रायपुर (श्रीकंचनपथ न्यूज़)। छत्तीसगढ़ में लोकसभा की आधा दर्जन सीटें ऐसी भी हैं, जहां पिछले 23 वर्षों से कांग्रेस का बनवास खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। इनमें से एक सीट पर दूसरे चरण में वोटिंग हो चुकी है, जबकि 5 सीटों पर तीसरे दौर में मतदान होना है। इन सीटों को जीतने के लिए इस बार कांग्रेस ने पूरा जोर लगा दिया है। राज्य में तीसरे चरण में कुल 7 सीटों पर मतदाता अपना निर्णय देंगे। इनमें बिलासपुर, रायपुर, सरगुजा, रायगढ़, जांजगीर चाम्पा, कोरबा और दुर्ग की सीटें शामिल है। इनमें से दुर्ग और कोरबा को छोड़ दें तो बाकी की 5 सीटों पर कांग्रेस जीत को तरसती रही है। जबकि एक और सीट कांकेर की है, जहां मतदान पश्चात कांग्रेस को काफी अपेक्षाएं हैं। हालांकि भाजपा का दावा है कि इस बार कांग्रेस को राज्य की एक सीट भी जीतने को नहीं मिलेगी। फिर भी इस लोकसभा चुनाव में कई ऐसी सीटें हैं, जहां भाजपा व कांग्रेस के बीच कड़ा मुकाबला है और जीत का सेहरा किसी के भी सिर बंध सकता है।
छत्तीसगढ़ में तीसरे व अंतिम चरण का मतदान 7 मई को होने जा रहा है। इस दिन रायपुर के साथ ही बिलासपुर, सरगुजा, रायगढ़, जांजगीर चांपा, कोरबा और दुर्ग सीटों पर वोटिंग होगी। छत्तीसगढ़ में कई ऐसी सीटें हैं जहां राज्य गठन के बाद कांग्रेस कभी नहीं जीती। इनमें बिलासपुर, जांजगीर-चांपा, कांकेर, रायगढ़, रायपुर और सरगुजा लोकसभा सीटें शामिल है। यह सीटें पिछले 23 साल से भाजपा का गढ़ बनी हुई हैं। प्रदेश में सरकार बनने के बाद भी कांग्रेस इसमें सेंध नहीं लगा सकी जबकि कांग्रेस के बड़े नेता इन सीटों पर चुनाव लड़ चुके हैं। इस बार भी कांग्रेस ने अपने बड़े नेताओं के चेहरों पर दांव लगाकर कई सीटों पर कड़ी चुनौती पेश करने की कोशिश की है। राजनीतिक पंडितों का भी अनुमान है कि भाजपा के लिए इस बार की राह उतनी आसान नहीं होने वाली। खासतौर पर सरगुजा, कोरबा और दुर्ग की सीटों पर उसे खासी टक्कर मिलेगी।
जांजगीर-चांपा में हारे नामचीन
कांग्रेस के कई नामचीन नेताओं को जांजगीर चांपा सीट पर हार मिली है। राज्य गठन के बाद इस लोकसभा सीट पर 2004 से 2019 तक भाजपा जीतती आ रही है। 2004 में इस लोकसभा सीट में बीजेपी की करुणा शुक्ला ने कांग्रेस के डॉ चरणदास महंत को 11329 मतों से हराया था। 2009 में बीजेपी की कमला देवी पाटले ने कांग्रेस के डॉ शिवकुमार डहरिया पर 87211 वोटों से जीत दर्ज की थी। 2014 में बीजेपी की कमला पाटले से कांग्रेस के प्रेमचंद जायसी 391978 वोटों से हार गए थे। इसी तरह 2019 में बीजेपी के गुहाराम अजगले ने कांग्रेस के रवि परसराम भारद्वाज को 83255 वोटों से मात दी थी। वर्तमान में कांग्रेस ने यहां से पूर्व मंत्री शिवकुमार डहरिया को प्रत्याशी बनाया है, जबकि भाजपा से कमलेश जांगड़े मैदान में हैं। इस बार भी यहां कोई बड़ा परिवर्तन होता नहीं दिख रहा है।
विष्णु का नाम, विष्णु का काम
रायगढ़ सीट को भाजपा का अपराजेय गढ़ बनाने में वर्तमान मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की अहम् भूमिका रही है। राज्य निर्माण के बाद साय इस सीट से लगातार तीन बार जीते। इस सीट पर 2004 से 2019 तक कांग्रेस को जीत नहीं मिल सकी है और भाजपा का कब्जा बरकरार है। 2004 में यहां से बीजेपी से विष्णुदेव साय ने कांग्रेस के रामपुकार सिंह को हराया, 2009 में साय फिर उम्मीदवार बने और कांग्रेस के हृदयराम राठिया से जीते। 2014 में साय ने एक बार फिर जीत हासिल की। उन्होंने कांग्रेस की आरती सिंह को परास्त किया। 2019 में बीजेपी से गोमती साय ने कांग्रेस के लालजीत सिंह राठिया को 66027 वोटों से हराया। इस बार कांग्रेस ने तत्कालीन सारंगढ़ रियासत के राजा नरेशचंद्र के परिवार से ताल्लुक रखने वाली मेनका सिंह को उतारा है, जबकि भाजपा से राधेश्याम राठिया प्रत्याशी हैं। यहां दोनों प्रत्याशियों के बीच अच्छे मुकाबले के आसार हैं।
