-दीपक रंजन दास
हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट पर क्यों भरोसा किया जाना चाहिए? वह तो विदेशी कंपनी है. ऊपर से विपक्षी नेताओं के विदेशों से संबंध हैं. हिंडनबर्ग रिसर्च ने देश के प्रतिभूति बाजार की शीर्ष संस्था को बदनाम करने की कोशिश की है. ऐसी संस्थाओं से नफरत की जानी चाहिए. सेबी प्रतिभूति बाजार को विनियमित करके पारदर्शिता सुनिश्चित करता है और निवेशकों के हितों की रक्षा करके भारतीय वित्तीय प्रणाली में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. जिस सेबी के खिलाफ उसने आरोप लगाए हैं वह पाले के उस तरफ है. इसका मतलब यह है कि बात-बात पर छापे मारने वाली सीबीआई, ईडी और ईओडब्लू खामख्वाह उसपर नहीं चढ़ दौड़ेगी. वैसे भी आरोपी ने अपनी सफाई दे दी है. उसपर शक करने की कोई वजह नहीं है. वैसे भी ईडी और ईओडब्लू केवल ऐसे लोगों को सालों साल जेल में डालकर रखने के लिए बदनाम है जिनके खिलाफ वह सबूत इकट्ठा नहीं कर पाती. हिंडनबर्ग रिसर्च ने सेबी प्रमुख और उनके पति पर मनी लांड्रिंग के आरोप लगाए हैं. प्रिवेंशन ऑफ मनी लांड्रिंग एक्ट (पीएमएलए) के तहत केवल विपक्ष के नेता प्रताड़ित किये जा सकते हैं. सेबी चेयरमैन इसके दायरे से बाहर हैं. वैसे भी विदेशी ताकत भारत को अस्थिर करने की कोशिश कर रहे हैं. हम हरगिज ऐसे आरोपों को बर्दाश्त नहीं कर सकते. जिन पर आरोप लगाए गए हैं वो देश के महत्वपूर्ण लोग हैं. उनकी बातों और बयानों पर भरोसा किया जाना चाहिए. इस मामले में फरवरी 2023 में सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई थी. मार्च 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने सेबी को दो महीने के भीतर अडानी समूह की ओर से स्टॉक मूल्य हेरफेर के आरोपों और नियामक खुलासों में किसी भी चूक की जांच करने का निर्देश दिया. मई 2023 में विशेषज्ञ समिति ने अपनी रिपोर्ट सौंपी. मई 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने सेबी को अडानी समूह की ओर से स्टॉक मूल्य हेरफेर के आरोपों की अपनी जांच के संबंध में रिपोर्ट सौंपने के लिए 14 अगस्त, 2023 तक का समय दिया. नवंबर 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने स्टॉक मूल्य हेरफेर के आरोपों पर अडानी-हिंडनबर्ग मामले से संबंधित याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया. कुल मिलाकर अब तक देश के आगे आरोप और प्रत्यारोप के अलावा कुछ भी नहीं है. छोटी-छोटी बातों पर “देश जानना चाहता है” का ढिंढोरा पीटने वाले भी न जाने क्यों खामोश हैं. वैसे भी देश जानकर क्या करेगा? ये मामले इतने पेचीदा होते हैं कि जानकारों को भी समझने में वक्त लगता है. इसमें सिर खपाने में कुछ भी मजेदार नहीं है. इसलिए फिलहाल देश को इसी बात पर खुश रहना चाहिए कि विदेशी ताकतों ने एक भारतीय संस्था और एक इंडियन निवेशक को बदनाम करने की कोशिश की है जिसका जमकर विरोध होना चाहिए. ऐसे ताकतों को उनके मंसूबों में कामयाब नहीं होने दिया जा सकता. यह राष्ट्रीय अस्मिता का सवाल है. पूरा देश एक-जुट दिखाई देना चाहिए.