-दीपक रंजन दास
जब भी भाजपा और कांग्रेस के मौजूदा नेतृत्व की तुलना की जाती है तो यह बेमेल दिखता है। भाजपा जहां पूरी तरह से एक प्रफेशनल पॉलीटिकल पार्टी की तरह काम करती है वहीं कांग्रेस का ढांचा अब भी दशकों पुराना है। भाजपा का एक कोर ग्रुप है जिसे सैल्यूट करने को मन करता है। बड़ी सफाई से वह प्लानिंग करता है। उसकी टाइमिंग भी जबर्दस्त होती है। पुराने मैचों की तरह हर गेंद पर एक-एक रन दौडऩे की बजाए वह सीधे चौके-छक्के मारने पर यकीन करता है। आज देश में लोकसभा चुनाव के अंतिम चरण का मतदान हो रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कन्याकुमारी स्थित विवेकानन्द स्मारक शिला पर मौन व्रत में हैं। दो-तीन दिन से यही माहौल चल रहा था कि अब ब्रिटेन से 100 टन सोना भारत आने की खबर चल पड़ी। ऐसा रातों-रात नहीं हुआ है। इसके लिए काफी लिखा पढ़ी करनी पड़ी होगी। सोना लाए जाने की खबर कब ब्रेक करनी है, सोना कब भारत पहुंचना है, इसकी पूरी योजना बनानी पड़ी होगी। एक-एक डीटेल पर बारीक नजर रखी गई होगी। इतने शानदार एक्जीक्यूशन के लिए सैल्यूट तो बनता है। अब बात करते हैं तथ्यों की। ब्रिटेन से भारत लाया जा रहा यह सोना भारत का ही है। भारत का कुल स्वर्ण भंडार 822.1 टन का है। इसमें से 408.3 टन सोना मुम्बई और नागपुर में सुरक्षित है। 413.8 टन सोना विदेशों में सुरक्षित है। आपदा या राजनीतिक अस्थिरता के समय यदि आर्थिक स्थिति डगमगाती है तब विदेशों में जमा सोना देश को इस स्थिति से उबार लेता है। पर जो संदेश आम लोगों में गया वह यह था कि भारत ने ब्रिटेन से 100 टन सोना वापस ले लिया। इससे अर्थव्यवस्था को लेकर चल रही अटकलों पर स्वत: विराम लग गया। इसके साथ ही जीएसटी को लेकर सरकार पर हो रहे हमलों की धार भी भोथरी हो गई। भारतीय रिजर्व बैंक को भी सोना वापस लाने के लिए आईजीएसटी में कोई छूट नहीं मिली। देश का मूड और माहौल बदलने के लिए इतना ही काफी था। कांग्रेस ऐसा क्यों नहीं कर पाती, इसकी दो वजहें हैं। एक तो यह कि इस पार्टी में प्रफेशनलिज्म शून्य है। ये विशेषज्ञों की नियुक्ति तो करती है पर उन्हें काम नहीं करने देती। थोड़े ही दिन में वो भी हाजिरी पकाने वाला स्टाफ बन जाता है। छत्तीसगढ़ की ही बात करें तो यहां पिछली सरकार ने एक से बढ़कर एक योजना बनाई पर उनका क्रियान्वयन नहीं करवा पाई। नेताओं, कार्यकर्ताओं से लेकर जनप्रतिनिधि तक सब बैठकबाजी करते रहे। जब पोल खुली तो करने को ज्यादा कुछ नहीं बचा था। एक झटके में सरकार चली गई। दरअसल, योजनाओं के क्रियान्वयन पर किसी की नजर ही नहीं थी। अब थोड़े फेरबदल के साथ उन्हीं योजनाओं को नई सरकार चला रही है। योजनाओं का कोई कॉपीराइट तो होता नहीं। क्रियान्वयन सफल हुआ तो जनता लाभान्वित होगी। और क्या चाहिए?