रायपुर में चलेगा बृजमोहन का जादू
रायपुर को कांग्रेस के पंजे से छुड़ाने में रमेश बैस का योगदान महत्वपूर्ण रहा है। वर्तमान में इस सीट से भाजपा ने एक बार फिर ब्रह्मा चला है, जिसका तोड़ कांग्रेस के पास नहीं दिख रहा है। कांग्रेस ने इस सीट से युवा नेता विकास उपाध्याय को उतारा है। विकास 2018 में विधानसभा का चुनाव जीते थे, लेकिन हालिया सम्पन्न विधानसभा चुनाव में उन्हें पराजय का मुंह देखना पड़ा। जबकि बृजमोहन अजेय रहे है। वे लगातार 35 वर्षों से विधायक हैं। राज्य बनने के बाद 2004 से 2019 तक भाजपा को इस सीट पर लगातार जीत मिलती रही है। बीजेपी से रमेश बैस लगातार तीन चुनाव जीते। 2004 में उन्होंने कांग्रेस के श्यामाचरण शुक्ला को तो 2009 में भूपेश बघेल को और 2014 में सत्यनारायण शर्मा को शिकस्त दी। 2019 में बीजेपी के सुनील सोनी ने कांग्रेस के प्रमोद दुबे को मात दी थी। आखिरी बार यहां कांग्रेस के विद्याचरण शुक्ल 1991 में जीते थे। इसके बाद कांग्रेस का दाँव कभी सफल नहीं हुआ।
सरगुजा के ‘खेलÓ पर भाजपा की नजर
पिछले लोकसभा चुनाव में इस सीट से भाजपा की रेणुका सिंह ने जीत हासिल की थी, लेकिन इस बार सरगुजा में ‘खेलÓ होने की संभावना जताई जा रही है। शायद यही वजह है कि भाजपा के स्टार प्रचारकों के दौरे इस सीट पर लगातार हो रहे हैं। भाजपा अपनी इस परंपरागत सीट को पाने के लिए काफी जोर आजमाइश कर रही है। 2004 में इस लोकसभा सीट में बीजेपी से नंदकुमार साय ने कांग्रेस से खेलसाय सिंह को 103452 से हराया। 2009 में बीजेपी से मुरारीलाल सिंह ने कांग्रेस के भानुप्रताप सिंह को 159548 से मात दी। 2014 में बीजेपी से कमलभान सिंह मरावी और कांग्रेस से रामदेव राम मैदान में थे। इस चुनाव में कमलभान ने रामदेव को 147236 से हराया। 2019 में बीजेपी की रेणुका सिंह ने कांग्रेस के खेलसाय सिंह को 157873 से परास्त किया। भाजपा ने इस सीट से चिंतामणि महाराज को उतारा है तो कांग्रेस से युवा नेत्री शशि सिंह मैदान में हैं।
सामाजिक राजनीति में फँसी बिलासपुर सीट
बिलासपुर की सीट इस बार जातीय व सामाजिक राजनीति में फँसती नजर आई है। कांग्रेस ने यहां से भिलाई के विधायक देवेन्द्र यादव को इसलिए प्रत्याशी बनाया, क्योंकि यह क्षेत्र यादव बाहुल्य है। भाजपा ने लोरमी के पूर्व विधायक तोखन साहू को टिकट दी है। राज्य गठन के बाद बिलासपुर लोकसभा सीट पर 2004 से 2019 तक बीजेपी का कब्जा रहा है। 2004 में बीजेपी से पुन्नलाल मोहले और कांग्रेस से बसंत पहरे चुनाव लड़े थे। पुन्नूलाल मोहले को 324729 वोट मिले जबकि बसंत पहरे 81553 वोटों से हार गए थे। 2009 में बीजेपी से दिलीप सिंह जूदेव और कांग्रेस से डॉ. रेणु जोगी ने चुनाव लड़ा था। इसमें दिलीप सिंह जूदेव को 347930 वोट मिले थे। डॉ. रेणु जोगी से उनकी जीत का मार्जिन 20139 था। 2014 में बीजेपी से लखनलाल साहू और कांग्रेस से करुणा शुक्ला खड़ी हुई थीं। लखनलाल साहू को 561387 वोट मिले थे। करुणा शुक्ला से उनकी जीत का मार्जिन 124359 था। इसी तरह 2019 में अरुण साव ने कांग्रेस के अटल श्रीवास्तव को 141763 वोटों से हराया था।