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रायगढ़ लोकसभा : विष्णु के गढ़ में जीत को तरसती कांग्रेस, साय ने 96 में रचा जीत का चक्रव्यूह, कांग्रेस आज तक भेद नहीं पाई

By Mohan Rao Published March 1, 2024
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रायगढ़ लोकसभा
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रायपुर। छत्तीसगढ़ अलग राज्य बनने से पहले ही रायगढ़ को भाजपा का गढ़ बनाने में विष्णुदेव साय की महत्वपूर्ण भूमिका रही। उन्होंने यहां से 1999 में पहली बार चुनाव लड़ा और जीता। इसके बाद अलग राज्य बना तो लगातार तीन चुनावों में उन्होंने जीत दर्ज की। 2004, 2009 और 2014 के चुनाव को जीतकर साय ने इतिहास रच दिया। वे केन्द्र में मंत्री भी रहे। विधानसभा चुनाव में भाजपा को बहुमत मिला तो उन्हें राज्य के चौथे मुख्यमंत्री के रूप में काम करने का अवसर मिला। 1999 में विष्णुदेव साय ने जो चक्रव्यूह तैयार किया, उसे भेदने में कांग्रेस आज तक कामयाब नहीं हो पाई। 1962 में अस्तित्व में आई रायगढ़ सीट में 6 बार कांग्रेस और एक बार जनता पार्टी जीती। वहीं भाजपा को यहां से 7 बार जीत मिली।

अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित रायगढ़ लोकसभा क्षेत्र में 8 विधानसभा शामिल है, जिसमें जशपुर जिले की 3 विधानसभा और रायगढ़ जिले की 5 विधानसभा शामिल हैं। जशपुर जिले की जशपुर, कुनकुरी, पत्थलगांव तो वहीं रायगढ़ जिले की लैलूंगा, धरमजयगढ़, रायगढ़, सारंगढ़, खरसिया विधानसभा क्षेत्र शामिल है। 1962 में पहली बार अस्तित्व में आई इस लोकसभा सीट पर 1962 में ही पहला आम चुनाव हुआ। पहला आम चुनाव उस दौर के संगठन रामराज्य परिषद के विजया भूषण सिंहदेव ने जीता था। फिर 1967, 1971 के चुनाव में कांग्रेस की विजिया सिंह, उम्मेद सिंह राठिया विजयी पताका फहराने में कामयाब रहे। 1977 के आम चुनाव में जनता पार्टी के नरहरि सिंह साय, 1980-1984 के दो आम चुनाव में पुष्पा देवी सिंह यहां से सांसद चुनी गईं। 1989 में भाजपा के नंदकुमार साय, 1991 में कांग्रेस की पुष्पा सिंह जीतीं। 1996 में भाजपा के नंदकुमार साय और 1998 में कांग्रेस के अजीत जोगी ने चुनाव जीता। जोगी का यह पहला चुनाव था, जिसके बाद उन्होंने सीधे दिल्ली में एंट्री मारी।

भाजपा ने नहीं दिया कांग्रेस को मौका
छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद अब तक लोकसभा के लिए हुए 4 आम चुनाव में रायगढ़ संसदीय सीट पर भाजपा का कब्जा है। इस सीट पर पृथक राज्य बनने के बाद 2004 में पहला लोकसभा चुनाव हुआ, जिसमें विष्णुदेव साय दूसरी बार सांसद निर्वाचित हुए। उसके बाद 2009 और 2014 में भी साय लगातार जीते। जबकि इससे पहले वे 1999 में भी जीत दर्ज करा चुके थे। साय ने रायगढ़ को भाजपा का ऐसा गढ़ बनाया, जिसे ध्वस्त करने की कांग्रेस की तमाम कोशिशें अब तक कामयाब नहीं हो पाई है। कांग्रेस को इस सीट पर जीत का बेसब्री से इंतजार है। 2019 में यहां से पार्टी ने गोमती साय को टिकट दिया था। बाद में भाजपा ने उन्हें पत्थलगांव से विधानसभा का चुनाव भी लड़ा और जीता। इस बार के लोकसभा चुनाव में भी गोमती साय को टिकट का प्रमुख दावेदार माना जा रहा है।

