-दीपक रंजन दास
भारत का संविधान लोगों को अपनी पसंद का धर्म चुनने की स्वतंत्रता देता है। किसी भी धर्म का पालन करने वाला, किसी भी इबादतगाह तक जाने के लिए स्वतंत्र है। हिन्दू चाहे तो नमाज पढ़ सकता है, मुसलमान भी चाहे तो हिन्दू मंदिरों में पूजा पाठ कर सकता है। चर्च और गुरुद्वारे के दरवाजे भी सभी के लिए खुले हैं। अयोध्या में श्रीराम मंदिर के निर्माण से लेकर सेवा में भी मुसलमानों का अच्छा खासा योगदान है। दो दशक पहले तक इफ्तार पार्टियों में सभी दलों के लोग शामिल होते थे। देश की मजारों में भी सभी धर्मों के लोग जाते हैं। देश के लगभग सभी अस्पतालों में किसी न किसी देवी देवता की मूर्ति लगी होती है जहां बीमार लोगों के परिजन पूजा अर्चना करता हैं, प्रार्थना कर जल्द स्वास्थ्य लाभ की विनती करते हैं। इनमें सभी धर्मों के लोग शामिल होते हैं। किसी भी धर्म को मानना या स्वीकार अथवा अस्वीकार करना नागरिकों का व्यक्तिगत अधिकार है। रोकटोक केवल इस बात को लेकर है कि नाबालिगों को बहला फुसलाकर उन्हें दूसरे धर्मों में दीक्षित नहीं किया जा सकता। यहां भी वही कानून लागू होता है जो 18 वर्ष से कम उम्र के लोगों को स्वतंत्र रूप से निर्णय नहीं लेने देता। वयस्कों को भी यदि दबाव डालकर, प्रलोभन देकर धर्म परिवर्तन कराया जाता है तो वह अवैध होगा। कानून नाबालिगों, मानसिक रूप से कमजोर या नशे के प्रभाव में लोगों को किसी भी प्रकार का समझौता करने से रोकता है। निर्णय बिना किसी दबाव या प्रलोभन के, बिना नशे के प्रभाव में आए लिया गया हो और वह कानून सम्मत भी हो, तो उसे किसी भी कानून के तहत चुनौती नहीं दी जा सकती। शर्त केवल यही है कि वह व्यक्ति मानसिक रूप से स्वस्थ होना चाहिए और बालिग होना चाहिए। इसमें जोर जबरदस्ती केवल संख्या बल बढ़ाने की या अपनी दुकान चलाने के लिए की गई हो तो वह अपराध की श्रेणी में आता है। इस लिहाज से प्रलोभन देकर धर्म परिवर्तन कराना और डंडे पर जोर पर उनकी घर वापसी कराना, दोनों ही अपराध है। मुश्किल यह भी है कि किसी को हिन्दू बनाने या उसे हिन्दू धर्म में लौटाने का कोई शास्त्र सम्मत तरीका नहीं है। सनातन में अनेक प्रचारक हुए हैं। अनेक धार्मिक मान्यताएं स्वयं विकसित हुई हैं। इसमें पेड़ पौधों की पूजा करने वाले, ग्रंथ को गुरू मानने वाले, मूर्ति की पूजा करने वाले, मूर्ति की पूजा नहीं करने वाले, स्तंभों को आस्था का प्रतीक मानने वाले सभी शामिल हैं। सनातन आस्था की खुली अनुमति देता है। पर मुश्किल यह है कि इसी अनुमति को सनातन की कमजोरी मान लिया गया जबकि यही सनातन की ताकत है। देश की सुरक्षा, समृद्धि और स्वीकार्यता को इसी सनातन संस्कृति से पुष्टि मिलती है। दरअसल, यह कुटिल राजनीति है जिसमें राजा स्वयं तो धर्मनिरपेक्ष रहता है पर उसके करीबी धर्म के नाम पर समाज को बांटते हैं।