-दीपक रंजन दास
सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु की एमके स्टालिन सरकार के 10 जरूरी बिलों को राज्यपाल की ओर से रोके जाने को अवैध बताया है. कोर्ट ने इसे मनमाना कदम मानते हुए कहा कि राज्यपाल को राज्य सरकार के लिए एक दोस्त, दार्शनिक और राह दिखाने वाले की तरह होना चाहिए. राज्यपाल को किसी राजनीतिक दल की तरफ से संचालित नहीं होना चाहिए. राज्यपाल को उत्प्रेरक बनना चाहिए, अवरोधक नहीं. राज्यपाल को इसका ध्यान रखना चाहिए कि राज्य के संचालन में कोई बाधा पैदा न हो. सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला उन तमाम राज्यों के लिए एक राहत है जहां डबल इंजन की सरकार नहीं है. इससे पहले दिल्ली और छत्तीसगढ़ की सरकारें काफी समय तक हाल दुहाई देती रही हैं कि राज्यपाल विधानसभा द्वारा पारित बिलों को रोककर बैठे हुए हैं पर कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई. इन बातों पर मीडिया से लेकर सड़कों तक पर चर्चा हुई और अंत में यह मान लिया गया कि राज्यपाल केवल केन्द्र सरकार की मिजाज पुर्सी के लिए बैठा है. उसे राज्य से, राज्य की निर्वाचित सरकार से और यहां तक कि राज्य के निवासियों की तकलीफ से कोई मतलब नहीं है. कई योजनाएं केवल इसलिए दम तोड़ देती हैं कि राज्यपाल उसे रोककर बैठे रहते हैं. कायदे से विधानसभा में पारित किसी बिल को राज्यपाल या तो मंजूरी देते हैं या फिर मंजूरी रोक देते हैं. कभी-कभी सुझाव के साथ बिल सरकार को लौटा दिया जाता है. विशेष परिस्थितियों में बिल को राष्ट्रपति के पास भेजा जा सकता है. सुझाव के साथ विधानसभा को लौटाए गए बिल यदि दोबारा पारित होकर राज्यपाल के पास पहुंचते हैं तो राज्यपाल को उसे पारित करना ही होता है. हालांकि, विशेष परिस्थितियों में उसे राष्ट्रपति के पास भेजा जा सकता है. पर ये विशेष परिस्थितियां भी सुपरिभाषित हैं. पर देखा यह जा रहा है कि ऐसे राज्यों के राज्यपाल जहां डबल इंजन की सरकार नहीं है, वहां केवल सरकार का कामकाज रोकने के लिए बैठाए गए हैं. वे न केवल बिलों को अनिश्चितकाल के लिए रोक कर बैठे रहते हैं बल्कि इसका कारण तक बताना जरूरी नहीं समझते. तमिलनाडु के मामले में भी पुलिस सेवा से राज्यपाल बने आरएन रवि दस विधेयकों को रोके बैठे थे. इसके विरुद्ध तमिलनाडु सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई. सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की बेंच ने कहा कि राज्यपाल द्वारा इन 10 विधेयकों को राष्ट्रपति के पास भेजना अवैध और मनमाना है. यह कार्रवाई रद्द की जाती है. राज्यपाल की सभी कार्रवाई अमान्य है. बेंच ने कहा कि राज्यपाल रवि ने भले मन से काम नहीं किया. इन बिलों को उसी दिन से मंजूर माना जाएगा, जिस दिन विधानसभा ने बिलों को पास करके दोबारा राज्यपाल को भेजा था. इसके बाद कहने सुनने के लिए कुछ भी बाकी नहीं रह जाता. ओहदेदारों को समझना होगा कि उनकी जवाबदारी जनता के प्रति है.
Gustakhi Maaf: खत्म नहीं होने दी जाएगी न्याय की उम्मीद
