-दीपक रंजन दास
आज विश्व परिवार दिवस है। परिवार को जितना महत्व भारत में दिया जाता है, उतना शायद किसी और देश में नहीं। भारतीय जीवन पद्धति में परिवार की ऐसी भूमिकाएं तय हैं कि उनके बिना संस्कार तक संपन्न नहीं किये जा सकते। मुंडन संस्कार में बुआ, अन्नप्राशन और जनेऊ संस्कार में मामा से लेकर वैवाहिक संस्कारों मामा-भाई-माता-पिता की भूमिका तय की गई है। इसलिए न चाहते हुए भी परिवार को अलग-अलग अवसरों पर एक साथ खड़ा होना ही पड़ता है। फूफा चाहे जितना भी मुंह फुलाए पर उनकी अनुपस्थिति भी खलती ही है। अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग व्यवस्था हो सकती है पर परिवार का बोध लगभग सभी राज्यों में सुस्थापित है। अकेला भारतीय समाज ही है जिसमें ईश्वर के साथ साथ उसके परिवार को भी महत्व दिया जाता है। उसकी भी वंशावलि रखी जाती है। यहां हम केवल राम या कृष्ण को याद नहीं करते बल्कि उनके माता-पिता और परिवार के अन्य सदस्यों की भी बातें करते हैं। परिवार ही मनुष्य की पहली पाठशाला है। परिवार में रहकर वह न केवल एक सामाजिक प्राणी के रूप में विकसित होता है बल्कि भावनात्मक रूप से मजबूत भी होता है। एक विस्तृत परिवार में लगभग सभी उम्र के लोग होते हैं। उनके अनुभवों का स्तर भी अलग-अलग होता है। उनके कार्यक्षेत्र भी अलग-अलग हो सकते हैं। समस्या कैसी भी हो, किसी भी स्तर की हो, यदि पूरा परिवार एकजुट है तो उसका समाधान निकल ही आता है। आधुनिक जीवन पद्धति और विकास के नये मॉडल ने अगर हमसे कुछ छीना है तो वह यही परिवार है। उपलब्धियों की रेस में सबसे आगे निकल जाने की होड़ ने हमें इसी परिवार के प्रति असहिष्णु बना दिया है। आज घर-घर में भाई बहनों के बीच भी प्रतिस्पर्धा दिखाई देती है। संपत्ति और जायदाद को लेकर आपसी मन-मुटाव की फाइलें तो अदालतों में धूल फांक ही रही हैं। वैवाहिक रिश्ते कार्यस्थल, सोशल मीडिया और पोर्टल पर तय हो रहे हैं। रुपए पैसों की फौरी जरूरत पर्सनल लोन और क्रेडिट कार्डों के जरिए पूरी हो रही है। लोन देने वाली संस्था कोई सवाल नहीं पूछती। इसलिए उचित अनुचित पर किसी बहस की भी कोई गुंजाइश नहीं होती। पर इसका एक गंभीर दुष्प्रभाव भी समाज पर पड़ा। व्यक्ति पूरी तरह अकेला हो गया। ऊंची-ऊंची उपलब्धियां हासिल करने वालों को भी इस एकाकीपन ने ऐसा झिंझोड़ा कि उन्होंने आत्महत्या कर ली। परिवार टोका-टाकी से उसे संयत करता था तो मुसीबत में सहारा भी देता था। समाज में आ रहे इस परिवर्तन को वैश्विक स्तर पर महसूस किया गया। इसलिए 1983 में, आर्थिक और सामाजिक परिषद व सामाजिक विकास आयोग ने सिफारिश की कि संयुक्त राष्ट्र पारिवारिक मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करे। संयुक्त राष्ट्र ने माना कि बदलती आर्थिक और सामाजिक संरचनाएं दुनिया भर में पारिवारिक इकाइयों को प्रभावित कर रही हैं। इसलिए, 1993 में आधिकारिक तौर पर 15 मई को अंतर्राष्ट्रीय परिवार दिवस घोषित कर दिया गया।