-दीपक रंजन दास
पापा, ये तो पेरिस्कोप है। सातवीं का छात्र अभिषेक उछल पड़ा। साइंस मॉडल प्रतियोगिता में उसने भी अपने शिक्षक की मदद से पेरिस्कोप बनाया था। उन्हें बताया गया था कि पनडुब्बियों में इसका उपयोग किया जाता है। पनडुब्बी गहरे पानी में डूबी हुई होती है जहां पेरिस्कोप उसकी आंखों का काम करती है। पेरिस्कोप में कई मोड़ हो सकते हैं जिसमें से रोशनी की दिशा बदलते हुए उसे आगे ले जाने के लिए दर्पणों का उपयोग किया जाता है। चित्र साफ दिखे इसके लिए लेंसों का उपयोग किया जाता है। इसका एक छोर पनडुब्बी के भीतर होता है जबकि दूसरा छोर पानी की सतह से ऊपर निकला होता है। इस तरह एक सामान्य से उपकरण ने इस बच्चे को भी श्रीराम मंदिर से जोड़ दिया। अभिषेक ने कई प्रश्न पूछकर इस पेरिस्कोप के बारे में अपनी जिज्ञासा को शांत किया। आज सभी भारतियों के लिए उल्लास का दिन है। पहली बार उनके आराध्य प्रभु श्रीराम अपना जन्मदिवस अपने जन्मस्थान पर पूर्ण वैभव के साथ मना रहे हैं। प्रभु श्रीराम सूर्यवंश के 64वें राजा थे। उनसे पहले इस वंश में इक्ष्वाकु, पृथु, सगर, भगीरथ, रघु और दशरथ जैसे ख्यातनाम राजा हुए। इसलिए आज उनके जन्मदिवस पर उनका सूर्यतिलक किया जा रहा है। मान्यता है कि जब दशरथ नंदन राम का जन्म हुआ, तब सूर्य ने अयोध्या पहुंचकर अपना रथ रोक दिया था। लगभग एक माह तक अयोध्या में दिन था। इस तरह के किस्से कुछ और मंदिरों से भी जुड़े हुए मिल जाते हैं जिनके बारे में मान्यता है कि उनका निर्माण छमासी रात में किया गया था। मंदिर भारत में न केवल आस्था का बल्कि विभिन्न कला, संस्कृति और आर्थिक गतिविधियों का भी केन्द्र रहे हैं। यहां होने वाले आयोजन न केवल सेवा प्रदाताओं को बल्कि छोटी से छोटी वस्तु बेचने वालों को रोजी-रोटी देते हैं। तीर्थ यात्रियों के लिए भोजन, पानी, विश्राम, परिवहन की व्यवस्था में लगे लोग इसी से अपनी आजीविका चलाते हैं। मंदिरों से जुड़ा ये जो व्यवसाय है उसके दरवाजे सभी धर्मों और पंथों के अनुयायियों के लिए खुले हैं। देश के कोने-कोने में स्थित तीर्थों एवं देवस्थानों पर इसका नजारा अनायास ही किया जा सकता है। दरअसल, इस देश के पास वह सबकुछ है जो उसे रोजगार के मामले में आत्मनिर्भर बना सकता है। आवश्यकता है तो केवल दृष्टिकोण बदलने की। धर्मप्राण इस देश में धार्मिक पर्यटन को कभी गंभीरता से लिया ही नहीं गया। अब दुनिया यह देखकर अवाक है कि अयोध्या जैसे एक छोटे से शहर में प्रतिदिन लाखों लोगों का आना-जाना हो रहा है। एक पूरी की पूरी अर्थव्यवस्था वहां खड़ी हो गई है। यह चमत्कार भी लोगों ने स्वयं अपने साधन-संसाधनों से किया है। धार्मिक पर्यटन का ऐसा विशाल स्वरूप इससे पहले तक केवल दक्षिण के कुछ मंदिरों में ही देखने को मिलता था। आने वाले समय में यह चमत्कार देश के अन्य भागों में भी देखने को मिल सकता है।
