा हो जाती हैं. कुछ गाड़ियां महीने में चार पांच बार इस्तेमाल होती हैं तो कुछ दिन भर रगड़ी जाती हैं. कुछ लोग अपने वाहनों की नियमित सर्विसिंग करवाते हैं जबकि कुछ लोग इस मामले में पूरी तरह लापरवाह होते हैं. इसलिए 10 साल और 15 साल जैसी शर्तों का आधार ही समाप्त हो जाता है. मामला यदि प्रदूषण से निजात पाने का है तो प्रदूषण जांच को महत्व दिया जाना चाहिए था. यदि वाहन प्रदूषण फैला रहा है, यातायात के लिए खतरनाक है तो उसे तत्काल सड़क से हटाए जाने की जरूरत थी फिर चाहे उसकी उम्र साल-दो-साल ही क्यों न हो. दरअसल, यह पूरा तामझाम ऑटोमोबाइल सेक्टर को आगे बढ़ाने के लिए है. पुरानी रिजेक्ट होगी तभी तो नई बिकेगी. गाड़ियों के लिए देश में सबसे सस्ते लोन सर्वाधिक आसानी से मिलते हैं. इसका असर भी देखा जा सकता है. आज अधिकांश लोगों के पास नई गाड़ियां हैं. कुछ लोग हर 3-4 साल में गाड़ी बदल लेते हैं. कुछ तो किसी गाड़ी को एक साल भी नहीं चलाते. कुछ लोगों के लिए आसान कैश का यह भी एक तरीका है. वो एक साल पुरानी गाड़ी को अच्छी कीमत पर बेच देते हैं और फिर से किस्तों में नई कार खरीद लेते हैं. चमचमाती सड़कों और एक्सप्रेस-सुपर हाईवे के पीछे भी यही कहानी है. सवाल यह भी है कि इन पुरानी गाड़ियों का होगा क्या? देश में स्क्रैप के काम को अभी भी चोर उचक्कों का काम समझा जाता है. पुरानी गाड़ियां दूसरे शहरों में बिक जाती हैं और वहां चलती रहती हैं. बेहतर हो कि सरकार गाड़ियों की उम्र उसके माइलोमीटर और वीयर एंड टीयर से तय करे. 60 साल में हर कोई बूढ़ा नहीं हो जाता.
Gustakhi Maaf: प्रदूषण, पुरानी गाड़ियां और खामख्याली