कांग्रेस का हर दाँव हुआ फेल
2004 में जीत के बाद पार्टी ने 2009 में एक बार फिर विष्णुदेव साय पर दांव लगाया। इस बार उनका मुकाबला कांग्रेस के हृदयराम राठिया से था। दोनों के बीच हुए सीधे मुकाबले में साय को 47.44 प्रतिशत वोट बैंक के साथ 4 लाख 43 हजार 948 वोट मिले और वो 55,848 वोट से चुनाव जीत गए थे। इसी तरह 2014 के आम चुनाव में फिर से भाजपा की ओर से विष्णुदेव साय प्रत्याशी बनाए गए और इस बार उनका मुकाबला कांग्रेस की आरती सिंह से हुआ। इस चुनाव में भी विष्णुदेव साय ने 53.16 प्रतिशत वोट शेयर के साथ कांग्रेस की आरती सिंह को 2 लाख 16 हज़ार 750 वोट के बड़े अंतर से हराया। अब बारी 2019 के आम चुनाव की थी। इस बार भाजपा ने विष्णुदेव साय के स्थान पर पहली बार गोमती साय को अपना प्रत्याशी बनाया, जिनका मुकाबला कांग्रेस के लालजीत सिंह राठिया से था। इस चुनाव में भाजपा की गोमती साय ने 48.76 प्रतिशत वोट शेयर के साथ कांग्रेस प्रत्याशी को 66 हज़ार 27 वोट के बड़े अंतर से हराया। इस तरह छत्तीसगढ़ बनने के बाद से अब तक कांग्रेस ने रायगढ़ सीट से जीत का स्वाद ही नहीं चखा और भाजपा लगाकर अजेय पारी खेल रही है।

8 विधायक जीते पर लोकसभा में मिली मात
2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने रायगढ़ लोकसभा क्षेत्र की सभी आठ विधानसभा सीटों पर जीत दर्ज की थी। आठ सीटों पर कांग्रेस के विधायक काबिज थे। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने भाजपा की गोमती साय से मुकाबला के लिए धरमजयगढ़ के विधायक लालजीत सिंह राठिया को चुनाव मैदान में उतारा। लेकिन विधानसभा की तमाम सीटें जीतने के बाद भी कांग्रेस इस सीट को जीतने का ख्वाब पूरा नहीं कर पाई। स्थितियां इतनी बदतर रही कि विधायक राठिया सभी विधानसभा सीटों में पिछडऩे के साथ ही अपनी सीट धरमजयगढ़ से भी पिछड़ गए। कांग्रेस की गोमती साय को सभी 8 विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त मिली। दरअसल, 2019 के चुनाव में भाजपा ने राज्य के अपने सभी सांसदों को ड्राप कर नए चेहरों को चुनाव मैदान में उतारा था। इसी के चलते 4 बार के सांसद विष्णुदेव साय को भी टिकट नहीं मिली। पार्टी ने उनकी जगह गोमती साय को उतारा था। हालांकि रायगढ़ में जीत का सिलसिला फिर भी जारी रहा।

