रायपुर (श्रीकंचनपथ न्यूज़)। छत्तीसगढ़ ने भाजपा की लाज एक बार फिर रख ली। लोकसभा चुनाव के नतीजों ने फिर बताया कि राज्य के मतदाता भाजपा के साथ हैं। लेकिन 11 में से 10 सीटें जीतने वाली भाजपा को सफलता दिलाने में राज्य के लोकप्रिय मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय का सबसे अहम् योगदान रहा। चंद महीनों के अपने कार्यकाल में सीएम साय ने छत्तीसगढ़ में सबसे बड़े चेहरे के रूप में उभरे हैं। राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा पीएम मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ रही थी, लेकिन छत्तीसगढ़ में सीएम विष्णुदेव साय का चेहरा कसौटी पर था। मतदाताओं का भरोसा जीतने में सीएम साय पूरी तरह कामयाब रहे। अलग छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद से सिर्फ एक बार 2019 में कांग्रेस को 2 सीटें मिली। ऐसे में भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती उस रिकार्ड को बरकरार रखना था, जो छत्तीसगढ़ के मतदाताओं के भरोसे पर निर्भर था। नतीजों से साफ है कि प्रदेश की भाजपा सरकार देशभर के विपरीत हालातों के बावजूद छत्तीसगढ़ में मतदाताओं का भरोसा जीतने में सफल रही।
2023 के अंत में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा को अभूतपूर्व सफलता मिली और शीर्ष नेतृत्व ने राज्य को विष्णुदेव साय के रूप में एक आदिवासी मुख्यमंत्री दिया। लोकसभा चुनाव के नतीजे बताते हैं कि राज्य की 4 एसटी आरक्षित सीटों के साथ ही मतदाताओं ने एससी आरक्षित सीट पर भी भाजपा का साथ देकर शीर्ष नेतृत्व के फैसले को सही साबित किया। कांग्रेस ने जातीय व सामाजिक समीकरणों को साधने के लिहाज से प्रत्याशी तय किए थे, लेकिन उसकी इस रणनीति को मतदाताओं ने सिरे से खारिज कर दिया। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को राजनांदगांव से पिछड़ा वर्ग वोटों को ध्यान में रखकर उतारा गया तो पूर्व गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू को महासमुंद से साहू समाज के वोटों को देखते हुए उतारा गया। भिलाई के विधायक देवेन्द्र यादव को यादव वोटों को ध्यान में रखते हुए बिलासपुर से प्रत्याशी बनाया गया। पूर्ववर्ती सरकार में मंत्री रहे शिवकुमार डहरिया को भी दूसरे क्षेत्र से लाकर जांजगीर चाम्पा से चुनाव लड़वाया गया। कांग्रेस के इन सभी नामचीन नेताओं को भाजपा के जमीनी कार्यकर्ताओं से हार का सामना करना पड़ा। हालांकि भाजपा ने भी कोरबा सीट पर दुर्ग की पूर्व सांसद सरोज पाण्डेय को उतारा था, लेकिन पार्टी का यह प्रयोग भी असफल रहा। छत्तीसगढ़ के मतदाताओं ने एक तरह से कड़ा संदेश दिया कि दीगर क्षेत्रों से उम्मीदवारों को उतारने की परिपाटी अब नहीं चलने वाली।
एसटी-एससी सीटों पर जमाया कब्जा
2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने कोरबा और बस्तर की सीटें जीती थी। इस बार कांग्रेस कोरबा पर अपना कब्जा बरकरार रखने में कामयाब रही, लेकिन उसके हाथ से बस्तर फिसल गया। बस्तर में कांग्रेस की बड़ा चेहरा लड़वाने की रणनीति को भाजपा के एक नए नवेले युवा नेता ने निष्फल कर दिया। 2023 के विधानसभा चुनाव में बस्तर संभाग की 12 में से 8 सीटों पर भाजपा को जीत मिली थी। जबकि इससे पहले 2018 के चुनाव में भाजपा का सूपड़ा साफ हो गया था। इस बार के लोकसभा चुनाव में जीत के पीछे कहीं न कहीं आदिवासी सीएम विष्णुदेव साय का चेहरा काम कर गया। राज्य की सभी चारों एसटी सीटें बस्तर, सरगुजा, रायगढ़ और कांकेर पर भाजपा ने जीत का परचम लहराया। वहीं इकलौती एससी आरक्षित सीट जांजगीर चाम्पा में भी भाजपा को अभूतपूर्व जीत मिली। बस्तर के अलावा इस बार सरगुजा की सीट भी खासी चर्चा में थी, क्योंकि यहां भाजपा ने चिंतामणि महाराज को प्रत्याशी बनाया था, जो कुछ समय पहले तक कांग्रेस में थे। सरगुजा की सभी 14 विधानसभा सीटें भाजपा के कब्जे में है। बाकी के तीनों संभागों रायपुर, बिलासपुर व दुर्ग में भी भाजपा ने बेहतर प्रदर्शन किया।
कांकेर में नोटा ने किया फैसला
