तीन में से दो बार विधानसभा चुनाव हार चुके हैं कांग्रेस प्रत्याशी, बृजमोहन लगातार जीते 8 चुनाव
रायपुर। लगतार 8 विधानसभा चुनाव जीतने वाले कद्दावर नेता बृजमोहन अग्रवाल के सामने कांग्रेस ने युवातुर्क विकास उपाध्याय को उतार तो दिया है, लेकिन सवाल है कि क्या विकास को बलि का बकरा बनाया गया है? दरअसल, यह सवाल इसलिए भी है क्योंकि बृजमोहन अग्रवाल राजनीति के अजेय योद्धा हैं, जबकि विकास उपाध्याय ने महज 3 विधानसभा चुनाव लड़े हैं, जिनमें से सिर्फ एक बार ही उन्हें जीत मिली है। 2013 और 2023 के चुनाव में विकास को पराजय का सामना करना पड़ा। 2018 में उन्हें जीत मिली थी। कांग्रेस के साथ एक दिक्कत यह है कि यहां से उसके कई दिग्गजों के नाम तो चले तो लेकिन बृजमोहन के सामने चुनाव लडऩे का साहस कोई भी बड़ा कांग्रेस नेता नहीं कर पाया।
पिछले साल के अंत में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने विकास उपाध्याय को रायपुर पश्चिम सीट से टिकट दी थी। यहां से भाजपा के सीनियर नेता राजेश मूणत चुनाव लड़ रहे थे। मूणत ने इस चुनाव में विकास को 38 हजार वोटों से पराजित किया था। वहीं, कद्दावर नेता बृजमोहन अग्रवाल सायपुर दक्षिण सीट से कांग्रेस के महंत श्यामसुंदर दास को रिकार्ड मतों से हराया था। बृजमोहन प्रदेश में सर्वाधिक मतों से चुनाव जीतने वाले नेता थे। शायद इसीलिए सवाल पूछा जा रहा है कि कद्दावर नेताओं के रहते कांग्रेस ने विकास उपाध्याय को किस रणनीति के तहत लोकसभा के मैदान में उतारा है? देश में चल रही मोदी लहर के बीच यह सवाल और भी प्रासंगिक हो जाता है। भाजपा ने इस बार छत्तीसगढ़ की सभी 11 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है, जबकि कांग्रेस दावा कर रही है कि इस बार उसे भाजपा से ज्यादा सीटें मिलेगी। गौरतलब है कि रायपुर लोकसभा सीट से पहले रविन्द्र चौबे और फिर पूर्व सीएम भूपेश बघेल के नाम की भी चर्चा थी। कांग्रेस ने भूपेश बघेल को राजनांदगांव से प्रत्याशी घोषित कर दिया है। जबकि रविन्द्र चौबे ने लोकसभा चुनाव लडऩे से इनकार कर दिया था।
कौन हैं विकास उपाध्याय
1998 में विकास उपाध्याय छात्र संगठन एनएसयूआई के ब्लाक अध्यक्ष बने। अगले ही साल वे इस छात्र संगठन के जिलाध्यक्ष बन गए। 2004 में प्रदेश अध्यक्ष चुने गए। जबकि 2006 में राष्ट्रीय सचिव बने। 2009 में युवा कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव बनाए गए। 2010 में राष्ट्रीय महासचिव बने। 2013 से 2018 तक रायपुर शहर जिला कांग्रेस के अध्यक्ष रहे। इसी दौरान उन्हें पहली बार विधानसभा का टिकट भी मिला, लेकिन वे चुनाव हार गए। 2018 में ही वे पहली बार विधायक बने। उन्होंने तीन बार के भाजपा विधायक राजेश मूणत को हराया था। कांग्रेस की सरकार में उन्हें संसदीय सचिव बनाया गया। 2019 में प्रदेश कांग्रेस के संयुक्त महासचिव बने। 2023 में वे रायपुर पश्चिम सीट से भाजपा के राजेश मूणत से चुनाव हार गए थे।
बृजमोहन ने लहराए सफलता के झंडे