2 सीएम देने वाला क्षेत्र
रायगढ़ संसदीय क्षेत्र ने छत्तीसगढ़ को दो मुख्यमंत्री दिए हैं। अविभाजित मध्यप्रदेश में अजीत जोगी का राजनीतिक पदार्पण रायगढ़ से ही हुआ था। उन्होंने यहीं से अपनी राजनीतिक पारी की शुरूआत 1998 में की थी। यहां से जीत के बाद वे दिल्ली पहुंचे और फिर पीछे मुड़ नहीं देखा। आगे चलकर वे छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री बने। वहीं लगातार 4 लोकसभा चुनाव जीतने वाले विष्णुदेव साय वर्तमान में राज्य के मुख्यमंत्री हैं। रायगढ़ संसदीय सीट के नाम एक और कीर्तिमान दर्ज है। राज परिवार के पांच सदस्यों ने यहां से प्रतिनिधित्व किया है। जशपुर राजपरिवार से ताल्लुक रखने वाले विजयभूषण सिंहदेव, सारंगढ़ राजपरिवार से रजनीदेवी, राजा नरेशचंद्र सिंह व पुष्पा देवी सिंह व सरगुजा राजपरिवार से चंडिकेश्वरशरण सिंहदेव यहां से सांसद बने। रायगढ़ लोकसभा सीट में ग्रामीण आबादी का प्रतिशत 85.79 है। कुल आबादी में आदिवासियों का हिस्सा 44 फीसदी है जबकि अनुसूचित जाति की आबादी 11.70 फीसदी है।

पहले चुनाव में चुने गए दो सांसद
आजादी के बाद वर्ष 1952 में जब लोकसभा क्षेत्र का गठन किया गया तब सरगुजा और रायगढ़ को एक संसदीय क्षेत्र बनाया गया था। पहले आम चुनाव में यहां से दो सांसद निर्वाचित हुए। सामान्य वर्ग और अनुसूचित जनजाति वर्ग से सांसद का निर्वाचन हुआ। सामान्य वर्ग से चंडिकेश्वर शरण सिंहदेव व अनुसूचित जनजाति वर्ग से बाबूनाथ सिंह सांसद निर्वाचित हुए। दो सांसदों की यह सीट पांच साल ही रही। इसके बाद नए सिरे से लोकसभा क्षेत्र का परिसीमन हुआ और रायगढ़ व सरगुजा को अलग-अलग संसदीय क्षेत्र का दर्जा मिला। वैसे, रायगढ़ की ख्याति इसकी सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत के कारण है। यहां कभी अंग्रेजों का प्रत्यक्ष शासन नहीं रहा। राजाओं के माध्यम से अंग्रेज यहां राज करते रहे। महाराज मदन सिंह को रायगढ़ का संस्थापक माना जाता है। राजा चक्रधर सिंह स्वतंत्र रायगढ़ के अंतिम राजा हुए। आज़ादी के बाद रायगढ़ पहला राज्य था जो भारतीय संघ में शामिल हुआ।

इन दावेदारों की है चर्चा
चर्चा है कि इस बार भी भाजपा पिछले लोकसभा वाला प्रयोग दोहरा सकती है। पिछले लोकसभा चुनाव में पार्टी ने सभी नए प्रत्याशी दिए थे। इस बार भी ज्यादातर नए प्रत्याशियों पर पार्टी दांव लगा सकती है। हालांकि 3 से 4 सांसदों के टिकट बरकरार रहने की खबरें आ रही है। वहीं कई पुराने चेहरों को नए क्षेत्रों से लड़ाया जा सकता है। रायगढ़ सीट पर भाजपा से 2019 में सांसद रही गोमती साय के साथ ही से शांता साय, रवि भगत, सुनीति राठिया, सत्यानंद राठिया, देवेंद्र प्रताप सिंह, कौशल्या देवी सिंह व सुषमा खलखो के नाम की चर्चा है। वहीं कांग्रेस की बात करें तो दयाराम धुर्वे, जयमाला सिंह, मेनका सिंह, लालजीत सिंह राठिया प्रत्याशी हो सकते हैं। अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित रायगढ़ लोकसभा के अंदर 8 विधानसभा शामिल है। इस सीट में ग्रामीण आबादी का प्रतिशत 85.79 है। कुल आबादी में आदिवासियों का हिस्सा 44 फीसदी है जबकि अनुसूचित जाति की आबादी 11.70 फीसदी है।

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