घरेलू जरूरत को पूरा करने के लिए अगले 6 वर्षों में 3 लाख करोड़ रु. की है आवश्यकता
एल्युमीनियम आयात पर हैवी ड्यूटी लगाकर घरेलू कंपनियों का बचाव किया जाए
जरूरी कच्चे माल पर मौजूदा कर संरचना को तर्कसंगत बनाया जाए
रायपुर/ भारत के शीर्ष एल्युमीनियम उत्पादकों की शीर्ष प्रतिनिधि संस्था एल्युमीनियम ऐसोसिएशन ऑफ इंडिया (एएआई) ने उद्योग संवर्धन और आंतरिक व्यापार विभाग (डीपीआईआईटी) के पास बजट से पहले अपना प्रतिनिधि-प्रस्ताव दाखिल किया है। यह विभाग भारत सरकार के वाणिज्य मंत्रालय के अंतर्गत आता है। इस प्रस्ताव में भारत की निरंतर वृद्धि में एल्युमीनियम की महत्वपूर्ण भूमिका पर बल दिया गया है और 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के लक्ष्य के मद्देनजर यह भूमिका और ज्यादा अहम हो जाती है। वर्तमान एवं भावी एप्लीकेशन में एल्युमीनियम के व्यापक इस्तेमाल को देखते हुए कहा जा सकता है कि उच्च एल्युमीनियम उपयोग उन्नत अर्थव्यवस्थाओं का स्थापित चिन्ह है। इसीलिए यूएसए, मलेशिया व इंडोनेशिया जैसे कई देशों ने एल्युमीनियम को एक ’रणनीतिक क्षेत्र’ बताया है।
उद्योग जगत के अनुमानों के अनुसार भारत में एल्युमीनियम की प्रति व्यक्ति खपत अब भी सिर्फ 3 किलोग्राम प्रति वर्ष है जबकि इसका वैश्विक औसत रु. 12 किलो का है। देश में एल्युमीनियम की घरेलू मांग 2030 तक 10 मिलियन टन सालाना हो जाएगी लेकिन फिर भी यह उद्योग नए निवेश को आकर्षित करने में बड़ी चुनौतियों का सामना कर रहा है। अब तक भारतीय एल्युमीनियम उद्योग 1.5 लाख करोड़ रुपए (20 अरब डॉलर) का निवेश कर चुका है ताकि बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए उत्पादन क्षमता को 4.2 मिलियन टन सालाना किया जा सके। हालांकि, 10 मिलियन टन सालाना की अपेक्षित मांग को पूरा करने के लिए अगले 6 सालों में रु. 3 लाख करोड़ (लगभग 40 अरब डॉलर) के अतिरिक्त निवेश की आवश्यकता है, साथ ही भारत में और अधिक रोजगार भी सृजित करने होंगे।
गौर तलब है कि एल्युमीनियम एक रणनीति धातु है; रक्षा, एयरोस्पेस तथा उभरते उद्योगों जैसे नवीकरणीय ऊर्जा, इलेक्ट्रिक वाहन, पावर ट्रांस्मिशन व सस्टेनेबल इंफ्रास्ट्रक्चर में इसका व्यापक उपयोग होता है; इसलिए भारत के लिए यह बहुत जरूरी है कि वह एल्युमीनियम उत्पादन में आत्मनिर्भर बने। ताजा निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए एल्युमीनियम उत्पादकों ने केन्द्र सरकार से निवेदन किया है कि भारतीय एल्युमीनियम उद्योग को बढ़ते आयात से बचाया जाए। बीते कुछ सालों में प्राइमरी एल्युमीनियम का आयात दोगुना हो गया है और इसके अलावा घटिया क्वालिटी के कचरे एवं डाउनस्ट्रीम उत्पादों में भी काफी उछाल आया है, खासकर चीन की ओर से।
उद्योग जगत के सदस्यों ने इस तथ्य पर रोशनी डाली है कि घरेलू बाजार में आयात का प्रवाह होने से इस क्षेत्र में नए निवेश में अड़चन आएगी, जबकि भारत में वे सभी आवश्यक चीज़ें मौजूद हैं जो इसे एक वैश्विक एल्युमीनियम केन्द्र बना सकती हैं। इनके अनुसार, आयात में उछाल के पीछे मुख्य कारण है प्राइमरी/ डाउनस्ट्रीम उत्पादों पर इम्पोर्ट ड्यूटी कम होना तथा एल्युमीनियम में प्राइमरी गुड्स एवं स्क्रैप के बीच ड्यूटी में अंतर होना। यह बाकी नॉन-फैरॉस धातुओं से भिन्न है जहां स्क्रैप व प्राइमरी पर ड्यूटी एक समान है।
इसलिए ऐसोसिएशन ने केन्द्र सरकार से आग्रह किया है कि प्राइमरी/ डाउनस्ट्रीम उत्पादों पर इम्पोर्ट ड्यूटी को मौजूदा 7.5 प्रतिशत से बढ़ाकर 10 प्रतिशत किया जाए ताकि नया निवेश आकर्षित हो और राष्ट्र की आत्मनिर्भरता सुनिश्चित करने में मदद मिले। इसके अलावा घटिया आयात को काबू करने के लिए एल्युमीनियम स्क्रैप पर आयात शुल्क अन्य एल्युमीनियम उत्पादों के बराबर 7.5 प्रतिशत रखा जाना चाहिए। इस उपाय से घरेलू स्क्रैप की रिसाइकलिंग को प्रोत्साहन मिलेगा और घटिया क्वालिटी के विदेशी स्क्रैप की आमद सीमित होगी, इस तरह देश की सर्कुलर अर्थव्यवस्था मजबूत बनेगी।
वैश्विक प्रतिस्पर्धा सुनिश्चित करने के लिए यह जरूरी है कि नीतियां ऐसी बनें जिनसे सस्टेनेबल माहौल पनपे, घरेलू उद्योग पोषित होए और भारत वैश्विक बाजार में एक लीडर के तौर पर स्थापित हो सके। इससे उद्योग को कुछ राहत मिलेगी जो पहले ही उच्च कराधान एवं नियामकीय शुल्कों से पस्त है। इस समय एल्युमीनियम उद्योग की उत्पादन लागत में तकरीबन 17 प्रतिशत हिस्सा टैक्स, लेवी और नियमों के अनुपालन संबंधी खर्चों का होता है। इस बोझ को कुछ कम करने के लिए ए.ए.आई. ने महत्वपूर्ण कच्चे माल पर कराधान को तुरंत तर्कसंगत बनाने का प्रस्ताव दिया है।
घरेलू एल्युमीनियम उद्योग के मौजूदा निवेश के चलते 8 लाख से अधिक प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष नौकरियों की रचना हुई है तथा दूरस्थ इलाकों 4,000 से ज्यादा लघु एवं मध्यम उपक्रमों (खासकर डाउनस्ट्रीम सेक्टर में) के विकास को बढ़ावा मिला है। ए.ए.आई. के मुताबिक रु. 3 लाख करोड़ (40 अरब डॉलर) का अतिरिक्त निवेश माननीय प्रधानमंत्री के ’’आत्मनिर्भर भारत’’ विज़न के मुताबिक है और इससे देश भर में आजीविका के 20 लाख अवसर भी बनेंगे। यदि सरकार कराधान को तर्कसंगत बनाए और आयात प्रतिबंधों को बढ़ाए तो घरेलू उत्पादकों को भरोसा है कि भारत को आत्मनिर्भर बनाने में वे अहम योगदान कर सकेंगे।