-दीपक रंजन दास
देश में अपराधों से जुड़े तीन नए कानून लागू हो गए। ये कानून हैं भारतीय न्याय संहिता 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023। अब तक देश में इनकी जगह ब्रिटिश कालीन कानून प्रभाव में था। हालांकि पुराने मामले उन्हीं कानूनों के तहत चलते रहेंगे पर नए मामलों की पड़ताल और सुनवाई नए कानूनों के तहत होगी। छत्तीसगढ़ के कबीरधाम जिल में नए कानून के तहत पहला मामला दर्ज भी हो गया। वैसे एक जुलाई से इस बार छत्तीसगढ़ में महाविद्यालयीन शिक्षण सत्र को भी शुरू हो जाना था। पर पाठ्यक्रम को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है। प्रथम वर्ष की कक्षाओं में सेमेस्टर पद्धति लागू होने के बाद नए विषय क्या होंगे, यह अभी तय नहीं हो पाया है। इसलिए महाविद्यालयों में तो पढ़ाई लिखाई शुरू नहीं हो पाई पर पुलिस और वकील से लेकर पूरा न्यायिक अमला होमवर्क करने में जुट गया है। नए कानूनों के बनने के बाद अब धाराओं के नाम और क्रम बदल गए हैं। हत्या के लिए पहले धारा 302 लगती थी पर अब धारा 101 के तहत यह अपराध पंजीबद्ध होगा। हत्या के प्रयास के मामले भी अब 307 की बजाय 109 के तहत दर्ज किये जायेंगे। गैर इरादतम हत्या के मामले भी अब धारा 304 की बजाय 105 के तहत दर्ज होंगे। लिहाजा पुलिस, वकील और स्वयं कोर्ट के लिए आने वाले कई साल अभी कठिन होने वाले हैं। आंकड़ों के मुताबिक देश की सर्वोच्च अदालत के पास 60 हजार मामले लंबित हैं जबकि उच्च न्यायालयों के पास 42 लाख से ज्यादा मामले लंबित हैं। वैसे ये आंकड़े भी कुछ पुराने हैं। वास्तविक संख्या इससे कहीं अधिक हो सकती है। जाहिर है कि ये मामले रातों रात खत्म नहीं होने वाले। इनमें से कुछ को चलते सालों-साल बीत चुके हैं और कुछ में अभी सालों-साल लगने हैं। जब तक ये सार मामले खत्म नहीं हो जाते, एक जैसे दो मामलों की विवेचना और सुनवाई दो अलग-अलग कानूनों के तहत होती रहेगी। इस छोटी की दुविधा को छोड़ दें तो एक जुलाई का दिन इतिहास में दर्ज हो गया। लंबी बहस और विचार विमर्श के बाद बने इन कानूनों की कुछ खासियतें भी हैं। सबसे बड़ा अंतर तो यह है कि पहले जहां पूरा फोकस अपराधी को दंड देने पर था अब वह पीडि़त को न्याय देने पर होगा। इसलिए भारतीय दंड संहिता को अब भारतीय न्याय संहिता कहा जाएगा। न्याय प्रक्रिया को सरल और तीव्र करने की कोशिशें नए कानून में की गई हैं। इससे अदालतों में बढ़ते पेंडिंग मामलों को भी कम किया जा सकेगा। कहा जाता है कि विलंब से मिला न्याय न्याय नहीं रह जाता। न्याय त्वरित होगा तो राहत मिलेगी, अदालतों पर भरोसा बढ़ेगा। यह अकेली उपलब्धि कोई कम नहीं है कि आजादी के 77 साल बाद ही सही पर भारत ने औपनिविशेक कानूनों से खुद को मुक्त कर लिया है।