-दीपक रंजन दास
सुसाइड के लिए हेल्पलाइन का मतलब सुसाइड करने में मदद करना नहीं है. यह एक ऐसा हेल्पलाइन है जो सुसाइड की कगार पर खड़े लोगों की मदद करता है. इस राज्य में बड़ी संख्या में ऐसे लोग बेरोजगार हो गए हैं जो कल तक बेहद खुशहाल जिन्दगी बिता रहे थे. इस उद्योग से बड़े संख्या में न केवल कामगारों की छंटनी हुई है बल्कि बड़ी संख्या में कारीगरों के वेतन में कटौती कर दी गई है. हम बात कर रहे हैं गुजरात की. गुजरात का डायमण्ड उद्योग फिलहाल मुश्किल में है. पिछले 16 महीनों में हीरा उद्योग से जुड़े 65 से अधिक कारीगर आत्महत्या कर चुके हैं. बिगड़ती स्थिति को देखते हुए डायमंड वर्कर्स यूनियन गुजरात ने 15 जुलाई को ‘सुसाइड हेल्पलाइन नंबर’ शुरू किया. अभी तक इस हेल्पलाइन पर 1600 से अधिक कॉल आ चुके हैं. इन सभी ने अपनी आर्थिक स्थिति का हवाला देते हुए मदद की मांग की है. डीडब्ल्यूयूजी के मुताबिक पिछले 16 माह में सूरत के जिन 65 हीरा श्रमिकों ने आत्महत्या की है, उनमें से अधिकांश वेतन कटौती और नौकरी छूटने के कारण परेशान थे. हेल्पलाइन पर कॉल करने वाले कईयों ने कहा है कि वित्तीय तनाव के कारण अपनी जान लेने के कगार पर हैं. जिन लोगों के वेतन में 30 प्रतिशत तक की कटौती हुई है, वे अपने बच्चों की स्कूल फीस, घर का किराया, घर और वाहन लोन की मासिक किस्त आदि चुकाने में मदद मांगते हैं. यूक्रेन-रूस और इज़राइल-गाजा संघर्षों के साथ-साथ प्रमुख बाज़ार चीन में कमज़ोर मांग के कारण इस साल 50,000 कर्मचारियों को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा है. स्थिति इतनी गंभीर हुई कि 50 हजार कर्मचारियों को एक साथ 10 दिन की छुट्टी पर भेजना पड़ा. इस मामले की गूंज लोकसभा में भी सुनाई दी थी. पीड़ितों को कुछ राहत पहुंचाने एक डायमण्ड कंपनी ने विद्यार्थियों को 15-15 हजार रुपए की वित्तीय मदद भी दी. गुजरात के हीरा कटाई और चमकाई उद्योग की यह हालत एकाएक नहीं हुई है. गुजरात को विश्व में हीरा पॉलिशिंग की राजधानी के रूप जाना जाता है. गुजरात ने हीरा पॉलिशिंग के वैश्विक केंद्र के रूप में भी अपनी प्रतिष्ठा बना ली है. गुजरात में हीरा-काटने का उद्योग 1930 के दशक के अंत में शुरू हुआ था, लेकिन 70 के दशक में ही यह वास्तव में तेजी से बढ़ने लगा. 2008 में जब वैश्विक वित्तीय संकट आया, तब गुजरात के सूरत में केंद्रित भारतीय हीरा प्रसंस्करण उद्योग दुनिया भर में संसाधित कुल हीरों का लगभग 85% संभाल रहा था. सूरत के आसपास केन्द्रित यह उद्योग इतना सफल था कि डायमण्ड इकाइयां अपने कर्मचारियों को दीवाली पर कार जैसे उपहार देती थीं. पर अब इस उद्योग पर मंदी का साया मंडरा रहा है. लोग निजी संस्थानों से भारी-भरकम ब्याज दरों पर पर्सनल लोन लेने को मजबूर हैं. इसे पटाना भी मुश्किल होगा. क्या सरकार का कोई फर्ज नहीं?