रायपुर। छत्तीसगढ़ के मनेंद्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर जिले में स्थित घाघरा मंदिर अपने रहस्यमयी निर्माण और अनोखी स्थापत्य कला के लिए प्रसिद्ध है। बिना किसी जोड़ने वाले पदार्थ के सिर्फ पत्थरों को संतुलित करके बनाई गई इस प्राचीन संरचना का झुका हुआ स्वरूप इसे और भी रोचक बनाता है। छत्तीसगढ़ के इतिहास और वास्तुकला का यह अनमोल रत्न आज भी अपने भीतर कई रहस्यों को समेटे हुए है।

जिले के मुख्यालय मनेंद्रगढ़ से लगभग 130 किलोमीटर दूर जनकपुर के पास स्थित इस मंदिर का रहस्य आज भी विशेषज्ञों के लिए अबूझ पहेली बना हुआ है। मंदिर तक पहुंचने के लिए सबसे नजदीकी प्रमुख कस्बा जनकपुर है, जहां से घाघरा गांव आसानी से पहुंचा जा सकता है। मनेंद्रगढ़ से यहां तक का सफर लगभग 130 किलोमीटर का है। सड़क मार्ग के जरिए इस यात्रा के दौरान छत्तीसगढ़ के प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद भी लिया जा सकता है।
इसका निर्माण की इसका सबसे बड़ा आकर्षण
घाघरा मंदिर का सबसे बड़ा आकर्षण इसकी निर्माण शैली है। इतिहासकार मानते हैं कि यह मंदिर पत्थरों को संतुलित करके इस तरह खड़ा किया गया है कि किसी भी प्रकार की जोड़ने वाली सामग्री की आवश्यकता ही नहीं पड़ी। यह तकनीक प्राचीन भारतीय वास्तुकला के अद्भुत कौशल को दर्शाती है। इस मंदिर का झुका हुआ स्वरूप इसे और भी रहस्यमयी बनाता है। माना जाता है कि किसी भूगर्भीय हलचल या भूकंप के कारण इसका झुकाव हुआ होगा, लेकिन इसके बावजूद सदियों से यह मंदिर अपनी मजबूती के साथ खड़ा है।
अद्भुत इंजीनियरिंग और तकनीकी कौशल का प्रमाण
घाघरा मंदिर के निर्माण काल को लेकर विशेषज्ञ एकमत नहीं हैं। कुछ इतिहासकार इसे 10वीं शताब्दी का बताते हैं, तो कुछ इसे बौद्ध कालीन संरचना मानते हैं। वहीं, स्थानीय निवासियों का मानना है कि यह एक प्राचीन शिव मंदिर है, जहां आज भी विशेष अवसरों पर पूजा-अर्चना होती है। मंदिर के भीतर किसी भी मूर्ति का न होना इसके रहस्य को और गहरा करता है। कई स्थानीय कथाओं के अनुसार, मंदिर का निर्माण उस समय की अद्भुत इंजीनियरिंग और तकनीकी कौशल का प्रमाण है।
दूर-दूर से आते हैं पर्यटक
घाघरा मंदिर केवल श्रद्धालुओं का आस्था स्थल ही नहीं बल्कि छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर का भी अनमोल प्रतीक है। सदियों पुराना यह मंदिर किसी चमत्कार से कम नहीं, जो बिना किसी गारा-मिट्टी या चूने के इस्तेमाल के आज भी मजबूती से खड़ा है। इस अद्भुत संरचना को देखने के लिए दूर-दूर से पर्यटक और शोधकर्ता आते हैं। पुरातत्वविदों के लिए भी यह मंदिर एक शोध का महत्वपूर्ण केंद्र बन चुका है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि इस मंदिर को उचित पहचान दी जाए, तो यह स्थल धार्मिक और ऐतिहासिक पर्यटन का प्रमुख केंद्र बन सकता है।