-दीपक रंजन दास
देश के सुदूर दक्षिण में तट से लगभग 500 मीटर की दूरी पर एक विशाल शिलाखण्ड है। इसे पहले ‘श्रीपाद पराईÓ कहा जाता था। मान्यता है कि यहां स्वयं देवी श्री लक्ष्मी ने अपने चरण धरे थे। कन्याकुमारी ने इसी शिला पर तपस्या की थी। स्वामी विवेकानन्द ने भी ध्यान के लिए इसी शिला को चुना था। 24 से 26 दिसम्बर 1892 तक नरेन्द्र कुमार दत्त, बाद में स्वामी विवेकानन्द, ने यहां गहन ध्यान किया था। सन् 1963 में आयोजित विवेकानन्द जन्मशताब्दी वर्ष समारोह में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के तमिलनाडु प्रांत प्रचारक दत्ताजी दिदोलकर ने यहां विवेकानन्द स्मारक बनाने की इच्छा जाहिर की। ईसाइयों ने इस शिला पर अपना अधिकार जमाने और इसे सेंट जेवियर रॉक घोषित करने की कोशिशें भी शुरू कर दीं। इससे तनाव भी उत्पन्न हुआ और केन्द्र सरकार असमंजस में पड़ गई। तब आरएसएस के सरसंघचालक माधव सदाशिव गोलवलकर ने सरकार्यवाह एकनाथ रानाडे को विवेकानन्द स्मारक के लिए समर्थन जुटाने की जिम्मेदारी सौंप दी। रानाडे 323 सांसदों के हस्ताक्षर समर्थन में जुटने में सफल रहे। स्मारक निर्माण के लिए चिन्मय मिशन से लेकर जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री शेख अब्दुल्ला समेत सभी राज्य सरकारों ने एक-एक लाख रुपए का दान किया। करीब 30 लाख लोगों ने एक रुपये से लेकर पांच रुपए तक की सहयोग राशि दान की। इस तरह से यह देश की पहली कार सेवा बन गई जिसमें सबके सहयोग से एक स्मारक का निर्माण किया गया। 2 सितम्बर 1970 को तत्कालीन राष्ट्रपति वीवी गिरी ने इसका औपचारिक उद्घाटन कर दिया और यह स्थल अंतरराष्ट्रीय पर्यटन मानचित्र पर उभर आया। अब यह स्थल एक बार फिर चर्चाओं में है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इसी शिला पर आज 30 मई से कल एक जून तक ध्यान लगाएंगे। लगभग 132 साल पहले स्वामी विवेकानन्द ने इसी शिला पर ध्यान लगाकर विकसित भारत का सपना देखा था। प्रधानमंत्री मोदी भी 2047 तक भारत को विकसित देश बनाने की बात कह चुके हैं। पर अब विपक्ष ने इसे बिना बाद का मुद्दा बना लिया है। अदालत में याचिका दायर कर कहा गया है कि चुनाव प्रचार खत्म होने के बाद के शांतिकाल में इस तरह की हरकत चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन है। भई चुनाव प्रचार खत्म होने के बाद आदमी कुछ तो करेगा। ध्यान लगाने से बेहतर और क्या हो सकता है? यदि कांग्रेस सहित इंडी गठबंधन को ऐसा लगता है कि इससे मोदी हिन्दू वोटों का ध्रुवीकरण करने में सफल हो जाएंगे तो यह तो विवाद खड़ा करने पर भी हो जाएगा। अब मोदी जी ध्यान करें या न करें, जो फायदा भाजपा को मिलना है वह तो मिल ही गया। दरअसल, सफल लोगों की यही पहचान है। जो बात अभी किसी के ख्याल तक में नहीं आई, उसकी वो योजना बना लेते हैं। न केवल योजना बना लेते हैं बल्कि उसपर चलने भी लगते हैं। हल्ला मचाने वाले खुद अपना ही नुकसान कर लेते हैं।