दिग्गज भाजपा बृजमोहन अग्रवाल साल 1990 को महज 31 साल की उम्र में पहली बार विधायक बने थे। छात्र जीवन से ही इन्होंने राजनीति की शुरुआत कर दी थी।1984 में वे भारतीय जनता पार्टी के सदस्य बने। 1988 से 1990 तक वे भाजयुमो के युवा मंत्री रहे। 1990 में वे पहली बार मध्यप्रदेश विधानसभा में विधायक बने। इसके बाद से 1993, 1998, 2003, 2008, 2013, 2018 और 2023 में वे लगातार विधायक निर्वाचित होते आ रहे हैं। छत्तीसगढ़ में भाजपा सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं। इन्हें छत्तीसगढ़ में राजनीति का चाणक्य भी कहा जाता हैं। 2005 में उन्हें राजस्व, संस्कृति एवं पर्यटन, कानून और पुनर्वास का प्रभार सौंपा गया। इसी तरह 2006 में वन, खेल और युवा मामलों का प्रभार दिया गया। 2008 में स्कूल शिक्षा, लोक निर्माण, संसदीय मामले, पर्यटन और बंदोबस्त ट्रस्ट संस्कृति विभाग संभाला। 2013 में कृषि और जैव प्रौद्योगिकी, पशुपालन, मछलीपालन, जल संसाधन, सिंचाई, आयाकट, धार्मिक और बंदोबस्त विभागों का दायित्व मिला। वहीं, 2023 में स्कूल व उच्च शिक्षा, धर्मस्व और पर्यटन, संसदीय कार्यमंत्री का दायित्व निभा रहे हैं।
हर विधानसभा में मिली पराजय
2019 के लोकसभा चुनाव से पहले प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी। इस दौरान रायपुर की 9 सीटों में से 6 सीटों पर कांग्रेस को जीत मिली। बावजूद इसके अगले साल हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को बुरी तरह से पराजय का सामना करना पड़ा। हालात यह थे कि जिन 6 विधानसभा सीटों पर उसके विधायक थे, वहां भी उसे हार मिली। लोकसभा में कांग्रेस सभी विधानसभा सीटों पर हारी। विधानसभा सीटों के आंकड़ों की तुलना करें तो भाजपा ने रायपुर ग्रामीण विधानसभा क्षेत्र में सर्वाधिक अंतर यानी 63,664 मतों से बढ़त बनाई थी, जबकि सबसे कम अंतर भाटापारा सीट पर रहा था, जहां सिर्फ 252 मतों से भाजपा को बढ़त मिली। इसके अलावा अन्य सभी सीटों पर मतों का अंतर 22 हजार से अधिक रहा। वहीं, पिछले चुनाव के दौरान भाटापारा की इस सीट पर भाजपा का कब्जा था, इसके बावजूद भाजपा को यहां से सबसे कम बढ़त मिली थी, जबकि अन्य विधानसभा सीटें कांग्रेस के कब्जे में थी, फिर भी वहां कांग्रेस को मुंह की खानी पड़ी थी।
सिर्फ भाटापारा में जीती कांग्रेस
रायपुर संसदीय सीटअंतर्गत आने वाले 9 विधानसभा क्षेत्रों में सिर्फ इकलौती भाटापारा सीट ही है, जहां कांग्रेस का कब्जा है। 2023 के विधानसभा चुनाव में यहां से कांग्रेस के इंद्रकुमार साव ने जीत हासिल की थी। इस हिसाब से देखें तो कांग्रेस के लिए पूरा का पूरा मैदान साफ दिखता है। क्षेत्र की आरंग इकलौती ऐसी सीट है, जो अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। वहीं, भाटापारा के अलावा बलौदा बाजार से टंकराम वर्मा, धरसींवा से अनुज शर्मा, रायपुर (ग्रामीण) मोतीलाल साहू, रायपुर शहर (पश्चिम) से राजेश मूणत, रायपुर शहर (उत्तर) पुरंदर मिश्रा, रायपुर शहर (दक्षिण) बृजमोहन अग्रवाल, आरंग गुरू खुशवंत साहब, और अभनपुर से इंद्रकुमार साहू भाजपा के विधायक हैं। रायपुर लोकसभा क्षेत्र में करीब 25 लाख की आबादी रहती है, जिनमें साहू और कुर्मी समाज का वर्चस्व है। रायपुर में 30 फीसदी आबादी साहू समाज की तो 20 फीसदी आबादी कुर्मी समाज की है। हालांकि दोनों ही दलों ने इस बार सामान्य प्रत्याशी पर दांव लगाया है।