कांकेर सीट पर इस बार कड़ा मुकाबला देखने को मिला। कांग्रेस ने यहां से पिछली दफा चुनाव हारे बीरेश ठाकुर को दोबारा उतारा था तो भाजपा से भोजराज नाग प्रत्याशी थे। भाजपा को इस सीट पर महज 1884 वोटों से जीत मिली। वहीं नोटा (इनमें से कोई नहीं) को कुल 18,669 मत मिले। जाहिर है कि यदि नोटा में इतनी अधिक संख्या में वोटिंग नहीं होती तो नतीजे का रूख बदल सकता था। राजनीतिक विश्लेषक इस सीट पर कड़ी टक्कर के साथ ही कांग्रेस की जीत की संभावना भी जता चुके थे। कांकेर जैसे आदिवासी इलाके में मतदाताओं का नोटा के प्रति जागरूक होना लोकतंत्र की जीत की ओर ही इशारा करता है। 2019 के चुनाव में कांकेर और बस्तर सीटों पर नोटा का असर दिखा था। बस्तर में नोटा को जितने वोट मिले थे, उतने पूरे राज्य में किसी और सीट पर नहीं मिले थे। 2014 के लोकसभा चुनाव में भी नोटा ने महासमुंद और कोरबा सीट के नतीजों को प्रभावित किया था। महासमुंद लोकसभा सीट में हार-जीत का अंतर 1227 वोट था। जबकि नोटा को 9953 वोट मिले थे। कोरबा में हार-जीत का अंतर 4265 वोट था। जबकि 9955 मतदाताओं ने नोटा का बटन दबाया था। इस चुनाव की बात करें तो नोटा ने सरगुजा में भी कमाल दिखाने की कोशिश की। यहां नोटा तीसरे नंबर पर रहा। हालांकि नोटा को मिले वोटों से नतीजों पर तो कोई असर नहीं होता, लेकिन 28,107 वोट पाकर नोटा ने गोंगपा और बसपा जैसी पार्टियों को पीछे छोड़ दिया।
सीएम ने जताया आभार, कहा- इतिहास रच दिया
छत्तीसगढ़ में भाजपा की अभूतपूर्व जीत पर सीएम विष्णुदेवसाय ने जनता और कार्यकर्ताओं का आभार जताया है। सीएम साय ने अपने सोशल मीडिया पर लिखा- छत्तीसगढ़ ने इस बार फिर इतिहास रचा है। प्रदेश की जनता ने मोदी की गारंटी पर भरोसा जताते हुए फिर से विजय दिलाई है। इस ऐतिहासिक अवसर पर प्रदेश की महान जनता, पार्टी के देवतुल्य कार्यकर्ताओं का हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ। प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में डबल इंजिन की नयी सरकार और अधिक तत्परता के साथ ‘विकसित छत्तीसगढ़Ó का स्वप्न साकार करने जी-जान से जुटेगी। यह जनादेश हमें और अधिक समर्पण के साथ कार्य करने उत्साहित करेगा। वहीं सीएम साय ने राष्ट्रव्यापी नतीजों पर कहा कि पीएम मोदी के नेतृत्व में लगातार तीसरी बार देश की जनता ने भाजपानीत राजग को भरपूर जनादेश दिया है। उन्होंने कहा कि हमने छत्तीसगढ़ में भी इतिहास रचा है। प्रदेश के दस सीटों पर निर्णायक बढ़त होना और मामूली मतों से एक सीट पर दूर रह जाना यह साबित करता है कि जनता ने मोदी की गारंटी पर अपना अभूतपूर्व भरोसा दिखाया है। उन्होंने जनता का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि हमें माताओं-बहनों, किसान-मजदूरों, युवाओं-बुजुर्गों हर वर्ग का समर्थन मिला। छत्तीसगढ़ की जनता से भाजपा को मिले आशीर्वाद के लिए सीएम साय ने प्रधानमंत्री मोदी सहित राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, गृहमंत्री अमित शाह और प्रदेश चुनाव प्रभारी प्रभारी नितिन नबीन के साथ राष्ट्रीय सह संगठन महामंत्री शिवप्रकाश व सभी केंद्रीय नेताओं को धन्यवाद किया हैं।
इस बार भी 3 महिलाएं पहुंची संसद
छत्तीसगढ़ से कांग्रेस की 1 और भाजपा की दो 2 महिला सांसदों ने जीत हासिल की है। इनमें कोरबा से ज्योत्सना महंत ने भाजपा की सरोज पाण्डेय को मात देकर लगातार दूसरी बार जीत हासिल की। वहीं महासमुंद सीट से भाजपा की रूपकुमारी चौधरी ने कांग्रेस के ताम्रध्वज साहू को तो जांजगीर चाम्पा सीट से भाजपा की कमलेश जांगड़े ने कांग्रेस के शिवकुमार डहरिया को हराकर जीत हासिल की। 2019 के चुनाव में भी तीन महिलाएं छत्तीसगढ़ से संसद पहुंची थी। इनमें कांग्रेस की एक और भाजपा की दो महिलाएं शामिल थी। कांग्रेस की टिकट से कोरबा से ज्योत्सना महंत ने जीत हासिल की थी, जबकि सरगुजा से रेणुका सिंह व रायगढ़ से गोमती साय ने विजय पताका फहराई थी। इस बार भाजपा ने महासमुंद से 2 बार विधायक रह चुकीं रूपकुमारी चौधरी को पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ाया था। कुल महिलाओं की बात करें तो 11 लोकसभा सीटों पर 29 महिलाओं ने अपनी किस्मत आजमाई थी। बस्तर और कांकेर जैसी एसटी आरक्षित सीटों पर एक भी महिला प्रत्याशी नहीं थी। वहीं सरगुजा से 3, रायगढ़ से 2, जांजगीर चाम्पा से 6, कोरबा से 6, बिलासपुर से 1, राजनांदगांव से 2, दुर्ग से 3 तो रायपुर से 5 और महासमुंद से 1 महिला प्रत्याशी मैदान में थी।